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05-05-2025 Vol 19

जख्म़ गहराता ही गया!

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जब असंतोष के दायरा व्यापक हो और इसके कारण गहरे हों, तब प्रशासनिक तरीके शायद ही कारगर होते हैं। आवश्यकता ठंडे दिमाग से यह समझने की है कि मणिपुर मसले की जड़ में जमीन और संसाधन संबंधी विवाद रहे हैं।

मणिपुर के हिंसाग्रस्त हुए दो साल पूरे हो गए हैं। मैतेई समुदाय को जनजाति श्रेणी में शामिल करने के न्यायिक निर्णय के खिलाफ 2023 में तीन मई के दिन कुकी एवं अन्य जनजातीय समूहों के जुलूस निकाला था। उसी दौरान हिंसा शुरू हुई। फिर इसका दायरा फैल गया। तब से रुक-रुक कर हिंसा का दौर आता रहा है। इस बीच मैतई और कुकी समुदायों के बीच खाई लगातार चौड़ी होती गई है।

दुखद यह है कि अविश्वास की इस खाई को पाटने के कोई गंभीर प्रयास आज तक नहीं हुए। राज्य में एन. बिरेन सिंह के नेतृत्व वाली पूर्व भाजपा सरकार पर तो लगातार हालात को बिगाड़ने के इल्जाम लगते रहे। आखिरकार उस सरकार की विदाई हुई, मगर उसके बाद भी दोनों समुदायों के बीच पैदा हुए अविश्वास को दूर करने के कोई गंभीर प्रयास नहीं हुए।

मणिपुर हिंसा: समस्या और समाधान की जरूरत

केंद्र सरकार ने प्रशासनिक नजरिए से समस्या से निपटने की कोशिश की है। मगर जब असंतोष का दायरा व्यापक हो और इसके कारण गहरे हों, तब ऐसे तरीके शायद ही कहीं कारगर होते हैं। आवश्यकता ठंडे दिमाग से यह समझने की है कि मणिपुर मसले की जड़ में जमीन और संसाधन संबंधी विवाद रहे हैं। मैतेई समुदाय मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कुकी समुदाय के साथ इन मसलों को लेकर उसका पुराना तनाव रहा है। इस प्रकरण से सांप्रदायिक भावनाएं भी जुड़ी हुई हैँ।

ज्यादातर मैतेई हिंदू हैं, जबकि ज्यादातर कुकी ईसाई हैं। दशकों तक विदेशी धन से संचालित एनजीओज ने सांप्रदायिक और नस्लीय पहचान की भावनाओं को हवा दी। आगे चल कर इससे उग्रवादी संगठनों की जड़े मजबूत हुईं। गुजरे दो साल में इन संगठनों की सक्रियता और बढ़ी है।

नतीजतन, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हिंसा में अब तक तकरीबन 260 लोगों की मौत हो चुकी है। 60 हजार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। 4,700 से ज्यादा घर आगजनी के शिकार हुए। सरकार ने सेना और अर्धसैनिक बलों की तैनाती के जरिए हालात पर काबू पाने की कोशिश की। अब उसे स्वीकार करना चाहिए कि ये तरीका कामयाब नहीं हुआ। तो अब नजरिया बदलने की जरूरत है।

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Pic Credit: ANI

NI Editorial

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