nayaindia Oscars award Songs Natu Natu परदे से उलझती ज़िंदगीः जब गोरों ने पेश किया ‘नाटू नाटू’
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परदे से उलझती ज़िंदगीः जब गोरों ने पेश किया ‘नाटू नाटू’

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मूल रूप से जूनियर एनटीआर और राम चरण को ही यह डांस करना था, और प्रेम रक्षित को ही इसे कोरियोग्राफ़ करना था। लेकिन समारोह से एक पखवाड़े पहले हमें बताया गया कि दोनों अभिनेता लाइव डांस को लेकर सहज नहीं हैं और वे कुछ अनुबंधों के कारण रिहर्सल के लिए लगातार अमेरिका में रह भी नहीं सकेंगे। उसके बाद हमने दो ऐसे लोगों की तलाश शुरू की जो स्टेज पर इन दोनों अभिनेताओं की जगह ले सकें।

कुछ लोगों को इस बात पर ऐतराज़ है कि जब 95वें ऑस्कर समारोह में ‘नाटू नाटू’ गाने को स्टेज पर लाइव पेश किया गया तो उसमें भारतीय या दक्षिण एशियाई नर्तक क्यों नहीं थे। अमेरिकी कोरियोग्राफ़र टैबिथा और नेपोलियन डियूमो की इस प्रस्तुत्ति में गायक तो काल भैरव और राहुल सिपलीगंज ही थे, लेकिन डांस करने वाले बीस लोगों में गोरों की भरमार थी। ऐतराज़ इस बात पर था कि ‘आरआरआर’ तो अंग्रेजों से विद्रोह की एक गाथा है, इसलिए गोरों को इस डांस में रखना ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरोध के भाव को कमज़ोर करता है। जवाब में ऑस्कर के इस कार्यक्रम के प्रोड्यूसर राज कपूर कहते हैं कि मूल रूप से जूनियर एनटीआर और राम चरण को ही यह डांस करना था, और प्रेम रक्षित को ही इसे कोरियोग्राफ़ करना था। लेकिन समारोह से एक पखवाड़े पहले हमें बताया गया कि दोनों अभिनेता लाइव डांस को लेकर सहज नहीं हैं और वे कुछ अनुबंधों के कारण रिहर्सल के लिए लगातार अमेरिका में रह भी नहीं सकेंगे। उसके बाद हमने दो ऐसे लोगों की तलाश शुरू की जो स्टेज पर इन दोनों अभिनेताओं की जगह ले सकें।

सैकड़ों लोगों के ऑडीशन के बाद अमेरिका के जैसन ग्लोवर और कनाडा के बिली मुस्तफ़ा को जब यह जिम्मेदारी सौंपी गई तब तक काफी समय निकल चुका था। ‘आरआरआर’ के लिए इस गाने की रिहर्सल यूक्रेन में तीस दिन चली थी और पंद्रह दिन में यह शूट हो पाया था। मगर जैसन और बिली को केवल चार दिन बल्कि कुल अठारह घंटे रिहर्सल के लिए मिले। फिर भी इन दोनों ने ‘नाटू नाटू’ को मानो परदे से ज्यों का त्यों स्टेज पर उतार दिया। राज कपूर का कहना था कि यह फिल्म पश्चिम में भी चली है और हम गोरे नर्तकों के जरिये इस मौके को इस गाने का ग्लोबल सेलीब्रेशन बनाना चाहते थे ताकि लगे कि नृत्य और संगीत दुनिया को एक कर सकने की ताकत रखते हैं।

बिली मुस्तफ़ा उस समय ब्राज़ील में छुट्टयां मना रहे थे जब उन्हें खबर मिली कि ऑस्कर में एक डांस के लिए ऑडीशन लिए जा रहे हैं। फटाफट उन्होंने वहीं से एक निजी जिम में अपना एक ऑडीशन वीडियो बना कर भेजा। सत्रह साल से म्यूज़िक और डांस के पेशे में सक्रिय मुस्तफा कहते हैं कि हमारे ‘नाटू नाटू’ को पूरा करते ही लॉस एंजिलिस के डोल्बी थिएटर में जो शोर उठा, जिस तरह लोग खड़े होकर तालियां बजा रहे थे और चिल्ला रहे थे, उन पलों को मैं कभी भूल नहीं सकूंगा, क्योंकि इन लोगों में कितने ही ऑस्कर विजेता शामिल थे। ऐतराज़ करने वालों की एक दलील यह भी है कि जूनियर एनटीआर की जगह डांस करने वाले बिली मुस्तफ़ा का संबंध लेबनान से भी है। बिली ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके किसी प्रदर्शन पर कोई ऐसी बात कह सकता है। उनके साथ स्टेज पर राम चरण की जगह लेने वाले जैसन ग्लोवर भी एक फ्रीलांस डांसर और एक्टर हैं।

वे कई बड़ी फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में काम कर चुके हैं। खुद राज कपूर पिछले पांच अकैडमी अवॉर्ड्स में को-प्रोड्यूसर रहे थे, मगर इस बार वे प्रोड्यूसर थे। उनकी पैदाइश दिल्ली की है। उनके माता-पिता दोनों शिक्षक थे। करीब दो दशक पहले वे कनाडा गए और कॉलेज के दिनों में ही हॉलीवुड जाने वाली अपनी दिशा तय कर ली। वे कई बार ग्रैमी और ऐमी अवॉर्ड्स कार्यक्रमों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। उनका कहना था कि बात क्योंकि भारत की थी, इसलिए मैं चाहता था कि यहां ऐसा ‘नाटू नाटू’ हो कि भारतीय गर्व महसूस करें। हैरानी की बात यह है कि इस बारे में ज्यादातर ऐतराज़ अमेरिका और कनाडा में रह रहे भारतीयों ने उठाए हैं। उनमें भी ज्यादातर म्यूजिक और डांस के पेशे वाले लोग हैं। तो क्या यह पेशेगत प्रतिद्वंद्विता का मामला है, क्योंकि भारत में तो ‘नाटू नाटू’ के लाइव प्रदर्शन को लेकर कोई विवाद नहीं है। यहां तो इस गाने की जीत का भारी स्वागत हुआ है। फिल्म उद्योग से लेकर संसद तक। इस स्वागत का अंदाज़ आप जूनियर एनटीआर और राम चरण को भारत लौटने पर हैदराबाद एयरपोर्ट पर उमड़ी भीड़ के कारण हुई असुविधा से भी लगा सकते हैं।

हाथी बना परिवार का सदस्य
पांच साल पहले 2018 में गुनीत मोंगा की ‘पीरियड, एंड ऑफ़ सेन्टेंस’ ने भी डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट का ऑस्कर जीता था। वे उसकी सह-निर्माता थीं। पांच निर्माताओं में से एक। यह डॉक्यूमेंट्री हापुड़ के एक गांव की उन महिलाओं पर बनी थी जिन्होंने सस्ते सैनिटरी पैड तैयार करने की जद्दोजहद में सफलता हासिल की। मगर वह अमेरिकी फिल्म थी। इस बार इसी श्रेणी में ऑस्कर जीतने वाली ‘द एलीफेंट व्हिस्परर्स’ में भी वे चार में से एक निर्माता थीं। लेकिन यह भारतीय फिल्म है। वैसे गुनीत मोंगा पहले ‘दैट गर्ल इन यलो बूट्स’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘पेडलर्स’, ‘लंच बॉक्स’, ‘मसान’, ‘ज़ुबान’ और ‘पगलैट’ जैसी फिल्में बना चुकी हैं। वे भी दिल्ली की हैं। उन्होंने इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन में डिग्री ली और मुंबई जाकर पहले एकता कपूर और फिर अनुराग कश्यप के साथ काम करके अपनी राह बनाई।

‘द एलीफेंट व्हिस्परर्स’ में उनकी एक सह-निर्माता कार्तिकी गॉन्साल्वेज हैं जो इसकी निर्देशक भी हैं और जो पुरस्कार लेने गुनीत के साथ स्टेज पर गईं। कार्तिकी की मां प्रिसिला गोन्साल्वेज़ ने इस फिल्म को लिखा है। उनके पिता टिमोथी गोन्साल्वेज़ आईआईटी मंडी के संस्थापक डायरेक्टर रहे हैं। कार्तिकी ऊटी में जन्मी थीं। वहां गुजरे बचपन में उन पर नीलगिरि के जंगलों का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे वाइल्डलाइफ़ फोटोग्राफी से होते हुए इंसान और जानवर के सहजीवन के मुद्दे पर फिल्म बनाने तक जा पहुंचीं। ‘द एलीफेंट व्हिस्परर्स’ बोमन और बेली नाम के पति-पत्नी पर बनी है जो हाथी के एक बेसहारा बच्चे को पालते हैं। इस फिल्म के लिए पांच साल तक कैमरा इन पति-पत्नी के साथ घूमा। कुल साढ़े चार सौ घंटों से भी ज्यादा लंबी फुटेज थी जिसे एडिट करके उनतालीस मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री बनी।

गुनीत मोंगा और कार्तिकी गोन्साल्वेज़ की फिल्म का कमाल देखिए कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बोमन और बेली को बुला कर सम्मानित किया है। केवल इस दंपति को नहीं बल्कि राज्य के दो हाथी शिविरों में रहने वाले सभी 91 श्रमिकों को भी मुख्यमंत्री ने एक-एक लाख रुपये पुरस्कार देने की घोषणा की। इन श्रमिकों को पर्यावरण के मुताबिक घर बनाने के लिए भी पैसे दिए जाएंगे और राज्य के जंगलों में दो एलीफेंट कैंप भी तैयार किए जाएंगे। यह सब स्टालिन को या किसी भी मुख्यमंत्री को वैसे भी करना चाहिए। मगर ‘द एलीफेंट व्हिस्परर्स’ को ऑस्कर मिलने के बाद वे ऐसा कर रहे हैं, इससे इस फिल्म का महत्व और बढ़ जाता है। इस उपलब्धि के बाद गुनीत मोंगा गायक हनी सिंह पर डॉक्यूमेंट्री बनाने जा रही हैं। उनकी गायकी, इस पेशे में उनके सामने आए उतार-चढ़ाव और उनके निजी जीवन की उठापटक, यह सब इसमें होगा। हो सकता है, इस विषय को लेकर लोग हैरान हों, मगर नेटफ्लिक्स ने इसकी घोषणा कर दी है।

ऑस्कर में राजनीति?
पहली बार भारतीय सिनेमा को ऑस्कर की तीन श्रेणियों में नॉमिनेशन मिले थे। लेकिन घायल चीलों को बचाने और उनका इलाज करने में अपना जीवन खपा देने वाले दो भाइयों पर बनी शौनक सेन (Schoenak Sen) की ‘ऑल दैट ब्रीद्स’ (All That Breathes) डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म का ऑस्कर नहीं जीत सकी। इस श्रेणी में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के विरोधी अलेक्सी नेवलनी पर बनी फिल्म को पुरस्कार दिया गया। इस फिल्म का भी नाम ‘नेवलनी’ है जिसे सीएनएन और एचबीओ ने मिल कर बनाया है। पुरस्कार लेने के लिए मंच पर इसके निर्देशक डेनियल रोहर के साथ नेवलनी की पत्नी युलिया नवलनया भी पहुंचीं। मंच से युलिया ने कहा कि उनके पति केवल इसलिए जेल में हैं कि उन्होंने सच बोला और लोकतंत्र को बचाने का प्रयास किया। उन्होंने यह भी कहा कि मैं उस दिन का इंतजार कर रही हूं जब हमारा देश आज़ाद होगा।

ऑस्कर में राजनीति होने के आरोप अक्सर लगते रहे हैं। शांति के लिए दिए जाने वाले नोबेल प्राइज़ की तरह। कहा जाता है कि इनमें वही होता है जो अमेरिका और पश्चिम चाहता है। बेहतर होता कि ‘नेवलनी’ को पुरस्कृत करते समय एकैडमी यह भी घोषित करती कि इसके पक्ष और विपक्ष में कितने वोट पड़े। किन देशों के कितने लोग पक्ष में थे और कितने लोग खिलाफ थे। ऑस्कर पुरस्कारों के लिए जो करीब नौ हजार लोग वोट करते हैं उनमें से रूस और चीन के कितने लोग हैं और उनके वोट किधर गए। और क्या यह हर श्रेणी के ऑस्कर की घोषणा के साथ बताना ज़रूरी नहीं कर दिया जाना चाहिए? सवाल यह भी है कि क्या पश्चिम के किसी सत्तासीन नेता के विरोध में बनी कोई फिल्म ऑस्कर में नॉमिनेट हो सकती है?

असल में किसी भी अंतरराष्ट्रीय सर्वस्वीकृत और अराजनीतिक मंच पर थोड़ी सी राजनीति भी आपके विरुद्ध बड़े राजनीतिक दावे खड़े कर देती है। इस बार ‘एवरीथिंग एवरीवेयर ऑल एट वंस’ को सर्वश्रेष्ठ फिल्म और उसके लिए मिशेल योह को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिलने पर भी बहुत कुछ कहा जा रहा है। इस फिल्म को कुल सात पुरस्कार मिले, लेकिन पहली बार कोई एशियाई अभिनेत्री यह पुरस्कार जीती है। मिशेल मलेशिया में पैदा हुईं और हॉन्गकॉन्ग में रहीं चीनी पृष्ठभूमि की अभिनेत्री हैं। वे बेहतरीन अभिनेत्री हैं, लेकिन उन्हें मिले ऑस्कर को चीन और पश्चिम के रिश्तों से जोड़ा जा रहा है। इसी तरह, कुछ लोगों का दावा है कि ‘नेवलनी’ के चक्कर में अपने शौनक सेन की ‘ऑल दैट ब्रीद्स’ बेचारी रह गई। लोग तो यह भी पूछते दिखते हैं कि कहीं ‘नाटू नाटू’ को इसलिए तो ऑस्कर नहीं मिल गया कि इसे यूक्रेन के प्रेसीडेंशियल पैलेस के सामने फिल्माया गया है। आप इसे इन पुरस्कारों के पीछे राजनीति खोजने का अतिरेक भी मान सकते हैं, मगर ऑस्कर की परिस्थितियों का एक सिरा यह भी है। वैसे कहा कुछ भी जाए, ऑस्कर के बगैर भी कोई चारा नहीं है। क्या कोई और पुरस्कार हैं जिनसे फिल्मों की श्रेष्ठता मापने की ऐसी विरासत जुड़ी हो और जिनकी ऐसी ही मान्यता हो? यानी लोग नोबेल प्राइज़ या ऑस्कर में राजनीति के आरोप भी लगाते हैं, लेकिन उन्हीं को श्रेष्ठता का मानक भी मानते हैं।

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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