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मौसम बदलने पर उदासी, चिड़चिड़ापन क्यों?

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सर्दियों के आने और फिर जाने के बाद पतझड़ की शुरूआत में याकि मौसम बदलने पर कुछ दिन मूड उखड़ा-उखड़ा रहता है, कुछ भी अच्छा नहीं लगता। उदासी, सूनापन और निराशा महसूस होती है। ऐसा करीब हफ्ते-दो हफ्ते रहता है और पुरूषों की अपेक्षा महिलाएं ये सब ज्यादा महसूस करती हैं। कुछ को उदासी के साथ बेचैनी, चिड़चिड़ापन, एग्रेशन, अनिद्रा और ध्यान केन्द्रित न कर पाने जैसे लक्षण महसूस होते हैं। कईयों को तो भूख भी नहीं लगती। अगर व्यक्ति ज्यादा दिनों तक ऐसी मनोदशा में रहे तो निगेटिविटी हावी होने से खुद को नुकसान पहुंचाने लगता है।

अक्टूबर यानी सर्दियों शुरूआत में होने वाले डिप्रेशन को कहते हैं ब्रेन फॉग। इसमें उदासी और बेचैनी बढ़ जाती है, काम में मन नहीं लगता। इसी तरह सर्दियां समाप्त होने यानी स्प्रिंग डिप्रेशन में लोगों का व्यवहार चिड़चिड़ा और आक्रामक हो जाता है।

ऐसा क्यों होता है, इसकी वजह क्या है? इस सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि यह सब होता है शरीर की सरकेडियन रिद्म यानी बॉयो क्लॉक डिस्टर्ब होने से। हमारी बॉयो-क्लॉक, मौसम और लाइट पैटर्न बदलने पर सोने- जागने के समय का ध्यान रखती है। अगर यह ठीक हो तो दिमाग पूरे दिन एलर्ट रहने के बावजूद रात में स्वाभाविक रूप से नींद महसूस करता है।

बॉयो-क्लॉक डिस्टर्ब होती है सर्दियों में रातें लंबी और धूप कम होने से। लेकिन हफ्ते-दो हफ्ते में मौसमी बदलाव की आदत होने पर यह नार्मल हो जाती है। कुछ महीने बाद फरवरी में मौसम बदलने पर यह फिर डिस्टर्ब होती है और ऐसा होता है रातें छोटी, दिन बड़े और गर्मी बढ़ने से। इससे स्लीपिंग हैबिट्स बदलती हैं और नींद डिस्टर्ब हो जाती है। स्लीपिंग हैबिट्स में हो रहे इन्हीं बदलावों से लोग सैड यानी सीजनल अफेक्टिव डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं।

बॉयो-क्लॉक में गड़बड़ी से मूड मैनेजमेंट और मेटाबॉलिज्म पर बुरा असर पड़ता है। उदासी, चिड़चिड़ाहट, एग्रेशन जैसे लक्षणों के अलावा भोजन भी ठीक से नहीं पचता। सूरज की रोशनी में अचानक हुयी बढ़ोत्तरी से नींद डिस्टर्ब होने के कारण शरीर में मेलाटोनिन बनना कम हो जाता है जिसका असर दिखाई देता है डिप्रेशन के रूप में। इसके विपरीत सेरोटोनिन, लंबे दिनों और धूप वाले मौसम में बढ़ता है, इसलिये सर्दियों में दिन छोटे और धूप कम होने पर इसकी कमी से उदासी महसूस होती है।

अगर शरीर इन बदलावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील है तो इसका असर खराब मूड, बेचैनी और चिड़चिड़ेपन के रूप में नजर आता है। लम्बी हवाई यात्रा से होने वाले जेट लेग का कारण भी बॉयो-क्लॉक में डिस्टर्बेन्स ही है।

मौसमी डिप्रेशन का दूसरा कारण है मौसम बदलने पर नये फूल-पत्ते आने से वातावरण में पराग यानी पोलिन की भरमार। इससे एलर्जी ट्रिगर होती है। लोगों में अस्थमा और एक्जिमा जैसी बीमारियां उखड़ जाती हैं। इनके अलावा बाइपोलर डिस्आर्डर, फैमिली हिस्ट्री, वर्क शेड्यूल में बदलाव और गर्म-ह्यूमिड वातावरण भी इसका रिस्क बढ़ाते हैं।

ये तो हैं मौसमी डिप्रेशन के कारण, अब सवाल कि ये दूर कैसे होगा। तो इसका सबसे आसान उपाय है अच्छी गहरी नींद। इसके लिये नींद का शेड्यूल तय करें। सोने से पहले हल्के गुनगुने पानी से स्नान करके तय समय पर सो जायें। अगर नींद न आये तो किताब पढ़ें या मनपसन्द संगीत सुनें। इससे शरीर को सोने का सिगनल मिलता है।

अच्छी और गहरी नींद के लिये बेडरूम से उन वस्तुओं को हटायें जिनसे तनाव या एंजॉयटी हो। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की स्क्रीन से पैदा ब्लू लाइट शरीर में नींद के लिए जरूरी हार्मोन मेलाटोनिन का उत्पादन घटाती है इसलिये इन्हें बेड से दूर रखें। कॉफी, नींद डिस्टर्ब करती है इसलिये सोने से दो-तीन घंटे पहले कॉफी न पियें।

गर्मी के प्रति संवेदनशीलता, स्प्रिंग डिप्रेशन बढ़ाती है, ज्यादा समय असहज रूप से गर्म महसूस करना मूड खराब करता है। इससे बचने के लिये शरीर हाइड्रेट रखें और कॉटन के कपडें पहनें।

डेली एक्सरसाइज को लाइफ स्टाइल का हिस्सा बनायें। इससे स्ट्रेस, एंग्जॉयटी और डिप्रेशन दूर करने में मदद मिलेगी और अच्छी नींद आयेगी। सर्दियों में होने वाला डिप्रेशन दूर करने के लिये डेली 30 मिनट धूप में टहलें।

मेडीटेशन और जर्नलिंग से अन-वान्टिड फीलिंग्स पहचानकर डिप्रेशन के कारणों को समझने और दूर करने में मदद मिलती है। इसलिये मेडीटेशन के अलावा अपनी दिनचर्या भी नोट करें।यानी आप पूरे दिन क्या करते हैं, किस समय मूड ज्यादा खराब होता है, मूड खराब होने से पहले क्या किया था इत्यादि।

आर्ट थेरेपी, डिप्रेशन दूर करने में बहुत कारगर है। आपको आर्ट में दिलचस्पी हो या न हो लेकिन डिप्रेशन के दौरान मन में जो भी भाव आयें उन्हें कागज पर उतारें। गोल-ओरियेन्टे़ड एक्टीविटीज जैसे स्टडी, स्किल लर्निग और एन्टरटेनमेंट दैनिक जीवन को क्रियेटिव और सेटिसफेक्टरी महसूस कराने के साथ डिप्रेशन भी दूर करती हैं। मौसम बदलने से यदि वर्कप्लेस या स्कूल का समय बदले तो उसके मुताबिक रूटीन फिक्स करें और नये रूटीन के मुताबिक कामों को संतुलित करें।

मौसमी अवसाद में भूख न लगना आम है। इससे शरीर को सही पोषण न मिलने से व्यक्ति चिड़चिड़ा हो जाता है। जिससे एकाग्रता और प्रोडक्टीविटी में कमी आती है। ऐसे में डिप्रेशन दूर करने के लिये पौष्टिक भोजन करें और प्यास लगने पर खूब पानी पियें।

डिप्रेशन में व्यक्ति को दुख भरे गाने ज्यादा अच्छे लगते हैं वह उदासी की बातें करता है, खुद को देवदास की कैटागरी का मानने लगता है। ऐसी हरकतों से बचें, मोटीवेशनल गाने सुनें जो जीने के लिये प्रेरित करते हों। पास्ट की गलतियों के बारे में सोचना छोड़कर यह सोचें कि वर्तमान में ऐसा क्या करें जिससे सबका भला हो।

डिप्रेशन में खुद को किसी न किसी काम में व्यस्त रखें। लेकिन काम ज्यादा बड़ा या जटिल न हो कि पूरा न होने पर डिप्रेशन और बढ़ जाये। जैसे अगर घर साफ करना है तो पूरा घर साफ करने के बजाय कोई एक कमरा पकड़ लें। जिससे काम समाप्त होने पर संतुष्टि महसूस हो और डिप्रेशन घटे। नेचर के साथ समय बितायें। पार्क में जायें, पेड़-पौधों के बीच बैठें। अगर घर में पौधे हैं तो कुछ समय उनकी देख-रेख में बितायें।

याद रखें डिप्रेशन चाहे जैसा भी हो अगर इससे उबरने की कोशिश न की तो ये दिनों-दिन बढ़ेगा जो न तो मेन्टल हेल्थ के लिये ठीक है और न ही फिजिकल हेल्थ के लिये। इसलिये इससे उबरने के प्रयास जारी रखें। अगर शुरूआती दिनों में फर्क न भी महसूस हो, तो भी कोशिश करते रहें। यकीन माने एक्सरसाइज, योगा और दोस्तों से मिलने-जुलने से हफ्तेभर में ही सुधार नजर आने लगेगा।दोस्तों और परिवार वालों को अपनी भावनाओं से अवगत करायें। उन्हें बतायें कि आप किस दौर से गुजर रहे हैं। इससे पता चल जायेगा कि परिवार वाले और दोस्त आपकी कितनी परवाह करते हैं। हो सकता है वे आपको सपोर्ट करना चाहते हों। अगर वे डिप्रेशन के समय आपके करीब रहेंगे तो इससे जल्द छुटकारा मिलेगा।

अगर मौसमी डिप्रेशन का असर यानी मनोदशा में बदलाव की भावनाएं दो सप्ताह से अधिक रहें, तो दैनिक जीवन और रिश्तों पर बुरा असर पड़ता है। नकारात्मक भावनायें हावी होने लगती हैं और खुद को नुकसान पहुंचाने के विचार उठते हैं। ऐसे में साइकियाट्रस्ट से मिलें।

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