Wednesday

30-04-2025 Vol 19

पाकिस्तान तो चाहता है हिंदू-मुस्लिम हो

विरोध कश्मीर में भी हो रहा है। मस्जिदों से आतंकवादियों की मजम्मत (भर्त्सना) की जा रही है। घटना के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने घायलों को अस्पताल पहुंचाया। खून देने के लिए अस्पतालों में लाइनें लग गईं। महबूबा मुफ्ती मीर वाइज फारुक उमर ने बंद का काल दिया। यह होना चाहिए। सही है। मगर शेष भारत में जाति, धर्म, हिन्दु मुस्लिम, राजनीति के सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

पहलगाम की आतंकवादी घटना की जितनी निंदा की जाए कम है। 36 साल के आतंकवादी दौर में टुरिस्टों पर इतना बड़ा हमला पहले कभी नहीं हुआ। सही यह है कि टुरिस्ट, तीर्थ यात्रियों पर हमला कभी नहीं हुआ। मगर इस बार यह इतना बड़ा हमला और इसके बाद भाजपा देश भर में यह कहकर धार्मिक भावनाएं और भड़काने लगी है कि जाति पूछकर नहीं धर्म पूछकर हमला हुआ है!

क्या मतलब है इसका? क्यों यह देश भर में हमेशा तनाव और अशांति का माहौल चाहती है? सच है कि जाति पूछकर हमला नहीं होता। पूछने की जरूरत ही नहीं है। जाति जानते हैं। इसलिए जाति जानकर ही हमला होता है। देश में जाति के नाम पर कितना अत्याचार, भेदभाव होता है यह इस समय बताने की चीज नहीं है। भाजपा पता नहीं क्यों चाहती है? उनके आई टी सेल ने व्ह्ट्स एप के माध्यम से इस तरह और आग में घी डालने की कोशिश की है। और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस पर साफ साफ हिन्दु मुसलमान करके!

कह तो वे यह रहे थे कि देश को गृह युद्ध में चीफ जस्टिस आफ इंडिया संजीव खन्ना ने डाला है! यहां सुप्रीम ने क्या किया? यहां तो पाकिस्तान ने भारतीयों पर आतंकवादी हमला करवाया है। 28 निर्दोष लोगों की जान ली है। और भाजपा के राज्यों के आफिशियल ट्वीटर हेंडल से कहा जा कहा है कि जाति नहीं पूछी, धर्म पूछा है। मतलब धार्मिक आधार पर लोगों को भड़काना। तो चीफ जस्टिस कहां हैं? या तो पाकिस्तान है या भाजपा। खुद निशिकांत दुबे ने घटना के तुरंत बाद दुःख, निंदा कुछ नहीं करते हुए सवाल किया कि कि हत्या धर्म के आधार पर है या नहीं?

पूरे देश में माहौल गरमाया जा रहा है। मणिपुर पर एक शब्द नहीं बोला था। दो साल हो रहे हैं। वहां तो बाकायदा गृह युद्ध है। दो समुदाय आपस में जाति, समुदाय के नाम पर ही लड़ रहे हैं। शेष भारत में उसे दोहराने से क्या मिल जाएगा। शांति तो मिलेगी नहीं। हां बस जो पाकिस्तान चाहता है वह जरूर पूरा हो जाएगा। सावधान रहने की जरूरत देश के प्रधानमंत्री को है। आतंकवाद के 36 साल के दौर में कई प्रधानमंत्री हुए। और सभी पार्टियों के या उनके समर्थन से हो गए। ऐसे परीक्षा के कई मौके आए।

मगर हर प्रधानमंत्री  ने जिनमें भाजपा के वाजपेयी भी थे दो बातों का हमेशा ख्याल रखा। एक पाकिस्तान का हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा सफल न होने पाए। दूसरे अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में यह मैसेज जाए कि भारत के सभी राजनीतिक दल और जनता एक है।

पाकिस्तान चाहता है देश में हिंदू-मुस्लिम हो ( पहलगाम)

याद रहे कि कांग्रेस के नरसिंहराव ने भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय प्रतिनिधि मंडल के नेता बनाकर 1994 में संयुक्त राष्ट्र भेजा था। 1994 याद रहे। यह वह साल था जब केन्द्र सरकार कश्मीर में अमन की वापसी के लिए काम कर रही थी। जिसका महत्वपूर्ण पहलू था वहां लोकप्रिय सरकार की स्थापना। आंतकवाद का सबसे भीषण समय था वह। हम वहीं थे। 1990 से लेकर 2000 तक वहीं रहकर आतंकवाद कवर किया है। और उसके बाद से भी लगातार कर रहे हैं। सरकारों ने देश को सबसे उपर रख कर काम किया और राजनीति को बिल्कुल महत्व नहीं दिया उसी का परिणाम था कि 1996 में केन्द्र सरकार वहां विधानसभा चुनाव करवाने में सफल हो गई।

1994 हमने इसलिए कहा कि ध्यान रखना कि उस समय केन्द्र सरकार फारुख अब्दुल्ला को वापस राजनीति में सक्रिय करने के लिए तैयार कर चुकी थी। फारूक का कांग्रेस से कोई संबंध नहीं था। उल्टे वे जब वाजपेयी की सरकार केन्द्र में बन गई तो उसे समर्थन देने लगे थे। अपने बेटे उमर अब्दुल्ला को राजनीति में एंट्री ही भाजपा के साथ करवाई थी। वाजपेयी सरकार में मंत्री बनवा कर।

खैर तो 1994 में जब नरसिंहा राव ने मानवाधिकार पर यूएन में भारत के खिलाफ रखे पाकिस्तान के एक प्रस्ताव का जवाब देने के लिए जो प्रतिनिधिमंडल भेजा उसमें वाजपेयी के अलावा फारुक भी शामिल थे। बाद में 1996 में वही मुख्यमंत्री बने। सामान्य स्थिति की वापसी की शुरूआत हुई। बीच में कई उतार चढ़ाव आते रहे। भाजपा ने फारूक के बाद कश्मीर के दूसरे नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद और फिर उनकी बेटी के साथ भी समझौता किया। सरकार चलाई। कश्मीर हर दौर से गुजरा। मोदी ने उसका विभाजन किया। पूर्ण राज्य से केन्द्र शासित प्रदेश बनाया। 370 खतम की। और दावे किए कि उनके इन कदमों से कश्मीर में आतंकवाद खतम हो गया।

मगर आतंकवाद सीमा पार था। वहां से संचालित हो रहा था। और वहां मोदी ने कोई स्पष्ट और कड़ा संदेश देने के बदले उनसे अजीब दोस्ती के रिश्ते बनाए। 2014 में अपने शपथ ग्रहण में नवाज शरीफ को बुलाया। और खुद बिना बुलाए जिसे इनका मीडिया बहुत गर्व से कहता है चौंका दिया जैसे चौंकाना कोई गुण होता हो नवाज शरीफ को बुलाने के अगले साल ही 2015 में पाकिस्तान चले गए।

याद रहे कि पाक समर्थित आतंकवाद के इस 36 साल के दौरान कांग्रेस के दो प्रधानमंत्री रहे नरसिंहा राव और मनमोहन सिंह मगर एक भी पाकिस्तान नहीं गया। और भाजपा के दोनों वाजपेयी और मोदी पाकिस्तान गए। पाकिस्तान जाने में कोई बुराई नहीं है। मगर कूटनीति में इससे होता यह है कि पाकिस्तान को अन्तरराष्ट्रीय जगत में यह कहने का मौका मिल जाता है कि अगर हम आतंकवाद फैला रहे हैं तो भारत के प्रधानमंत्रियों के साथ यह अच्छे संबंध कैसे हैं?

अन्तरराष्ट्रीय डिप्लोमेसी में एक माहौल बनाना पड़ता है कि जब तक यह आंतकवाद नहीं रोकेगा तब तक संबंध सामान्य नहीं हो सकते। कांग्रेस के दोनों प्रधानमंत्री नरसिंहा राव और मनमोहन सिंह यह स्पष्ट मैसेज पूरी दुनिया को देते थे। पाकिस्तान इससे दबाव में रहता था। आपने देखा कि मोदी से दोस्ती के बाद पाकिस्तान ने सबसे बड़े आंतकवादी हमले किए। 2015 में मोदी जी नवाज शरीफ की पोती की शादी में शामिल होकर आए और अगले साल 2016 में सीमा पार के आतंकवादियों ने पठानकोट एयरबेस पर पर हमला कर दिया।

और विडंबना यह कि इसकी जांच के लिए पाकिस्तान का संयुक्त जांच चल ((जेआईटी) जिसमे भारत विरोधी आतंकवाद को चलाने वाला पाकिस्तान का खुफिया संगठन आईएसआई भी था पठानकोट आया। क्या कहेंगे इसे?

ऐसे ही 2019 में पुलवामा का भयानक आतंकवादी हमला था। जिसके बारे में उस समय के राज्यपाल सतपाल मलिक ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने मुझसे कहा कि चुप रहो। सब चुप ही रहे। आज तक मालूम नहीं हुआ कि किसने किया। कौन दोषी। 40 जवान चले गए। मोदी जी ने इन जवानों के नाम पर वोट भी मांग लिया। और 2019 लोकसभा जीत गए। और अब यह पहलगाम का भयानक हमला। जागो हिन्दू जागो के मैसेज फैलाए जा रहे हैं। भड़काऊ नारों के साथ जुलूस निकाले जा रहे हैं।

विरोध वहां भी हो रहा है कश्मीर में। मस्जिदों से आतंकवादियों की मजम्मत (भर्त्सना) की जा रही है। घटना के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने घायलों को अस्पताल पहुंचाया। खून देने के लिए अस्पतालों में लाइनें लग गईं। महबूबा मुफ्ती मीर वाइज फारुक उमर ने बंद का काल दिया। यह होना चाहिए। सही है। मगर शेष भारत में जाति, धर्म, हिन्दु मुस्लिम, राजनीति के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। कांग्रेस के समय जब कोई घटना होती थी तो प्रधानमंत्री से लेकर सोनिया गांधी जो सरकार में कहीं नहीं थीं तक से सवाल होते थे। भाजपा इस्तीफे मांगती थी।

आज सुरक्षा क्यों नहीं थी। इतना टुरिस्ट वहां था, मगर कोई सुरक्षा नहीं। इन्टेलिजेंस कहां थी? जैसे सवाल कोई नहीं पूछ रहा। उल्टा मीडिया से लेकर भाजपा तक माहौल खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। इससे पाकिस्तान को  फायदा होगा इसमें कोई शक नहीं। फिर भाजपा ऐसा क्यों कर रही है? अभी तो कोई चुनाव भी नहीं है। क्या वह नफरत विभाजन की आग हमेशा जलाए रखना चाहती है? क्या होगा देश इससे बचेगा? बहुत मुश्किल सवाल बहुत मुश्किल दौर है।

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Pic Credit: ANI

शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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