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एडवाइजरी किसके लिए?

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भारत सरकार गरीबी से बेहाल भारतीय मजदूरों को इजराइल भेजने में तब सहायक बनी। इसलिए अब सवाल उठा है कि ताजा एडवाइजरी किसके लिए जारी की गई है? क्या अब पैदा हुए नए खतरों के कारण भारत अपने मजदूरों को वहां से वापस लाएगा?

इजराइल और ईरान के बीच युद्ध की गहराती आशंका के बीच यह उचित ही है कि भारत सरकार ने अपने नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की। भारतीय नागरिकों से उन दोनों देशों में जाने से बचने की सलाह दी गई है। ऐसी एडवाइजरी अनेक देशों ने अपने देशवासियों के लिए जारी की है। बिगड़ते हालात के बीच ऐसी सतर्कता अनिवार्य समझी जाती है। यह सरकारों का कर्त्तव्य है कि वे अपने नागरिकों को समय के मुताबिक उचित सलाह दें। इसके बावजूद यह अवश्य कहा जाएगा कि इस एडवाइजरी से भारत में एक विडंबनापूर्ण स्थिति बनी है।

इसलिए कि बीते अक्टूबर में जब फिलस्तीनी संगठन हमास के हमलों के साथ मौजूदा युद्ध शुरू हुआ, तो उसके बाद भारत सरकार ने इजराइली सरकार के साथ बनी सहमति के तहत अपने यहां से श्रमिकों को वहां भेजने का फैसला किया। खबरों के मुताबिक ऐसे तकरीबन छह हजार मजदूर इजराइल पहुंच चुके हैं। इजराइल में शारीरिक श्रम की सेवा देने वाले मजदूरों की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि वहां की कंपनियों ने फिलस्तीनी श्रमिकों को काम से हटा दिया। यानी भारतीय मजदूरों को वहां भेजने की स्थिति युद्ध के कारण ही बनी।

तब अनेक हलकों से आगाह किया गया था कि इजराइल जाने में खतरा है। लेकिन भारत सरकार गरीबी से बेहाल भारतीय मजदूरों को इजराइल भेजने में तब सहायक बनी। इसलिए अब सवाल उठा है कि ताजा एडवाइजरी किसके लिए जारी की गई है? क्या अब पैदा हुए नए खतरों के कारण भारत अपने मजदूरों को वहां से आपातकालीन उपायों के जरिए वापस लाएगा? प्रश्न यह भी है कि अगर इन मजदूरों को किसी तरह की क्षति पहुंची, तो उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा?

क्या भारत सरकार उसकी नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार करेगी? यह निर्विवाद है कि युद्ध का ताजा पैदा हुआ खतरा अक्टूबर से बन रहे हालात का ही परिणाम है। भू-राजनीति के तमाम विशेषज्ञों को ऐसे हालत बनने का पहले से अंदेशा था। इसके बावजूद भारतीय मजदूरों को जान का जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। भारत सरकार को अवश्य ही इस सिलसिले में उठ रहे तमाम सवालों के जवाब देश को देने चाहिए।

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By NI Editorial

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