राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

आर्थिक, या भूल सुधार?

अनेक वस्तुओं एवं सेवाओं पर जीएसटी घटाई गई है। इससे लोगों को राहत मिलेगी। यह स्वागतयोग्य है। मगर इसे पहले किए गए भूल का सुधार ही माना जाना चाहिए। इससे बहुत ज्यादा उम्मीद जोड़ने की जरूरत नहीं है।

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की दो दरें खत्म करने और कुछ वस्तु एवं सेवाओं पर टैक्स में कटौती को भारत सरकार ने “अगली पीढ़ी के सुधार” और “राष्ट्र को दिवाली के ऐतिहासिक उपहार” के रूप में विज्ञापित किया है। यह सत्ता पक्ष के प्रचार क्षमता का ही संकेत है कि मुख्यधारा चर्चाओं के एक बड़े हिस्से में इसे इसी रूप में लिया भी गया है। मगर क्या यह कदम सचमुच ऐसा आर्थिक सुधार है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा और रूप में भारी बदलाव की अपेक्षा की जा सकती है? उल्लेखनीय है कि जीएसटी का विचार जब आया, तब कहा गया था कि इस कर व्यवस्था के तहत सारे देश में सिर्फ एक दर होगी और कर व्यवस्था का पालन पहले की तुलना में आसान हो जाएगा।

मगर जब जुलाई 2017 में इसे धूम-धड़ाके से लागू किया गया, तो चार मुख्य दरों के अलावा कुछ अन्य दरें भी लागू हुईं। साथ ही जीएसटी रिटर्न को फाइल करना इतना दुरूह बना दिया गया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चांदी हो गई। ऊपर से केंद्र ने उपकर (सेस) लगाने जारी रखे, जिसमें राज्यों कोई हिस्सा नहीं है। हालांकि पेट्रोलियम जीएसटी व्यवस्था में शामिल नहीं है, मगर उत्पादन एवं आम उपभोग का उससे सीधा संबंध है। उस पर केंद्र ने भारी उत्पाद शुल्क लगा रखा है। इन सबकी मार लघु एवं मझौले उद्योगों पर पड़ी। इसीलिए देश में उपभोग घटाने का बड़ा दोष जीएसटी पर गया है।

अब सरकार ने दो दरें (12 और 28 फीसदी) खत्म की हैं। अनेक वस्तुओं एवं सेवाओं पर जीएसटी घटाई गई है। इससे लोगों को राहत मिलेगी। इस लिहाज से इस कदम का स्वागत किया जाएगा। मगर इसे पहले किए गए भूल का सुधार ही माना जाना चाहिए। फिर इनपुट क्रेडिट और सेस जैसे मुद्दे अभी कायम हैं। इसके अलाव राजस्व क्षति की भरपाई के लिए सरकार ने जन कल्याण योजनाओं में कटौती की, तो फिर अर्थव्यवस्था को होने वाला कुल लाभ घूम-फिर कर शून्य पर पहुंच सकता है। अतः इस कदम को उचित संदर्भ में देखा जाना चाहिए। इससे बहुत ज्यादा उम्मीदें जोड़ने की कोई वजह नहीं है।

Tags :

By NI Editorial

The Nayaindia editorial desk offers a platform for thought-provoking opinions, featuring news and articles rooted in the unique perspectives of its authors.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *