nayaindia Violence on Ram Navami अंजन सकल पसारा रे, राम निरंजन न्यारा रे
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अंजन सकल पसारा रे, राम निरंजन न्यारा रे

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क्या आज मतिभ्रम का समय है? ईश्वरवादी तो आज भीड़तंत्र में भरे पड़े हैं और अनीश्वरवादी अध्यात्म पढ़ा रहे हैं। नई पीढ़ी को कुमार गंधर्व के स्वर-संगीत से तुलसी, कबीर और गांधी के विचारों को आज समझना आसान रहेगा। आज जो अंजन का पसारा है वह सत्ता आकांक्षा का ही काजल है। निरंतर तो केवल राम निरंजन ही है। लोक इतिहास निरंजन है तो सत्ता इतिहास अंजन। कुमार गंधर्व के अद्भुत स्वर-संगीत से अपने-अपने राम को खोजिए।

देश के कुछ हिस्सों में नवमीं पर हुई हिंसा में राम और रामभक्तों को कैसे देखा जाए? राम जन्म के उत्सव पर हिंसा होना पूरे देश-समाज के लिए शर्मनाक है। राम नवमी पर निकले जूलुसों पर या भीड़ द्वारा की गयी हिंसा से हमें अपने-अपने राम को समझना होगा। राम को मन से समझे बिना लोकतंत्र भीड़तंत्र भर बन कर रह जाएगा। क्या देश की राजनीति आज समाज को लोकतंत्र के नाम पर भीड़तंत्र बनाने में नहीं लगी है? और क्यों समाज के कुछ लोग राजनीति के इशारे पर विशाल लोकतंत्र को भीड़तंत्र का विकास बताने में जुटे है? इन सवालों के जवाब समाज को खुद से पूछने होंगे।

आठ अप्रैल को मालवा के संगीतराजा कुमार गंधर्व का सौवां जन्मदिन मना। कुमार गंधर्व की जन्म शताब्दी देश भर में उत्सव के तौर पर मनाई जाएगी। कुमार गंधर्व के संगीत का उत्सव साल भर मनेगा, और उसके बाद भी चलता रहेगा। नई पीढ़ी को अपने और आज के समाज को नई आंख-मन से समझने का मौका भी मिलेगा। कुमार गंधर्व ने केवल अपने समय में सुमधुर संगीत ही नहीं रचा, मगर समय के आर-पार की सुर-सभ्यता भी रची। कुमारजी की सुर-साधना आज डिजीटल हो कर हमें आनंद-सानंद तो दे ही रही है। मगर हमारे समय को समझाने के लिए हमें सचेत, सजग करने के साथ-साथ संबल भी दे रही है। कुमारजी अपने संगीत में आज भी जीवित हैं। हमें भी जीवन दे रहे हैं। जीने की सभ्य समझ दे रहे हैं।

अपन तुलसीदास, कबीर, नानक, महात्मा गांधी के समय को देख-समझ नहीं पाए। लेकिन कुमार गंधर्व को देखने, सुनने और गुनने का सौभाग्य खूब मिला। फिर अक्सर मन में आता है कि क्या इन सभी के राम वहीं हैं जो आज हमारे हो गए हैं? कुमारजी का एक भजन पिछले दिनों फिर से खूब याद आया। SSS …… “राम निरंजन न्यारा रे, अंजन सकल पसारा रे” …… SSS। कबीर के बोल और कुमारजी के सुर में जो एकात्म बैठा, वैसा शायद ही पांच सौ साल के अंतराल में किसी का भी बैठा होगा। इस कबीर सभ्यता के भजन को कुमारजी ने अपनी सुर-सभ्यता में ऐसा रचा की पांच सौ साल बाद भी वह हमें झकझोर सके। हमें चेता सके। हमें जगा सके। वह समझ जो हमें सभ्य समाज बना सके।

कबीर के बोल से, और कुमारजी के भाव से समझा जा सकता है कि सृष्टि की संरचना सच-झूठ, पाप-पूण्य, कर्म-कुकर्म, धर्म-अधर्म, हिंसा-अहिंसा या कहें तो अच्छे-बुरे से रची गयी। अंजन वह काजल है जो आंखों की रोशनी सुधारने के काम आता है। लेकिन काजल ही संसार के प्रति मतिभ्रम करने वाला भी है। संसार के सारे भेद भी मतिभ्रम करने वाली इसी माया के कारण हैं। माया महाठगनी है। संसार में सारा खेल अंजन और निरंजन का है। सच्चे निरंजन से ही मायावी अंजन को दूर किया जा सकता है। यानी जैसी दृष्टि वैसी ही सृष्टि। भीड़ में सिर्फ राम के अंजन का विस्तार होता है। राम का निरंजन तो कोई सच्चा, विरला भक्त ही कर सकता है। इसलिए इस भजन में कबीर और कुमारजी भीड़ में भी विरले बनने की सुर-सभ्यता का स्वर-संगीत रच रहे हैं। जो समाज में सभ्यता का विकास कर सकता है।

SSS ….. SSS …..

राम निरंजन न्यारा रे

अंजन सकल पसारा रे

भाई SSS … SSS राम निरंजन SSS …

अंजन उत्पत्ति ओंकार,

अंजन मांगे सब बिस्तार,

अंजन ब्रह्म शंकर इन्द्र,

अंजन गोपी संगी गोविन्द रे।

अंजन वाणी अंजन वेद,

अंजन किया नाना भेद,

अंजन विद्या पाठ पुराण,

अंजन ओघट घटी-हीं ज्ञान रे।

अंजन पाति अंजन देव,

अंजन कीकर अंजन सेव,

अंजन नाचे अंजन गावे,

अंजन भेषी अनन्त दिखावे रे।

अंजन कहां कहां लगे केता,

दान पुणी-तप तीरथ जेता,

कहे कबीर कोई बिरला जागे,

अंजन छाड़ी अनंत ही ध्यावे रे।

ऐसा भी नहीं है कि देश भर के लोग हिंसा में लगे दिखे हों। लेकिन खबर ऐसे चली या चलाई गयी की राम का जन्म उत्सव मनने नहीं दिया गया। और राम के नाम पर ही रामभक्त झुलसा दिए गए। एक सौ अड़तीस करोड़ लोगों में गिने-चुने लोग भी अगर घिनौनी हरकतों पर उतरते हैं तो राम की मर्यादा ही लांछित होती है। उन्माद होता भी है, मगर फैलाया भी जाता है। समाज को आने वाली रामनवमीं के लिए अंजन-निरंजन का पाठ अच्छे से समझना, सुनना, गुनना होगा।

क्या आज का समय मतिभ्रम का है? ईश्वरवादी तो आज भीड़तंत्र में भरे पड़े हैं और अनीश्वरवादी अध्यात्म पढ़ा रहे हैं। नई पीढ़ी को कुमार गंधर्व के स्वर-संगीत से तुलसी, कबीर और गांधी के विचारों को आज समझना आसान रहेगा। आज जो अंजन का पसारा है वह सत्ता आकांक्षा का ही काजल है। निरंतर तो केवल राम निरंजन ही है। लोक इतिहास निरंजन है तो सत्ता इतिहास अंजन। कुमार गंधर्व के अद्भुत स्वर-संगीत से अपने-अपने राम को खोजिए।

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By संदीप जोशी

स्वतंत्र खेल लेखन। साथ ही राजनीति, समाज, समसामयिक विषयों पर भी नियमित लेखन। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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