हिंदुओं को दुनिया भर में सम्मान उनके उदात्त मूल्यों—सहिष्णुता, अहिंसा और ज्ञान—के कारण मिला। उपनिषदों से गांधी तक का बौद्धिक व नैतिक सफर भारत की आत्मा का प्रतिनिधि रहा है। वही नैतिक ऊँचाई अब धुंधला गई है।… अंतरराष्ट्रीय मीडिया अब हिंदू धर्म को आक्रामकता के प्रतीक के रूप में चित्रित करता है। अगर हिंदू धर्म की नैतिक प्रतिष्ठा को बचाना है, तो उसे उत्पीड़न के तर्क से नहीं, अपने मूल्यों की पुनर्प्राप्ति से रास्ता निकालना होगा।
पिछले दशक में भारत की इमेज पर नैतिक धुंध छाई है। वह भारत, जिसे प्रवासी भारतीय दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और बुद्धिमान नागरिकों का देश बताकर गौरव करते थे, अब संदेह और आलोचना का विषय बन रहा है। भारत को अब एक संकीर्ण, असहिष्णु और रंगभेदी राष्ट्र के रूप में देखा जाने लगा है। ये धाराएँ अब केवल बहसों में नहीं, बल्कि भारत की रोज़मर्रा की कथाओं में स्पष्ट झलकने लगी हैं।
भारत का राजनीतिक नेतृत्व बार-बार दावा करता है कि मुसलमान भारत में जितने सुरक्षित हैं, उतने कहीं और नहीं। यह दावा न केवल असत्य है, बल्कि खतरनाक भी है। यह उत्पीड़न की वास्तविकताओं को ढँकता है, भय को सामान्य बनाता है और झूठे आंकड़ों के सहारे एक विकृत सामाजिक चेतना गढ़ता है। यह दावा भारतीय समाज में फैली नैतिक ऊँचाई को गिरा देता है। अगर भारत को अपने सम्मान और सामाजिक सामंजस्य को बचाना है, तो इस मिथ्या सुरक्षा-चर्चा का सामना करना ही होगा।
‘सुरक्षित’ होना केवल जीवन रक्षा नहीं, बल्कि भय से मुक्ति, गरिमा और समान अवसरों की अनुभूति है। यह सत्य है कि भारत में मुसलमानों का सामूहिक संहार नहीं हो रहा, लेकिन यह भी सत्य है कि वे एक व्यवस्थित भय और उत्पीड़न के घेरे में हैं। गोरक्षा के नाम पर हिंसा हो या चुनावी भाषणों में बार-बार दोहराया जाने वाला सांप्रदायिक भेद—यह सब एक भयपूर्ण समाज का निर्माण करता है। मुसलमानों के लिए किराए का घर, नौकरी, शिक्षा और समाज में स्थान पाने की राहें कठिनतर हुई हैं। सरकारी नीतियाँ, पुलिसिंग और प्रचार—सब एक साझा संदेश देते हैं: ‘तुम बाहरी हो। खतरा हो।’
इस भय का निर्माण आकस्मिक नहीं है। यह एक सुनियोजित प्रक्रिया है, जिसमें शीर्ष नेतृत्व से लेकर स्थानीय स्तर तक हर दिन एक ही झूठ दुहराया जाता है—मुसलमान बढ़ रहे हैं, हिंदू घिर रहे हैं। चुनावी भाषणों, नारों, टीवी बहसों और सोशल मीडिया पर फैलाई गई यह प्रचार-धारा हर दिन सामान्य जीवन को विषैला बनाती है। सबसे बड़ा झूठ यह है कि पिछले सात दशकों में मुसलमानों की आबादी सात गुना हो गई। यह तथ्यात्मक रूप से ग़लत है। मुसलमानों की जनसंख्या दर राष्ट्रीय औसत के अनुरूप है और लगातार घट रही है। फिर भी इस झूठ को बार-बार दोहराकर हिंदुओं में एक कृत्रिम भय पैदा किया जाता है, जिससे उनका ध्यान बेरोज़गारी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे असली मुद्दों से भटकाया जा सके।
यह जनसंख्या-भय केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि एक राजनीतिक हथियार है—वोट बटोरने का शॉर्टकट। मगर यह शॉर्टकट देश की आत्मा को नष्ट करता है।
इतिहास साक्षी है कि हिंदुओं को दुनिया भर में सम्मान उनके उदात्त मूल्यों—सहिष्णुता, अहिंसा और ज्ञान—के कारण मिला। उपनिषदों से गांधी तक का बौद्धिक व नैतिक सफर भारत की आत्मा का प्रतिनिधि रहा है। वही नैतिक ऊँचाई अब धुंधला गई है। बहिष्कार की भाषा ने सार्वभौमिकता के भाव को संकीर्ण घृणा में बदल दिया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया अब हिंदू धर्म को आक्रामकता के प्रतीक के रूप में चित्रित करता है। अगर हिंदू धर्म की नैतिक प्रतिष्ठा को बचाना है, तो उसे उत्पीड़न के तर्क से नहीं, अपने मूल्यों की पुनर्प्राप्ति से रास्ता निकालना होगा।
यह त्रासदी केवल मुसलमानों की नहीं है। यह हिंदुओं की भी है। जब हिंदू अपने मूल्यों से हटते हैं, तो वे वैश्विक सम्मान खो बैठते हैं। वे नफरत के प्रतीक बनते हैं, श्रद्धा के नहीं।
राह क्या है? यह प्रचार से नहीं निकलेगा। न ही इनकार से। यह तभी संभव है जब हिंदू धर्म अपने मूल आत्मा की ओर लौटे—वह जो हमेशा से ज्ञान, करुणा और विविधता का आलंबन रहा है। जब अहिंसा राजनीति और समाज का मार्गदर्शक सिद्धांत बनेगी, जब बहुलता को कमजोरी नहीं, ताकत समझा जाएगा, तब ही हम उस भारत को फिर से देख सकेंगे जो कभी नालंदा की ज्वाला था, जो नवाचार का ध्रुवतारा था।
भारत की विविधता उसका बोझ नहीं, उसकी सभ्यतागत शक्ति है। इसी विविधता को अपनाकर हिंदू भारत की छवि को फिर सम्मानित बना सकते हैं—डराने वाले नहीं, प्रेरणा देने वाले। झूठे दावे चुनाव जिता सकते हैं, लेकिन वे समाज को खोखला कर देते हैं। ‘मुसलमान भारत में सुरक्षित हैं’—यह कहना झूठ है। यह उत्पीड़न को हल्का करता है, भय को गहराता है, और हिंदू धर्म की नैतिक स्थिति को तोड़ता है।
अगर भारत को फिर से एक महान सभ्यता बनना है, तो हिंदुओं को डर फैलाने से इनकार करना होगा। उन्हें अपनी परंपरा की सहिष्णुता और करुणा को फिर से जीवंत करना होगा। भारत की महानता कभी किसी को दबाने से नहीं आई, वह विविधता को गले लगाने से आई है।
आगे का रास्ता केवल सत्य और करुणा से है। वही हिंदू को उसकी नैतिक ऊँचाई लौटा सकता है। वही भारत को फिर से एक सभ्यता का दीपक बना सकता है।


