समझौता हुआ, तो ट्रंप को ‘शांति दूत’ होने का दावा करने का एक और मौका मिलेगा। उधर पुतिन की हैसियत बढ़ेगी। जबकि अमेरिकी नेतृत्व वाली ‘नियम आधारित दुनिया’ के भरोसे बैठे देश खुद को ठगा गया महसूस करेंगे।
यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने 28 सूत्री शांति योजना पेश की है, जिसके अनुरूप समझौता हुआ, तो उसका अर्थ होगा कि रूस की तमाम शर्तें मान ली गई हैं। आम समझ है कि दिसंबर 2021 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन इन शर्तों पर सहमत हो गए होते, तो यह युद्ध होता ही नहीं। अब पौने चार साल बाद, लाखों लोगों की जान जाने और भारी बर्बादी के उपरांत ट्रंप ने उन शर्तों को शामिल करते हुए एकतरफा शांति योजना तैयार की है और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदोमीर जेलेन्स्की से 27 नवंबर तक उस पर सहमति देने को कहा है।
ट्रंप ने दो टूक कहा है कि जेलेन्स्की सहमति नहीं देते हैं, तो समयसीमा के बाद यूक्रेन को अमेरिका से कोई सैन्य या खुफिया सहायता नहीं मिलेगी। जेलेन्स्की जानते हैं कि ऐसा हुआ, तो यूक्रेन के लिए कुछ हफ्तों तक भी युद्ध में टिकना संभव नहीं होगा। वैसे ही देश में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अंदरूनी विवाद खड़ा होने के कारण जेनेन्स्की कमजोर पड़ चुके हैं। ऊपर से अमेरिकी साया भी हटा, तो यूक्रेन के सामने समर्पण की नौबत आ सकती है। इसीलिए जब अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वान्स फोन किया, तो उपस्थित विकट स्थिति को समझते हुए वे शांति योजना पर अमेरिका और यूरोप से बात करने को राजी हो गए।
इसके पहले उनका रुख था कि यूक्रेन अपनी जमीन का कोई हिस्सा नहीं छोड़ेगा और नाटो में शामिल होने के सवाल पर अपने संप्रभु निर्णय के तहत आगे बढ़ेगा। मगर ट्रंप की योजना के तहत ना सिर्फ ये दोनों शर्तें छोड़नी होगी, बल्कि अपनी सेना के आकार में लगभग 25 कटौती करने पर भी उन्हें राजी होना होगा। ये समझौता हुआ, तो ट्रंप को ‘शांति दूत’ होने के अपने दावे को पुष्ट करने का एक और ‘उदाहरण’ मिलेगा। उधर रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन अमेरिका केंद्रित एकध्रवीय दुनिया की समाप्ति की कथा का प्रमुख चेहरा बन कर उभरेंगे। जबकि इस कथित नियम आधारित दुनिया के भरोसे अपनी सुरक्षा रणनीति बनाने वाले देशों के सामने जाहिर होगा कि पश्चिमी मोहरा बनने का आखिरकार क्या अंजाम होता है!


