nayaindia Rahul Gandhi राहुल अकेले, न थके, न डरे और न निराश हुए!

राहुल अकेले, न थके, न डरे और न निराश हुए!

राहुल का कोई इलाज है नहीं। भाजपा और गोदी मीडिया के साथ कांग्रेसियों के पास भी नहीं। ऐसी शख्सियतें कुदरत खुद बनाती है। और उसमें वे साफ्ट और हार्ड वेयर होते हैं जो बदलते नहीं। गोदी मीडिया रोज पूछता था राहुल का प्रोग्राम खत्म हो गए अब वे क्या कर रहे हैं। राहुल ने खुद ही बता दिया कि वे भारत के बाद अब अमेरिका में ट्रकों में घूम रहे हैं।

राहुल जिस तरह देश को और देश को लोगों को जानने की कोशिश कर रहे हैं। उससे कुछ पुराने लोगों के नाम याद आ जाते हैं। लेकिन यह कोई तुलना नहींहैं। वे बड़े लोग थे इसलिए उनका काम याद आना स्वाभाविक है। हां बस इतनाकह सकते हैं कि राहुल गांधी शायद उस रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहे हैं।

पहला नाम तो फारुख अब्दुल्ला ने तब लिया था जब राहुल अपनी भारत जोड़ोयात्रा को लेकर जम्मू कश्मीर के बार्डर लखनपुर पर पहुंचे थे। वहां उनकास्वागत करने आए जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला ने

कहा था इस तरह दक्षिण से पैदल चलते हुए इससे पहले केवल आदि शंकराचार्यकश्मीर आए थे। हम लोगों ने उन्हें देखा नहीं। बस सुना है। मगर आज राहुलगांधी आए हैं। और हम सब इस ऐतिहासिक क्षण के गवाह बन रहे हैं। राहुल कीखासियत यह है कि वे किसी भी प्रशंसा से प्रभावित नहीं होते हैं। आलोचनाकी तरह प्रशंसा को भी सामान्य भाव से लेते हैं।

खैर। दूसरा नाम जो अपने आप याद आते है वह महान यायावर राहुल सांकृत्यायनका है। फिर कह रहे हैं कि यह कोई तुलना नहीं। सिर्फ इतना है कि राहुलगांधी उस रास्ते पर चलते दिख रहे हैं। बड़े लोगों के रास्ते पर चलना भीबहुत कठिन है। बड़े लोग नए रास्ते बनाते हैं। कांटों से भरे हुए। अनजान।

राहुल साकृंत्यायन तिब्बत, चीन. नेपाल, श्रीलंका, सोवियत संघ, जापान,कोरिया, ईरान, इंग्लेंड, यूरोप जाने कहां कहां और देश में हर जगह लद्दाख,कश्मीर गए। सीखने, जानने। राहुल कैलाश मानसरोवर की पैदल यात्रा कर आए।

अभी पांच महीने लगातार चलते रहे। चरैवेती, चरैवेती! कन्याकुमारी सेश्रीनगर तक चार हजार किलोमीटर की यात्रा। बहुत फास्ट। हर रोज सुबह छह बजेनिकलना चाहते थे। पच्चीस किलोमीटर रोज। मगर साथ में सौ से ज्यादा भारतयात्री थे। मतलब जो लगातार कन्याकुमारी से कश्मीर तक साथ चले। इनमेंमहिलाएं भी थीं। और बुजूर्ग भी।

राहुल सबका ख्याल रखते हैं। रोज रात कोसबके साथ खाना खाते हुए सुबह छह बजे निकलने का मजाक भी करते थे। और छहबजे तैयार होकर खुद अपने कंटेनर से बाहर आकर वार्मअप करते हुए सात बजे तकसबका इंतजार भी करते थे। फिर राष्ट्रगान के बाद तिरंगा फहराकर चलने सेपहले आज 25 से कम नहीं चलना है, का चैंलेज देते हुए शरारती मुस्कान के साथअपने तेज कदम बढ़ा देते थे। मगर शाम को 20- 21 किलोमीटर पर समझौता करलेते थे। कभी कभी 22 – 23 किलोमीटर भी चला दिया है। उस दिन हंसकर कहते थेकि लगता है कल आप सब 25 से कम पर नहीं रुकेंगे!

राहुल का खुद का स्टेमना जबर्दस्त है। और उससे भी बढ़कर उनकी विल पावर (आत्मबल)। या उसे एक हद तक जिद भी कह सकते हैं। पूरी सर्दी टी शर्ट हीपहने रहे। मां सोनिया गांधी, बहन प्रियंका गांधी किसी की नहीं सुनी। वहतो यात्रा के समापन पर श्रीनगर के शेर ए कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम मेंजबर्दस्त बर्फबारी हो रही थी राहुल ने फिरन ( एक ओवरकोट नुमा कश्मीरीवस्त्र) पहन लिया था ऩहीं तो वहां भी वे अपनी युनिफार्म बना ली सफेद टीशर्ट में ही दिखते।

देखिए कितना मजेदार है अपने यहां कि यह भारत की सबसे लंबी लगातार पैदलयात्रा मगर इस पर अभी तक कोई किताब नहीं। तत्काल लिखने वालों की किताबेंतो 15 दिन में आ जाती हैं। और बिक भी जाती हैं। मगर लेखन के सारे मसालेहोने का बावजूद करीब साढ़े चार महीने हो गए किसी लोकप्रिय लेखक की हिम्मतइस पर लिखने की नहीं हुई। कोई गंभीर लेखक, पत्रकार लिख रहे हों तो पतानहीं। मगर उनकी भी किताब आएगी तभी जब सत्ता बदल जाए।

इस समय तो ट्वीटर के पूर्व सीईओ जैक डोर्सी कह रहे हैं कि किसान आंदोलनके समय ट्विटर पर सरकार ने कितना दबाव डाला था। और छापे मारने की धमकियांदी थीं। बीबीसी पर तो मारे ही गए। ऐसे में कौन राहुल की इस प्रेम भरी,नफरत विरोधी यात्रा पर किताब लिखने का साहस करेगा। हो सकता है अभी जबइसका पार्ट टू हो जाए। पूर्व से पश्चिम का तो सबसे पहले किसी विदेशी लेखककी ही किताब हमारे सामने आ जाए। आखिर फादर कामिल बुल्के का नाम राम कथाकी उत्पत्ति पर सबसे प्रमाणिक शोध के लिए लिया जाता है। ऐसे ही बहुत सारेविदेशी लेखक हैं जिन्होंने भारत पर और भारतियों पर बहुत अच्छा लिखा है।जिस फिल्म के बारे में मोदी ने कहा हांलाकि यह जरा भी सच नहीं कि गांधीफिल्म से दुनिया ने गांधी को जाना मगर फिर भी गांधी पर सबसे अच्छी फिल्मरिचर्ड एटनबरो द्वारा ( विदेशी) बनाई गई थी।  तो हो सकता है सबसे पहलीभी और विस्तृत भी किताब किसी विदेशी की हो।

बहरहाल अगर सरकार कोई और आती है तो केवल राहुल की भारत जोड़ो यात्रा  परही नहीं, किसान आंदोलन, कोरोना की मौतें, नदियों में शव बहाना, रेत मेंगाड़ देना, पुलों से नीचे फैकना, मजदूरों का हजारों किलमीटर बच्चों,बुजुर्गों के साथ पैदल अपने गांवों के लिए जाना। भारत की सबसे कठिन औरमजबूरी की तो यह यात्रा रही है।

साहित्य में ऐसी मानवीय त्रासदियों पर बहुत गहराई से और संवेदना के साथलिखा गया है। मगर इस समय तो इस किताब के शीर्षक की तरह “ नो वन हेड अ टंगटू स्पेक  “ की तरह किसी के पास जबान नहीं है। यह किताब एक प्रवासीभारतीय उत्पल संदेसरा और टाम वूटन एक विदेशी ने इतिहास की एक सबसे घातक

बाढ़ जो 1979 में गुजरात में मच्छू बाँध टूट गया था पर लिखी है। बहुतबड़ी त्रासदी थी। देश की सबसे बड़ी। हजारों लोग मरे थे। बीस हजार सेज्यादा। इन्दिरा गांधी विपक्ष में थीं। बेलछी की तरह ही यहां भी पहुंचीथीं। प्रधानमंत्री चरण सिंह थे और मुख्यमंत्री जनता पार्टी के ही बाबूभाई पटेल थे। सरकार ने इसे एक्ट आफ गॉड कहा था। उस समय भी यही माहौल था।मौसम भी अच्छा हो तो मेरे भाग्य से और सरकारी लापरवाही, अव्यवस्था सेबांध टूट जाए तो ऊपर वाले का करना!

देश की यह सबसे बड़ी त्रासदी थी। इतनी लाशें थीं इतनी बदबू थी कि चलना मुश्किल था। मगर इन्दिरा गांधी नहीं मानीं और घटना स्थल का दौरा किया। पूरा बह गया मोरबी शहर देखा। पीड़ित परिवारों से मिलीं।मगर आज तो सामान्य पत्रकारिता नहीं हो पा रही है। मणिपुर में डेढ़ महीना हो गया है। हालत यह है कि पहाड़ का आदमी राजधानी इम्फाल नहीं आ सकता। औरइम्फाल का पहाड़ नहीं जा सकता। समाज पूरी तरह विभाजित कर दिया है। एक लाखसे ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। 120 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। पहलेदिन 3 मई की लाशें अभी तक अस्पतालों में पड़ी हुई हैं। सुरक्षा बलों केहथियार गोला बारूद लूटे गए हैं। मगर आज तक प्रधानमंत्री ने एक शब्द नहींबोला। और मीडिया भी उसी के अनुरूप खामोश है। मणिपुर से हजार गुना ज्यादा खबरें वह रूस युक्रेन युद्ध की दिखा चुका है। वहां सब चैनलों की कई कईटीमें हो आईं है। और यहां मणिपुर कोई एक चैनल भी नहीं गया।

तो इन विपरित परिस्थितयों में अगर कोई लगातार जनता की बात कह रहा है तोवह राहुल ही है। न डरा, न थका, न निराश हुआ। ऐसे लोग बिरले ही होते हैं।और जैसा हमने शुरू में लिखा कि सुधर नहीं सकते। चाहे कुछ हो जाए आम जनताके लिए काम करते रहते हैं।… कर्मण्येवाधिकारस्ते!

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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