nayaindia Inheritance Tax हंगामा है क्यूं बरपा?

हंगामा है क्यूं बरपा?

जीएसटी उगाही
Stock Market Crash

जिस उत्तराधिकार टैक्स व्यवस्था का उल्लेख पित्रोदा ने किया, उसे पूंजीवाद को प्रतिस्पर्धात्मक एवं आविष्कार क्षमता से युक्त बनाने, और इस सिस्टम को न्यायोचित ठहराने के लिए लागू रखा गया है। इस पर हंगामा खड़ा होना भारत में बौद्धिक खालीपन का ही संकेत है।

सैम पित्रोदा ने सिर्फ अमेरिका में मौजूद एक कानून की बात की। उस कानून में निहित सार्वजनिक हित की भावना का उन्होंने जिक्र किया। अमेरिका विश्व पूंजीवाद का मुख्यालय है। 20वीं सदी के आरंभ से लेकर आज तक कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट व्यवस्थाओं के खिलाफ वैचारिक संघर्ष की कमान उसके हाथ में रही है। जिस उत्तराधिकार टैक्स व्यवस्था का उल्लेख पित्रोदा ने किया, उसे पूंजीवादी व्यवस्था को प्रतिस्पर्धात्मक एवं आविष्कार क्षमता से युक्त बनाने, और इस सिस्टम को न्यायोचित ठहराने के लिए लागू रखा गया है।

इसलिए पित्रोदा की टिप्पणी पर भारत में हंगामा खड़ा हो गया, तो इसे भारतीय समाज में बौद्धिक खालीपन का प्रमाण ही माना जाएगा। इस प्रकरण में सबसे दयनीय छवि कांग्रेस की उभरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पित्रोदा की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में डालने की चाल चली और इसमें वे सफल हो गए। जबकि अगर कांग्रेस में राजनीतिक सोच बची होती, तो वह इसको लेकर मोदी और उनकी पार्टी को कठघरे में खड़ा कर सकती थी। मुद्दा यह है कि क्या भारत में कुछ लोगों के हाथ में हो रहा धन संग्रहण देश और देशवासियों के  हित में है

क्या इससे भारत में प्रतिस्पर्धा आधारित पूंजीवाद का मार्ग प्रशस्त हो रहा है? गौरतलब है कि अमेरिका में कारोबारी घरानों की मोनोपॉली रोकने के भी चुस्त कानूनी प्रावधान हैं। इन बातों पर गंभीर बहस खड़ी करने के बजाय बुधवार को कांग्रेस नताओं का सारा दिन सफाई देने और पित्रोदा की टिप्पणी से पार्टी को अलग करने में गुजरा। खुद राहुल गांधी अपने पहले के संपत्ति की जांच-पड़ताल और पुनर्वितरण के अपने बयान से पलट गए। कहा कि वे सिर्फ उस 16 लाख करोड़ रुपये की रकम का छोटा हिस्सा गरीबों में बांटना चाहते हैं, जो मोदी सरकार ने कॉरपोरेट घरानों के माफ किए हैँ। मगर राहुल और उनकी पार्टी को बताना चाहिए कि जिस चुनाव घोषणापत्र को वे क्रांतिकारीबताते हैं, उसे लागू करने के लिए वे संसाधन कहां से जुटाएंगे? ऐसा ना करने पर पार्टी के वादों को लोग जुमला ही समझेंगे। फिलहाल, कांग्रेस ने देश को वैचारिक नेतृत्व देने का एक मौका गवां दिया है। 

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