मेसी की झलक- उनका खेल नहीं- दिखाने का जो तमाशा हुआ, वह अजीबोगरीब ही है। इसीलिए अभिनव बिंद्रा की इस सलाह पर सबको ध्यान देना चाहिए कि ‘मेसी का जयगान कर लेने के बाद अब वक्त आत्म-निरीक्षण का है।
अभिनव बिंद्रा ने वह कहा, जो आखिरकार किसी को कहना चाहिए था। विनेश फोगट ने उसमें अपना स्वर जोड़ा, तो उससे वो बात और वजनदार हुई है। लायोनेल मेसी बेशक फुटबॉल के सर्वकालीन सबसे महान खिलाड़ियों में एक हैं। उनकी उपलब्धियां बेशुमार हैं। इस कारण उनके प्रशंसक भारत सहित दुनिया भर में मौजूद हैं। अतः लोग मेसी को देखना चाहें, तो उसमें कुछ अजूबा नहीं है। लेकिन जब लोगों की इस इच्छा का भौंडा कारोबारी इस्तेमाल हो, तो उस पर सवाल उठाना जरूरी हो जाता है।
तो ओलिंपिक्स में भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता ने पूछा है कि क्या एक समाज के तौर पर हम खेल संस्कृति बना रहे हैं, या किंवदंती बन चुकी दूर देश की किसी शख्सियत का उत्सव भर मना रहे हैं। उनकी ये टिप्पणी गौरतलब हैः ‘करोड़ों रुपये मेसी के पास जाने और उनके साथ फोटो खिंचवाने के लिए खर्च कर दिए गए। यह बिल्कुल ठीक बात है कि पैसा लोगों का है और यह उनका अधिकार है कि वे इसे कैसे खर्च करें। फिर भी मैं यह सोच कर तकलीफ महसूस करता हूं कि जितनी ऊर्जा एवं धन लगाए गए, उसका एक हिस्सा भी अगर अपने देश में खेल की बुनियाद में लगाया गया होता, तो उससे क्या हासिल हो सकता था।’
ओलिंपियन विनेश फोगट ने कहा है- ‘मैं उम्मीद करती हूं कि कोई वक्त आएगा, जब हम सिर्फ एक दिन के लिए नहीं, बल्कि हर दिन के लिए सचमुच खेल के लिए जाग सकेंगे।’ इन टिप्पणियों में एक बेमकसद तमाशे को देख कर दो ऐसे खिलाड़ियों का दर्द झलका है, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का नाम रोशन किया है। जिस देश में खिलाड़ियों के आगे बढ़ने की राह में खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर और संसाधनों की कमी से लेकर यौन शोषण के खतरों तक की बाधाएं आती हों, वहां एक मशहूर विदेशी खिलाड़ी की झलक- उनका खेल नहीं- दिखाने का जो तमाशा हुआ, उस पर आक्रोश ही जताया जा सकता है। इसीलिए बिंद्रा की इस सलाह पर सबको ध्यान देना चाहिए कि ‘मेसी का जयगान कर लेने के बाद अब वक्त आत्म-निरीक्षण का है’।


