गोल्डमैन शैक्स के अर्थशास्त्रियों की यह टिप्पणी महत्त्वपूर्ण हैः ‘जीडीपी वृद्धि दर की बताई गई संख्या संभवतः वास्तविक दर को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही है। कारण गणना में असामान्य रूप से न्यून डिफ्लेटर का इस्तेमाल है।’
भारत ने अप्रैल- जून तिमाही में जो आश्चर्यजनक ऊंची आर्थिक वृद्धि दर हासिल की, उससे सभी चकित हुए। यह बात आसानी से गले नहीं उतरी कि जिस समय सुर्खियों में अमेरिकी टैरिफ की मार, विदेशी वित्तीय संस्थानों के भारत से पैसा निकालने, रुपये की कीमत में रिकॉर्ड गिरावट आदि की खबरें छायी रही हैं, उसी दौरान सकल घरेलू उत्पाद 7.8 फीसदी की ऊंची दर से बढ़ा। ऐसा कैसे हुआ, इसे समझने की माथापच्ची में घरेलू के साथ-साथ विदेशी वित्तीय संस्थान भी जुटे हुए हैं। गोल्डमैन शैक्स, एचएसबीसी होल्डिग्स और नोमुरा होल्डिंग्स के अर्थशास्त्रियों ने इस संबंध में अपनी-अपनी रिपोर्टें तैयार की हैं।
उनका सार यह है कि आर्थिक वृद्धि दर के ताजा आंकड़े की कथा गणना की विधि में छिपी हुई है। गणना में थोक मूल्य सूचकांक को डिफ्लेटर बनाया गया। जीडीपी वृद्धि को मापने की दो दरें होती हैं- सकल और वास्तविक। सकल जीडीपी दर में से मुद्रास्फीति दर को घटा कर वास्तविक दर जानी जाती है। चलन यही रहा है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर को डिफ्लेटर बनाया जाए। मगर अब भारत सरकार ने थोक मूल्य सूचकांक का उपयोग शुरू कर दिया है। थोक मूल्य सूचकांक आपूर्ति पक्ष से जुड़ा है। मांग घटने या बढ़ने का असर थोक मूल्य सूचकांक पर पहले पड़ता है। विदेशी बाजार में मांग घटे, तो निर्यात आधारित क्षेत्र अपना उत्पादन घटा देते हैं, जिससे वहां मुद्रास्फीति दर गिर जाती है।
समझा जाता है कि अमेरिकी टैरिफ के कारण फिलहाल यही हाल है। अब उस दर को डिफ्लेटर बनाया जाए, तो जाहिर है, जीडीपी की ऊंची दर प्राप्त होगी। इसलिए गोल्डमैन शैक्स के अर्थशास्त्रियों की यह टिप्पणी महत्त्वपूर्ण हैः ‘वृद्धि की बताई गई संख्या संभवतः वास्तविक दर को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रही है। कारण गणना में असामान्य रूप से न्यून डिफ्लेटर का इस्तेमाल है।’ एचएसबीसी के विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस डिफ्लेटर के कारण एक प्रतिशत तक का फर्क पड़ा हुआ हो सकता है। बहरहाल, मीडिया में सुर्खियां सरकारी आंकड़ों के आधार पर ही बनीं। उससे नैरेटिव कंट्रोल का सरकारी मकसद सध गया। बाद के विश्लेषणों से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता!


