nayaindia Bihar literacy rate Nitish Kumar प्रचार राज का हश्र?

प्रचार राज का हश्र?

नीतीश कुमार की सरकार की ‘सुशासन’ की छवि के अवशेष आज भी बिहार में मौजूद हैं। लेकिन इस ‘सुशासन’ के 17-18 साल बाद आज बिहार में शिक्षा की क्या स्थिति है? देश में सबसे ज्यादा निरक्षरता दर वहीं क्यों है?

आधुनिक काल में धुआंधार प्रचार कर किसी की अच्छी या बुरी छवि बनाई जा सकती है। खास कर अगर कोई नेता समाज के अभिजात्य वर्ग की पसंद हो, तो उसकी हकीकत से विपरीत छवि का निर्माण भी किया जा सकता है। अध्ययनों को छोड़ भी दें, तो यह बात हम हालिया दशकों के अनुभव के आधार पर कह सकते हैं। जिन कुछ नेताओं की इस दौर में छवि का खूब निर्माण हुआ, उनमें एक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। उनकी सरकार की ‘सुशासन’ की छवि के अवशेष आज भी बिहार में मौजूद हैं। लेकिन इस ‘सुशासन’ के 17-18 साल बाद आज बिहार में शिक्षा की क्या स्थिति है?

लोकसभा में यह बताया गया है कि बिहार की साक्षरता दर देश में सबसे कम 61.8 प्रतिशत है। जबकि बताया यह जाता था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सबसे ज्यादा ध्यान शिक्षा स्वास्थ्य एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र पर ही है। गौरतलब है कि नीतीश सरकार सचमुच शिक्षा पर बड़े बजट का आवंटन करती रही है। मसलन, वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट में शिक्षा पर 40,450 करोड़ की भारी-भरकम राशि का प्रावधान किया गया है। 2022-23 में यह राशि 39,191 करोड़ थी।

बिहार के अलावा छत्तीसगढ़ ही एक ऐसा राज्य है, जिसने शिक्षा के मद में बजट का सबसे अधिक हिस्सा आवंटित किया है। लेकिन साक्षरता के मामले में इन दोनों राज्यों का प्रदर्शन अच्छा नहीं है। अगर कोई प्रयास परिणाम ना दे, तो उस पर सवाल जरूर उठाए जाएंगे। इसलिए अब दोनों राज्य कठघरे में हैं। स्कूलों में बुनियादी जरूरतों का अभाव, प्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों की कमी, बीच में स्कूल छोड़ देना, आर्थिक असमानता, लैंगिक भेदभाव और शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होना निरक्षरता के प्रमुख कारण होते हैं। जाहिर है, इन कारणों को दूर करने पर ध्यान नहीं दिया गया है।

इसलिए इस आलोचना में दम है कि बिहार में सरकार की दिलचस्पी केवल स्कूल बिल्डिंग आदि बनाने में रही है, ना कि शिक्षा का स्तर सुधारने में। वैसे एक जन हित याचिका की सुनवाई के दौरान हाल में पटना हाईकोर्ट को बताया गया था कि राज्य के स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी है।

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