nayaindia supreme court Fundamental Rights कहने की जरूरत पड़ी!

कहने की जरूरत पड़ी!

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टिप्पणियां साधारण इस लिहाज से हैं कि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में- जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार हो- इन्हें कहने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। मगर आज हालात ऐसे हैं कि ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बीते हफ्ते दो साधारण बातें कहीं, लेकिन वो अखबारों में प्रमुख सुर्खियां बनीं। ये टिप्पणियां साधारण इस लिहाज से हैं कि किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में- जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार हो- इन्हें कहने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। मगर आज देश के हालात ऐसे हैं कि ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं और अंततः कोर्ट को संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करनी पड़ती है। पहली टिप्पणी संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द करने की आलोचना से संबंधित थी। एक प्रोफेसर ने इस कदम की आलोचना की थी।

उन्होंने कहा था कि जिस रोज ये कदम कदम उठाया गया, वह एक “काला दिन” था। दूसरी टिप्पणी पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर उसे बधाई दिए जाने से संबंधित थी। कोर्ट ने कहा कि किसी दूसरे देश को स्वतंत्रता दिवस की बधाई देने के पीछे दुर्भावना की तलाश नहीं की जानी चाहिए। कोर्ट ने कहा- ‘हर भारतीय नागरिक को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को रद्द करने की आलोचना करने का अधिकार है। जिस रोज ये अनुच्छेद रद्द किया गया, उसे काला दिन बताना प्रतिरोध की भावना और रोष की अभिव्यक्ति है।

अगर राज्य की हर आलोचना या प्रतिरोध को धारा 153-ए के तहत अपराध ठहराया जाएगा, तो लोकतंत्र- जो संविधान की अनिवार्य विशेषता है- टिक नहीं पाएगा।’ कोर्ट ने अपनी दूसरी टिप्पणी में कहा कि पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को कोई भारतीय नागरिक शुभकामना देता है, तो इसमें कुछ गलत नहीं है। यह सद्भावना का इजहार है। वह नागरिक किसी खास मजहब से संबंधित हो, इसलिए ऐसी अभिव्यक्ति के पीछे दुर्भावना की तलाश नहीं की जानी चाहिए।

जाहिर है, अभियुक्त मुस्लिम थे, जिन पर सांप्रदायिक द्वेष फैलाने का इल्जाम लगा दिया गया था। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है। लेकिन आज ऐसी घटनाएं इक्का-दुक्का भर नहीं हैं। और ऐसे मामले में इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता है, यही आज के सूरत-ए-हाल को बताता है। यह विचारणीय है कि भारत इस मुकाम तक कैसे पहुंचा? बिना इसी तह में गए, समाधान का रास्ता निकलने की संभावना धूमिल बनी रहेगी।

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