nayaindia Satish Kaushik सतीश कौशिकः कॉमेडियन की छवि में फंसा अभिनेता

सतीश कौशिकः कॉमेडियन की छवि में फंसा अभिनेता

सतीश कहते थे कि कॉमेडी हो या अभिनय का कोई और रूप, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आपके संवाद, आपका लहज़ा और आपकी भंगिमा उसे कितना विश्वसनीय बना पाते हैं। इसीलिए वे चाहते थे कि कॉमेडियन की बजाय लोग उन्हें केवल एक्टर कहें, यानी हर तरह की भूमिका करने वाला। सतीश कौशिक की बेटी वंशिका केवल दस साल की है। असल में छब्बीस बरस पहले अपने दो साल के बेटे की मौत से वे इतने हिल गए थे कि संतान के बारे में सोचना छोड़ दिया।

परदे से उलझती ज़िंदगी

लंदन में बांग्लादेशियों की बहुलता वाले एक इलाके में रह रहे चानू ने अपने टेलेंट की नाकद्री देख नौकरी छोड़ दी और कर्ज़ में फंसने लगा। उसकी पत्नी उम्र में उससे बहुत छोटी है और किसी और से प्रेम करती है। चानू चाहता है कि परिवार को लेकर बांग्लादेश लौट जाए, मगर बेटियां इसके लिए तैयार नहीं हैं। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर वाले कांड के बाद पूरे पश्चिम में मुसलमानों को अलग निगाह से देखा जाने लगा था, जबकि चानू के इलाके में कुछ लोग मुस्लिम एकजुटता के नाम पर कट्टरता बढ़ाने में जुटे थे। चानू उनका विरोध करता है। अपने भीतरी और बाहरी दोनों ही हालात से असंतुष्ट चानू एक दिन परिवार को वहीं छोड़ बांग्लादेश लौट जाता है, इस उम्मीद के साथ कि पत्नी और बेटियां बाद में आ जाएंगी।

बांग्लादेशी मूल की ब्रिटिश लेखिका मोनिका अली के उपन्यास पर आधारित 2007 की ब्रिटिश फिल्म ‘ब्रिक लेन’ में यह गंभीर भूमिका सतीश कौशिक ने की थी। कई बार अपना इंटरव्यू करने वालों को वे इस फिल्म की याद दिलाते थे ताकि उन्हें केवल कॉमेडियन नहीं समझा जाए। वे कहते थे कि असली सतीश कौशिक को देखना है तो वह इस फिल्म में है। उन्होंने ‘स्कैम 92’, ‘कर्म युद्ध’, ‘ब्लडी ब्रदर’ और ‘गिल्टी माइंड्स’ जैसी वेब सीरीज़ में भी अलग तरह की, यहां तक कि नेगेटिव भूमिकाएं भी कीं। लेकिन बॉलीवुड में अपनी कोई छवि नहीं बनने देना शायद सबसे मुश्किल काम है। और उससे भी मुश्किल है उस बन चुकी छवि से बाहर निकलना।

वैसे सतीश कौशिक अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद यही सोच कर मुंबई आए थे कि जॉनी वाकर, महमूद और असरानी जैसा करके दिखाना है। फिर वे छवि को कैसे ठुकरा सकते थे। ‘जाने भी दो यारो’ एक ऐसी फिल्म है जिसे आप भूल नहीं सकते। इसमें मुंबई के म्युनिसिपल कमिश्नर को कहते दिखाया गया कि ‘मैं अमेरिका हो के आया, बहुत एडवांस्ड कंट्री, पानी का लाइन अलग, सीवर का लाइन अलग।’ इस फिल्म के डायलॉग सतीश कौशिक ने ही लिखे थे और इसमें उन्होंने अभिनय भी किया था। फिल्मों में यही उनकी शुरूआत थी। हालांकि उसी साल यानी 1983 में उन्होंने ‘वो सात दिन’, ‘मासूम’ और ‘मंडी’ में भी काम किया। लेकिन उन्हें बाज़ार का साथ मिला दो साल बाद आई ‘मि. इंडिया’ में कलेंडर की भूमिका से। यह उनका कॉमेडियन के तौर पर स्थापित होने का प्रारंभ था। इस मामले में वे खुद ‘राम लखन’, ‘जमाई राजा’, ‘साजन चले ससुराल’, ‘मिस्टर एंड मिसेज़ खिलाड़ी’, ‘बड़े मियां छोटे मियां’ और ‘घरवाली बाहरवाली’ के नाम गिनवाते थे। उन्होंने टीवी सीरियल भी बनाए और खुद उनमें काम भी किया। उनके और पंकज कपूर के अभिनय ने फिल्मी गीतों के एक काउंटडाउन शो ‘फ़िलिप्स टॉप टेन’ को यादगार बना दिया। करीब ढाई दशक पहले ज़ी टीवी के इस शो में पंजाब से आए दो भाइयों की मूर्खता भरी नोकझोंक और मान-मनौव्वल के किस्से थे। सतीश इसमें छोटे भाई नोनी सिंह बने थे जिसे बड़े भाई प्रोफेसर नीटू सिंह की हर बात माननी पड़ती है, मगर जो छोटे भाई का पूरा ख्याल भी रखता है। सतीश कौशिक ने खुद इसका निर्माण किया था।

वे इस कदर खुशमिज़ाज और हाज़िरजवाब थे कि लोग उन्हें वैसे भी कॉमेडियन समझ लेते थे। जब वे मुंबई आए तो अभिनेता राजा बुंदेला के साथ निर्माता व निर्देशक अमित खन्ना से काम मांगने खार में उनके दफ्तर गए, मगर खन्ना साहब ने इन दोनों को डपट कर भगा दिया। सतीश कहते थे कि इससे उनका मूड ऐसा खराब हुआ कि सामने के ढाबे में जाकर खूब सारा खाना खाकर ही ठीक हो पाया। बोनी कपूर की फिल्म ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ में उन्होंने पहली बार निर्देशन दिया था। यह अपने समय की बेहद महंगी और बेहद फ्लॉप फिल्म थी। इसकी रिलीज़ के अगले दिन सुबह बोनी कपूर ने उन्हें बताया कि फिल्म पिट गई है। उस समय ये लोग कार में कहीं जा रहे थे और सतीश वहीं, चलती कार में ही, जोर-जोर से रोने लगे। हैदराबाद के जिस होटल में वे ठहरे हुए थे वहां से उन्होंने मुंबई में अपनी पत्नी शशि को फोन करके फिल्म के पिटने की बात बताई और कहा कि मैं ऊपर से कूद कर खुदकुशी करने जा रहा हूं। पत्नी शशि और अनिल कपूर, रूमी जाफरी और अनुपम खेर आदि दोस्त सब हड़बड़ा गए। बाद में पता चला कि वे तो होटल के कमरे में आराम से सो रहे थे जो कि था भी फर्स्ट फ्लोर पर। पहली फिल्म पिटने के बाद भी उन्हें निर्देशन के मौके मिलते चले गए और 1999 में ‘हम आपके दिल में रहते हैं’ की कामयाबी ने उन्हें बड़ा निर्देशक बना दिया। अपने निधन से कुछ ही दिन पहले उन्होंने ‘कागज 2’ की शूटिंग पूरी की थी। हंसल मेहता की आने वाली वेब सीरीज ‘स्कैम 2’ में उन्होंने काम किया है। इसी तरह कंगना रनौत की ‘इमरजेंसी’ में वे जगजीवन राम की भूमिका में दिखेंगे।

सतीश कहते थे कि कॉमेडी हो या अभिनय का कोई और रूप, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि आपके संवाद, आपका लहज़ा और आपकी भंगिमा उसे कितना विश्वसनीय बना पाते हैं। इसीलिए वे चाहते थे कि कॉमेडियन की बजाय लोग उन्हें केवल एक्टर कहें, यानी हर तरह की भूमिका करने वाला। सतीश कौशिक की बेटी वंशिका केवल दस साल की है। असल में छब्बीस बरस पहले अपने दो साल के बेटे की मौत से वे इतने हिल गए थे कि संतान के बारे में सोचना छोड़ दिया। फिर जब सरोगेसी से बिटिया का जन्म हुआ तो वे खुद सत्तावन साल के हो चुके थे। सरोगेसी का फैसला लेने में उन्होंने बहुत समय गंवा दिया। आज सब कह रहे हैं कि कॉमेडी में उनकी टाइमिंग कमाल की थी। मगर निजी ज़िंदगी के कुछ फैसलों में उनकी टाइमिंग सही नहीं रही।

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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