india alliance: कांग्रेस ने सबकी पार्टी होने की अपनी पहचान गंवाते हुए जातीय राजनीति की तरफ कदम बढ़ाया। मगर उस वह मैदान खाली नहीं है। अब कांग्रेस ने जल्द अपनी दिशा नहीं सुधारी, तो उसकी हालत ना घर के ना घाटे के वाली हो सकती है।
जिस समय इंडिया गठबंधन का अस्तित्व सवालों के घेरे में है और इसमें शामिल रहे दलों के बीच कांग्रेस अलग-थलग सी पड़ गई है, राहुल गांधी का लोकसभा में गठबंधन की तरफ बोलने का दांव उलटा पड़ा दिखता है।
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने जिस तरह अपने भाषण में कांग्रेस को निशाने पर लिया, उस पर सहज ही सबका ध्यान गया है।
वैसे यह सवाल वाजिब भी है कि बिना किसी सामूहिक विचार-विमर्श के इंडिया गठबंधन की काल्पनिक सरकार के अभिभाषण की रूप-रेखा बताने के लिए राहुल गांधी ने कैसे खुद को अधिकृत कर लिया?
और फिर राहुल अपनी राजनीति का प्रमुख मुद्दा जातीय गोलबंदी को बनाए हुए हैं, जिसे इसी आधार पर संगठित दल अपना मैदान मानते रहे हैं। तो टकराव लाजिमी है।(india alliance)
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हालत ना घर के ना घाटे के(india alliance)
गौरतलब है कि अखिलेश ने अब तक जातीय जनगणना ना पाने होने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया।
साथ ही 1962 के युद्ध में चीन के हाथ जमीन खोने और खुली अर्थव्यवस्था के दौर में आरंभ से ही भारतीय अर्थव्यवस्था के तकाजों की उपेक्षा करने का दोष भी कांग्रेस पर मढ़ा।(india alliance)
इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कौन करे, इस सवाल पर इसमें शामिल अनेक दल कांग्रेस के खिलाफ राय जता चुके हैं।
विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में सीटों के तालमेल के दौरान चूंकि कांग्रेस ने अपने प्रभाव वाले राज्यों में बाकी दलों की उपेक्षा की, तो अपने-अपने प्रभाव वाले राज्यों में ये दल कांग्रेस को उसकी हैसियत बताने से नहीं चूके हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अधिकांश ऐसे दलों ने आम आदमी पार्टी को समर्थन को देकर भी कांग्रेस को अपना पैगाम दिया।
अब अखिलेश यादव ने संदेश दिया है कि इंडिया गठबंधन का एजेंडा तय करने और उसका वैचारिक मंच प्रदान करने के कांग्रेस के प्रयास को वे स्वीकार नहीं करते। यह आने वाले दिनों का संकेत है।(india alliance)
कांग्रेस ने सबकी पार्टी होने की अपनी पहचान गंवाते हुए जातीय राजनीति की तरफ कदम बढ़ाया। मगर उस वह मैदान खाली नहीं है। इसलिए अगर जल्द ही कांग्रेस ने अपनी दिशा नहीं सुधारी तो संभव है कि उसकी हालत ना घर के ना घाटे के वाली हो जाए।