व्यापार वार्ताओं में डॉनल्ड ट्रंप का मकसद अपने देश की कंपनियों के लिए अनुकूल स्थितियां बनाना है। इसीलिए पिछले फरवरी से स्पेस-एक्स के पक्ष में भारत में अचानक बनते गए माहौल को ट्रंप के ट्रेड वॉर के संदर्भ में देखा गया है।
जमीन तो पहले ही तैयार कर ली गई थी। अब औपचारिकता भी पूरी हो गई है। दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति और इस समय अमेरिकी प्रशासन में खास रसूख रख रहे इलॉन मस्क की कंपनी स्पेस-एक्स की उपग्रह इंटरनेट सेवा स्टारलिंक को भारत में विनियमन संबंधी मंजूरी दे दी गई है। स्पेस-एक्स ने इसके लिए तीन साल पहले अर्जी दी थी।
उसे मंजूरी इस समय मिली है, जब भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते की वार्ता चल रही है। ये साफ हो चुका है कि विभिन्न देशों के साथ जारी ऐसी व्यापार वार्ताओं में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का मकसद अपने देश की कंपनियों के लिए अनुकूल स्थितियां बनाना है।
स्टारलिंक मंजूरी का व्यापार संदर्भ
इसीलिए पिछले फरवरी से स्पेस-एक्स के पक्ष में भारत में अचानक बनते गए माहौल को ट्रंप के ट्रेड वॉर के संदर्भ में देखा गया है। इसके पहले स्पेस-एक्स का रिलायंस जिओ और भारती एयरटेल के साथ टकराव की खबरें आम थीं। दोनों भारतीय कंपनियां उपग्रह इंटरनेट सेवा के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी पर जोर दे रही थीं, जबकि इलॉन मस्क का दबाव था कि उन्हें इसका आवंटन प्रशासनिक फैसले के जरिए किया जाए।
2-जी स्पेक्ट्रम मामले में दिए अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम जैसे सार्वजनिक संसाधन के मनमाने आवंटन पर रोक लगा दी थी। इसलिए इस विवाद में जियो और एयरटेल का पलड़ा भारी नजर आता था।
मगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी में हुई अमेरिका यात्रा के तुरंत बाद उन दोनों कंपनियों ने खुद स्पेस-एक्स से करार कर भारत में उसकी सेवा विक्रेता बनने का एलान कर दिया। इस आश्चर्यजनक घटनाक्रम के साथ ही स्टारलिंक के भारत आने की राह निर्बाध हो गई। उसके बाद गेंद भारत सरकार के पाले में थी।
कुछ रोज पहले दूरसंचार विभाग ने उपग्रह संचार कंपनियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए। उसके बाद स्टारलिंक को जरूरी सरकारी मंजूरी प्रदान कर दी गई है। ये सब दोहराना जरूरी इसलिए है, क्योंकि ये घटनाक्रम भारतीय बाजार में कथित मुक्त प्रतिस्पर्धा के दावों पर गंभीर सवाल है। यह क्रोनी कैपिटलिज्म के जरिए मोनोपॉली घरानों के अनुकूल नीतियां बनने के आरोपों को बल प्रदान करता है।
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