राजनीति को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कंगना रनौत दोषी नहीं हैं। दोषी वो पार्टियां हैं, जो ग्लैमरस चेहरों को टिकट देती हैं। दोषी वो मतदाता भी हैं, जो आंख मूंद कर उन्हें विजयी बनाते हैं।
यह कहना कंगना रनौत की साफगोई है कि सांसद के रूप में उन्हें मजा नहीं आ रहा। उन्होंने कहा कि राजनीति में होना समाज सेवा का हिस्सा है, जो उनकी पृष्ठभूमि नहीं है। अतः हिमाचल प्रदेश में मंडी से लोकसभा सदस्य रनौत इस बात से परेशान हैं कि लोग उनके पास आकर नाली टूट गई होने या सड़क खराब होने की शिकायत करते हैं। इन बातों के लिए सोशल मीडिया पर रनौत का मजाक उड़ाया गया है। लेकिन ये मजाक की बातें नहीं हैं। ये हमारी सियासत की बिगड़ी सूरत की मिसाल हैं। बहरहाल, राजनीति को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए कंगना रनौत दोषी नहीं हैं। दोषी वो पार्टी है, जिसने कंगना की रुचि और पृष्ठभूमि का बिना ख्याल किए उन्हें लोकसभा चुनाव का टिकट दिया।
दोषी तो वो मतदाता भी हैं, जिन्होंने आंख मूंद कर इसलिए उन्हें भारी बहुमत से विजयी बनाया। कंगना रनौत बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री हैं, जो सत्ताधारी पार्टी की करीबी बन गईं। भाजपा ने उनके ग्लैमर का लाभ उठाने के लिए सीधे उन्हें देश की सबसे बड़ी निर्वाचित संस्था के लिए उम्मीदवार मनोनीत कर दिया। मगर ग्लैमर, पैसा, और राजनीति के इस मिलन के लिए अकेले भाजपा दोषी नहीं है। बल्कि शायद ही कोई पार्टी इस बिंदु पर निर्दोष नजर आए! वैसे तो फिल्मीं सितारों को राज्यसभा में नामजदगी के जरिए लाने का सिलसिला बहुत पुराना है, मगर प्रत्यक्ष निर्वाचन के जरिए लोकसभा में लाने की सबसे चर्चित शुरुआत कांग्रेस ने 1984 में की, जब सुनील दत्त, अमिताभ बच्चन, और बैजयंती माला को उसने टिकट दिया।
दत्त पहले से भी सामाजिक कार्यों से जुड़े थे, इसलिए उन्हें अलग श्रेणी में रखा जा सकता है। मगर अमिताभ और बैजयंती माला को तो सिर्फ ग्लैमर के कारण सियासत से जोड़ा गया। उसके बाद राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, हेमा मालिनी, सनी देओल आदि के जरिए ये सिलसिला बढ़ता ही गया है। दक्षिणी सितारों को जोड़ें तो ये सूची बहुत लंबी हो जाएगी। और इनमें अनेक के अनुभव कंगना रनौत जैसे होंगे। मगर उन्होंने कहने का साहस नहीं दिखाया। कंगना के साथ बात सिर्फ यह है कि वे बोल गई हैँ।


