मुद्रा विनिमय सूचकांकों के मुताबिक इस वर्ष भारतीय रुपया एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा है। मुद्रा कारोबारियों की नजर फिलहाल अमेरिका से संभावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर टिकी है, जिससे रुपये को सहारा मिलने की उम्मीद है।
डॉलर का मूल्य 89 रुपये से अधिक हो चुका है। अंदेशा है कि अगले कुछ दिनों में एक डॉलर की कीमत 90 रुपये से अधिक तक पहुंच सकती है। मुद्रा विनिमय सूचकांकों के मुताबिक इस वर्ष भारतीय रुपया एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा है। भारत के मुद्रा कारोबारियों की नजर अमेरिका से संभावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर टिकी है। ये समझौता हुआ, तो भारत से विदेशी निवेश के निकलने की रफ्तार धीमी हो सकती है, जिससे रुपये को सहारा मिलेगा। ताजा आंकड़ों के मुताबिक बीता सितंबर फिर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिहाज से नकारात्मक महीना रहा। हालांकि सितंबर में 6.6 बिलियन डॉलर की एफडीआई आई, मगर भारत से नौ बिलियन डॉलर बाहर गए।
यानी उससे 2.4 बिलियन डॉलर अधिक, जितनी एफडीआई भारत आई। रुपये की कीमत में लगातार हुई गिरावट के पीछे भारत से पूंजी का बाहर जाना एक प्रमुख कारण रहा है। दूसरी खास वजह अमेरिका का टैरिफ युद्ध है, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है। दरअसल, डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन के भारतीय निर्यात पर लगाए 50 फीसदी आयात शुल्क का दुष्प्रभाव भी वो पहलू है, जिस कारण विदेशी और यहां तक कि भारतीय निवेशक भी पूंजी बाहर ले जा रहे हैं। उनकी प्राथमिकता वैसे देशों में पूंजी निवेश है, जहां के उत्पादों के लिए अमेरिकी बाजार में अपेक्षाकृत अधिक अनुकूल स्थितियां हैं।
भारत के लिए एक अन्य चिंताजनक खबर यह है कि रुपये के सस्ता होने के बावजूद भारत के चालू खाते का घाटा अक्टूबर में और बढ़ गया। बताया गया कि ऐसा स्वर्ण का अधिक आयात होने की वजह से हुआ। बहरहाल, कारण चाहे जो हो, ऐसी खबरें बाजार में नकारात्मक धारणाएं बनाती हैं। उसका असर निवेशकों पर पड़ता है। अभी बनी नकारात्मक धारणाओं का ही असर है कि भारत सरकार के बॉन्ड पर ब्याज दरें बढ़ने के संकेत मिल रहे हैं। यानी अभी जो बॉन्ड से पैसा जुटाया जाएगा, संभव है उस पर देनदारी बढ़ जाए। तो कुल मिला कर माहौल गंभीर हैं। शुक्रवार को आने वाले जीडीपी के आंकड़ों से इसे कितना संभाला जा सकेगा, ये देखने की बात होगी।


