hindu

  • कांग्रेस की नासमझी, इतिहास छल शर्मनाक

    अभी कांग्रेस नेताओं का यह दावा सुनने को मिला कि द्वि-राष्ट्र सिद्धांत हिन्दू महासभा की देन है, और मुस्लिम लीग ने उसी को अपना लिया। सो, 1947 में देश-विभाजन का दोष हिन्दू महासभा पर है। इस दावे से न केवल इतिहास बल्कि राजनीति का भी अज्ञान दिखता है।... कांग्रेसी जिस हिन्दू महासभा को दोष दे रहे हैं, वह कांग्रेस से ही जुड़ी संस्था थी! हिन्दू महासभा के अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय कांग्रेस के भी चार बार अध्यक्ष रहे। लाला लाजपत राय भी दोनों संगठनों के महान नेता थे।... तभी अब कांग्रेस चरित्र-विहीन हो गई है। वह हिन्दुओं की पार्टी रहना...

  • हिंदू कभी चरित्रवान थे!

    पहले यह सोचें कि सवा अरब हिंदुओं में (बुज़ुर्गों को अलग रखना होगा) कौन-सी पीढ़ियां “चरित्रवान” शब्द का अर्थ जानती हैं? क्या है चरित्रवान होने की हिंदू परिभाषा? चरित्र के नैतिक नियमों का भला क्या केंद्र बिंदु है? गहराई से बूझें तो चरित्र और चरित्रवान होने की धुरी का पर्याय एक ही शब्द ‘सत्य’ है। उपनिषद् में चरित्र का सूत्र है—“ऋतस्य पथ”। अर्थात वह जीवन जो सत्यं (सत्य), धर्मं (धर्म), और दमः (आत्मसंयम) से संचालित हो। इन तीनों में मनुष्य का व्यवहार और आचरण बना हुआ हो। वह “मनसा, वाचा, कर्मणा”— याकि दिल-दिमाग, बोलने-लिखने और व्यवहार— सत्य, धर्म और आत्मसंयम...

  • विचार मुकाबिल हो, तो तोप चलाओ?

    जिहाद इंच-इंच बढ़ रहा है। शान्ति और सहजता से। काफिरों के सहयोग से। क्योंकि काफिर एक विचार को तोप या रिश्वत से खत्म करने की जुगत में है। अपने प्रोपेगंडा पर खुद फिदा!  अतः जिहाद देश के सैकड़ों छोटे-छोटे इलाके प्रायः नि:शब्द रूप से धीरे-धीरे कब्जे में कर रहा है। यह सौ साल से अविराम जारी है। आगे अल्लाह जानता है! दो पाकिस्तानी थे: अली भाई तहला और आसिफ फौजी, तथा दो हिन्दुस्तानी: आदिल हुसैन थोकर और अहसान।  सरगना शायद हिन्दुस्तानी थोकर ही था। एक एक नाम और मिलते हैं: पाकिस्तानी हाशिम मूसा और हिन्दुस्तानी आसिफ अहमद शेख। यही चार...

  • जाति नहीं अब धर्म का मामला

    पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने हिंदू-मुस्लिम का जो राग छेड़ा और उसके बाद जम्मू कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान के आतंकवादियों ने धर्म पूछ कर हिंदुओं का जैसा नरसंहार किया उससे भारत की राजनीति बड़े पैमाने पर प्रभावित हो सकती है। भारत में पिछले  कुछ समय से राजनीति बदली थी। लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण बचाने की लड़ाई कारगर साबित हुई थी। भाजपा की मंदिर और धर्म के एजेंडे के बरक्स विपक्षी पार्टियों ने अपना गठबंधन बनाया था और अपना एजेंडा आगे किया था। वह एजेंडा धर्म की राजनीति को फेल करने वाला था। उसमें जाति...

  • पाकिस्तान तो चाहता है हिंदू-मुस्लिम हो

    विरोध कश्मीर में भी हो रहा है। मस्जिदों से आतंकवादियों की मजम्मत (भर्त्सना) की जा रही है। घटना के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने घायलों को अस्पताल पहुंचाया। खून देने के लिए अस्पतालों में लाइनें लग गईं। महबूबा मुफ्ती मीर वाइज फारुक उमर ने बंद का काल दिया। यह होना चाहिए। सही है। मगर शेष भारत में जाति, धर्म, हिन्दु मुस्लिम, राजनीति के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पहलगाम की आतंकवादी घटना की जितनी निंदा की जाए कम है। 36 साल के आतंकवादी दौर में टुरिस्टों पर इतना बड़ा हमला पहले कभी नहीं हुआ। सही यह है कि टुरिस्ट,...

  • बंगाल से दिल्ली तक हिंदू खतरे में है!

    एक पुराना शेर है ‘मरीज ए इश्क पे रहमत खुदा की, मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की’। हिंदुओं पर बढ़ते खतरे के लिहाज से यह शेर बहुत सटीक बैठता है। 11 साल पहले भारत में हिंदुओं को मजबूत करने वाली सरकार बनी। उससे पहले इस्लाम के खतरे में होने का जुमला सुनाई देता था। लेकिन अब पिछले 11 साल से देश में और देश के बाहर दुनिया भर में हिंदुओं के खतरे में होने या हिंदुओं पर खतरा बढ़ने का जुमला सुनाई दे रहा है। चारों तरफ हिंदू खतरे में हैं। पश्चिम बंगाल में बड़ा खतरा है तो असम...

  • तुम्हारे पास ‘विकल्प नहीं है चुपचाप साथ रहो !’

    'स्यूडो-सेक्यूलरिज्म' को दशकों से कोस-कोस कर जिन नेताओं ने अपनी जमीन फैलाई थी - सत्ता में आने के बाद वे हिन्दू समाज को तरह-तरह के ताने और नसीहतें बेधड़क देते रहते हैं। हिन्दू धर्म, मंदिर, देवी देवताओं, और‌ शास्त्रों पर भी अपनी लनतरानियाँ सुनाते हैं। वे यह सब इस तरह करते, बोलते हैं जैसे कि वे स्वयं हिन्दू समाज के अंग नहीं हैं! उस से अलग और ऊपर हैं। तब हिंदुओं को उन्हे खरी-खोटी सुनाने का कोई अधिकार नहीं है। तब वे बेधड़क कहते हैं कि 'हम ने हिन्दुओं का ठेका नहीं ले रखा!' हिन्दू पीड़ा का कारोबार – 2...

  • पीड़ित की पीड़ा का न हिसाब और न अध्ययन

    हिंदूओं पर जु्ल्म, अत्याचार की अनगिनत घटनाएं, विवाद और नीतियों के उदाहरण हैं। मगर इन सभी घटनाओं, परिघटनाओं पर तथ्यगत प्रस्तुति, आकलन, और चर्चा से हमारे प्रभावशाली राजनीतिक-बौद्धिक वर्ग को परहेज रहा है। यहाँ तक कि अकादमिक शोध या तथ्य-संकलन तक लुप्त है। उपर्युक्त सभी घटनाओं, परिघटनाओं पर कोई प्रतिष्ठित पुस्तक या पर्चा तक ढूँढने से ही मिले, जिस की देश-विदेश में कद्र हुई हो। इतना विराट बौद्धिक शून्य - समस्या समाधान का उपाय तो क्या, समस्या का आकलन तक गायब! हिन्दू पीड़ा का कारोबार – 1 अभी पाँच वर्ष भी नहीं हुए, जब देश की आंतरिक सुरक्षा का सीधा...

  • हम हिंदुओं की भूख!

    संभवतया पूरी दुनिया में हर नस्ल, हर धर्म के मुकाबले में यह भूख सर्वाधिक अंधी है! यों भूख मनुष्य को दौड़ाती है, जिंदा रखती है, दिल-दिमाग में ऊर्जा बनाती है लेकिन मनुष्य को भेड़िया बनाए, यह भारत का विशेष ट्रेडमार्क है! इसी से हिंदुओं का गुलामी का बेजोड़ इतिहास है! आखिर मुसलमान, अंग्रेज और विदेशी आक्रांताओं ने हिंदुओं पर राज क्यों किया?  इसलिए क्योंकि भेड़ और भेड़ियों के जंगल का राजा हमेशा वह शेर होता है, जो न भेड़ जैसा निर्बल होता है और न भेड़ियों जैसा भूखा! शेर की शारीरिक भूख पूरी हुई नहीं कि फिर वह संतुष्ट होता...

  • बांग्लादेश पर संघ का प्रस्ताव

    बेंगलुरू। कर्नाटक के बेंगलुरू में चल रही राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति पर विचार किया गया। शनिवार को बैठक के दूसरे दिन बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादी तत्वों के हाथों हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हिंसा, अन्याय और उत्पीड़न के मामले पर गंभीर चिंता जताई गई। शनिवार को आरएसएस ने इस मसले पर एक प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि हिंदुओं का उत्पीड़न मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक गंभीर मामला है। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने कहा कि पिछले साल हुई हिंसा के...

  • होली के रंग में राजनीति की भंग

    भारत में जब कोई किसी को कहता है कि ‘ज्यादा राजनीति मत कीजिए’ तो इसका मतलब होता है कि गलत काम मत कीजिए, साजिश या धोखा मत कीजिए, भड़काऊ काम मत कीजिए या लोगों को लड़वाइए मत। सोचें, भारत में राजनीति शब्द कैसे नकारात्मक अर्थों में रूढ़ हो गया है! इस राजनीति का शिकार भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था बन रही है तो समाज व्यवस्था और धार्मिक व निजी व्यवहार और तीज त्योहार भी बन रहे हैं। यह अचानक नहीं हुआ है कि इस साल होली से पहले सामाजिक स्तर पर इतना विभाजन दिख रहा है। यहां तक पहुंचने की शुरुआत...

  • मीडिया ने होली पर भी चढ़ाए नफरत के रंग !

    आज क्या प्रासंगिकता है औरंगजेब की? प्रसंग तो है अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का और उसके यह कहने का हमने जब भारत की कलई खोल दी तो वह सीधे रास्ते पर आ गया। इसका कड़ा विरोध नहीं होना चाहिए था? मगर हो रहा है औरंगजेब का। उसकी कब्र तक हटाने की बात कह रहे हैं। क्यों? ट्रंप के सामने हम झुक गए यह बात छुपाने के लिए।...इस बार होली के नाम पर लोगों को बताना पड़ेगा। लोग समझते हैं। लेकिन मीडिया इस तरह इकतरफा दिखाता, लिखता है कि लोगों के सामने दूसरा पक्ष जो सच का है वह आ...

  • जो है वह कांग्रेस की देन!

    Congress : मैं इन दिनों ‘जनसत्ता’, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय के अपने संस्मरण खंगालता हुआ हूं। और वह सच्चाई उभरती है कि कैसे मुसलमान ने गांधी-नेहरू परिवार की लुटिया डुबोई। वामपंथियों और अहमद पटेल ने हिंदुओं में तुष्टीकरण की कीर्तिं बनवाई। कोई न माने इस बात को लेकिन तथ्य है कि 1971 में बांग्लादेश के निर्माण से भारत का मुसलमान इंदिरा गांधी से छिटका था। संजय गांधी की जनसंख्या नियंत्रण धुन को मुस्लिम समुदाय ने अपने खिलाफ माना। आपातकाल में दिल्ली के तुर्कमान गेट, जामा मस्जिद क्षेत्र की साफ-सफाई तथा नसबंदी अभियान से उत्तर भारत का मुसलमान...

  • भागवत की बात का क्या मतलब है?

    राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कुछ समय पहले कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की जरुरत नहीं है। अब फिर उन्होंने कहा है कि कुछ लोग मंदिर और मस्जिद का विवाद छेड़ कर हिंदुओं का नेता बनना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला अलग था। वह आस्था का मामला था। लेकिन अब मंदिर और मस्जिद का विवाद नहीं छेड़ना चाहिए। मोहन भागवत ने जब पहली बार कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग खोजने की जरुरत नहीं है उसके बाद से मस्जिदों में शिवलिंग खोजने की घटनाओं में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई...

  • नाजुक दौर में मुसलमान विवेक न छोड़े

    भारत के मुसलमानों को चाहिये कि वे कट्टरपंथी और दहशतगर्दों से बचकर रहे। इतना ही नहीं इनको पकड़वाने और इनके हौसले नाकामयाब करने में सक्रिय हों।... उम्मीद की जानी चाहिये कि भारत के मुसलमान वक्त के इस नाजुक दौर में परिपक्वता और होशियारी का परिचय देंगे ताकि हर परिवार में खुशहाली और अमन चैन बढ़े, नफरत और बैर नहीं।   हर जमात में शरीफ लोगों की कमी नहीं होती। मुसलमानों में भी नहीं है। चाहे भारत के हों या पाकिस्तान के। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर इम्तियाज अहमद उन मुसलमानों में से थे जिन्होंने भारत में इस्लाम की हालत पर...

  • बच्चे पैदा करने से ज्यादा जरूरी हिंदू बच्चों को भेड़ नहीं सत्यवादी इंसान बनाएं!

    अपने सिन्हा साहब ने दिल्ली लौट पुश्तैनी प्रदेश के हाल बताए। लखनऊ के महानगर इलाके में उनके भाई-बंदों का घर है। वही रूके तो सामने स्कूल के लाउडस्पीकर से लगातार शोर से परेशान हुए। यह स्कूल उनके देखते-देखते लड़के-लड़कियों का इंटर स्कूल हुआ। उसमें मंदिर बना, भगवा छाया। लेकिन पहले कभी लाउडस्पीकर से शोर नहीं था। गणपति बप्पा मोरिया की वंदना से लेकर फिल्मी गानों (देशभक्ति, देवी-देवताओं) का सुबह आठ बजे से ही शोर। भाई से पूछा क्या हमेशा रहता है? हां, ऐसे ही है। एक सुबह शोर हुआ तो कौतुकवश सिन्हाजी छत पर जा कर स्कूल के प्रांगण का...

  • उपसंहारः मध्यकाल की ओर!

    हम हिंदुओं की नियति है कि आगे बढ़ते हैं, फिर पीछे लौटते हैं। आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाते हैं और पुरातन में लौटते हैं! उदारवाद अपनाते हैं अनुदारवादी कन्वर्ट होते हैं। विकसित भारत का सपना बताते हैं और सौ करोड़ लोगों को खैरात बांटते दिखते हैं। एकता-अखंडता की रक्षा के वीर योद्धाओं, छप्पन इंची छाती का हल्ला होता है लेकिन उन्हीं से विलाप-प्रलाप में सुनते हैं कि बंटोंगे तो कटोगे! अंततः सारे दुखिया “दुश्मन” बनाम “दुश्मन” के इतिहास द्वंद्व में खौलते हुए! और मध्यकाल लौटता हुआ।  हम हिंदू चाहते क्या है? -6 वह (हिंदू राजवंश का आखिरी शासक सुहादेव) "एक...

  • मुसलमान को धिम्मी बनाकर रखेंगे या धर्मांतरित करेंगे या मारेंगे?

    कितना खराब है जो भारत ने संविधान में ‘सेकुलर’ रखा हुआ है और व्यवहार उस हिंदूपने का है, जिसमें न उद्देश्य मालूम है और न स्पष्टता और न बहादुरी व ईमानदारी है! ले देकर यह सनक है कि मुसलमान ने ऐसा किया, तो हम भी वैसा करें। अर्थात इतिहास का बदला लेना है! यदि यह प्रण, यही कसौटी है तो दिल्ली का प्रधानमंत्री, लखनऊ का वजीर क्या मुसलमान को वैसे मारेगा जैसे महमूद गजनी, कुतुबुद्दीन ऐबक ने Hindu को मारा, उन्हें धर्मांतरित किया? हम हिंदू चाहते क्या है? -4: इतिहास को झगड़ालू मान कोई उसे भुलाए या महान मान चिकना-चुपड़ा बनाए...

  • संविधान में ‘सेकुलर’ और बगल में बुलडोजर!

    Hindu: हम हिंदू चाहते क्या हैं?- 4 : ‘पानीपत की तीसरी लड़ाई’, ‘बंटोंगे तो कटोगे’, ‘दुश्मन’ तथा उसकी “प्रकृति और डीएनए” के जुमलों का नतीजा अब लोक व्यवहार में है। हिंदू सोसायटी में मुसलमान वर्जित तो हिंदू व मुस्लिम अपने-अपने घेटो में गोलबंद होते हुए। हिंदुओं ने मानों मान लिया है मोदीजी, शाहजी, योगीजी और संघ शक्ति से हम हिंदू राष्ट्र हैं। तभी ‘इस देश में रहना है तो जय श्रीराम’ कहना होगा! वंदे मातरम् कहना होगा। या यह संकल्प कि ‘दुश्मनों’ से हम हमारे पूर्वजों के धर्मस्थानों को खाली कराएंगे आदि-आदि। एक निश्चय है कि ऐसा कुछ करना है,...

  • समस्या मुसलमान से नहीं  हिंदू ‘निरुद्देश्यता’ से है!

    हम हिंदू चाहते क्या हैं?: सोचें, क्या हम हिंदू वैसे हो सकते हैं, जैसे इस्लाम के बंदे हैं? क्या सनातनधर्मियों का व्यवहार इस्लाम के मंतव्य, उद्देश्य, राजनीति (दारूल हरब, दारूल इस्लाम, विश्वासी, धिम्मी, काफिर के सियासी दर्शन) जैसा हो सकता है? और आधुनिक युग में ऐसा होना या इसकी कोशिश करना क्या ठीक होगा? सवाल को इजराइल व नेतन्याहू के उदाहरण से समझें। निश्चित ही इतिहास के झरोखे में यहूदियों से अधिक ‘जाति विध्वंस’ हिंदुओं (विशेषकर कश्मीर का मध्यकाल) का था। लेकिन यहूदी (अब्राहम) पश्चिमी सभ्यता के पितामह हैं। दुनिया भर में भटकते, खटकते, मरते हुए भी यहूदियों ने अपनी जिजीविषा...

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