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Editorial

अग्नि-परीक्षा का वक्त

ByNI Editorial,
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अमेरिका-भारत संबंध

निज्जर हत्याकांड और पन्नू की हत्या की कोशिश का मामला सामने आने के साथ कनाडा और अमेरिका के साथ संबंध दबाव में आ गए। अब पन्नू मामला ठोस मुकाम पर पहुंचता दिख रहा है। यहां से द्विपक्षीय रिश्तों को संभालना एक बड़ी चुनौती है।

भारत-अमेरिका संबंध की अग्नि-परीक्षा का वक्त संभवतः आ गया है। अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर ब्रेक की है कि खालिस्तानी उग्रवादी गुरपतवंत सिंह पन्नू के मामले में अमेरिकी जांच एक ठोस नतीजे पर पहुंच गई है। इसके मुताबिक भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के अधिकारी विक्रम यादव ने पन्नू की हत्या की (नाकाम) कोशिश का संचालन किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक यादव ने ही चेक रिपब्लिक में गिरफ्तार व्यापारी निखिल गुप्ता को पन्नू की हत्या की सुपारी थी। अखबार के अनुसार इस कार्रवाई को सीधे रॉ के तत्कालीन प्रमुख सुमंत गोयल ने हरी झंडी दी थी। अखबार ने अपने सूत्रों के हवाले से कहा है कि ‘इस पूरी कार्रवाई की जानकारी संभवतः भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल को भी थी’। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक विक्रम यादव संभवतः सीआरपीएफ के अधिकारी हैं, जो रॉ में डेपुटेशन
पर थे।

वॉशिंगटन पोस्ट के मुताबिक अमेरिका सरकार के अंदर फिलहाल इसको लेकर बहस चल रही है कि वहां मुकदमा सिर्फ निखिल गुप्ता पर ही चले या उसमें यादव का नाम भी शामिल किया जाए। यादव को शामिल करने के दूरगामी परिणाम होंगे। उसका मतलब सीधे भारत सरकार को इस मामले में खींचना होगा। अखबार के मुताबिक अमेरिकी न्याय विभाग रॉ को मामले में घसीटना चाहता है, लेकिन कूटनीति से संबंधित अधिकारी भारत-अमेरिका संबंध का ख्याल करते हुए कार्रवाई को गुप्ता तक सीमित रखना चाहते हैँ। बहरहाल, यह तो साफ है कि यह मामला पहले ही ना सिर्फ भारत-अमेरिका संबंध, बल्कि कई पश्चिमी देशों के रिश्तों से प्रभावित कर चुका है। खुद पोस्ट की रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि “विदेशों में हत्या कराने” के विवाद में कई देशों में “रॉ के अधिकारियों को गिरफ्तारी, देश-निकाला और फटकार” का सामना करना पड़ा है। गौरतलब है कि पिछले साल जी-20 शिखर सम्मेलन के तुरंत बाद ये मामला उठ खड़ा हुआ था। उसके बाद पहले कनाडा और फिर अमेरिका के साथ संबंध दबाव में आ गए। अब यह मामला एक ठोस मुकाम पर पहुंचता दिख रहा है। यहां से अपने रिश्तों को संभालना दोनों देशों के सामने एक बड़ी चुनौती है।

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