nayaindia Veer Savarkar Bharat Ratna वीर सावरकर को अभी तक भारत रत्न क्यों नहीं?

वीर सावरकर को अभी तक भारत रत्न क्यों नहीं?

2019 के महाराष्ट्र चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया था। हालांकि, राज्य में हुए चुनाव में भाजपा की सरकार न बन पाने के बाद यह मुद्दा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच चर्चा से गायब हो गया। अब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने इस विषय को फिर से चर्चा में उठाया है।…सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी। सावरकर पहले भारतीय स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। सावरकर पहले ऐसे कवि थे, जिन्होंने बिना काग़ज़ -कलम के ही जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं।

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अप्रतिम क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर (जन्म- ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत 1940 तदनुसार ईस्वी 28 मई, 1883,भगूर गाँव, नासिक, मृत्यु- फाल्गुन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत 2022 तदनुसार 26 फ़रवरी 1966, मुम्बई) के जन्म दिन 28 मई को स्वतंत्र वीर गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने की है। उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग की ओर से शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न शिंदे गुट को देने के बाद पार्टी की पहली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में एकनाथ शिंदे को नेता चुनने के साथ ही वीर सावरकर को भारत रत्न की मांग और मराठी को कुलीन भाषा का दर्जा देने की मांग के अतिरिक्त कई अन्य महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किये गए थे।

2019 के महाराष्ट्र चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने संकल्प पत्र में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का वादा किया था। हालांकि, राज्य में हुए चुनाव में भाजपा की सरकार न बन पाने के बाद यह मुद्दा भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के बीच चर्चा से गायब हो गया। अब एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने इस विषय को फिर से चर्चा में उठाया है।ध्यान रहे अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गये भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अद्वितीय योगदान देने वाले वीर विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी जान जोखिम में डालकर देश- विदेश में क्रांतिकारियों को तैयार कर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था।

इससे चिढ़े ब्रिटिश शासन ने विलायत में क़ानून की शिक्षा प्राप्त करने के दौरान एक हत्याकांड में सहयोग देने के आरोप में उन्हें लंदन में गिरफ्तार कर उन पर भारत में मुकदमा चलाकर दंड देने के उद्देश्य से मोरिया नामक पानी के जहाज से मुंबई भेजा। 8 जुलाई 1910 को सावरकर को भारत भेजा जा रहा वह जहाज जब फ्रांस के मार्सेलिस बंदरगाह के पास लंगर डाले खड़ा था, तो अंतर्रराष्ट्रीय कानूनों के जानकार जीवट व्यक्ति सावरकर ने एक साहसिक निर्णय लेकर जहाज के सुरक्षाकर्मी से शौच जाने की अनुमति मांगी। और अनुमति पाकर वे शौचालय में घुस गये तथा अपने कपड़ों से दरवाजे के शीशे को ढककर दरवाजा अंदर से अच्छी तरह बंद कर शौचालय से खुले समुद्र की ओर खुलते एक रोशनदान से समुद्र में छलांग लगा दी। और फ्रांस के तट की ओर बढ़ने लगे। बहुत देर होने पर सुरक्षाकर्मी ने दरवाजे पर दस्तक दी, लेकिन कुछ उत्तर न आने पर दरवाजा तोड़ दिया। वहाँ सावरकर नहीं थे। सुरक्षाकर्मी ने समुद्र की ओर देखा, तो पाया कि सावरकर तैरते हुए फ्रांस के तट की ओर बढ़ रहे हैं। उसने शोर मचाकर अपने साथियों को बुलाया, और गोलियां चलानी शुरू कर दीं।

कुछ सैनिक एक छोटी नौका लेकर उनका पीछा करने लगे, पर सावरकर उनकी चिन्ता न करते हुए तेजी से तैरते हुए फ़्रांस के उस बंदरगाह पर पहुंचकर स्वयं को फ्रांसीसी पुलिस के हवाले कर दिया। और वहाँ  राजनीतिक शरण मांगी। यह साहसिक कदम उन्होंने इसलिए उठाया था, क्योंकि उन्हें मालूम था कि उन्होंने फ्रांस में कोई अपराध नहीं किया है, इसलिए फ्रांस की पुलिस उन्हें गिरफ्तार तो कर सकती है, परन्तु किसी अन्य देश की पुलिस को नहीं सौंप सकती। उन्होंने फ्रांस के तट पर पहुंच कर स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया। तब तक ब्रिटिश पुलिसकर्मी भी वहाँ  पहुंच गये और उन्होंने अपना बंदी वापस मांगा। सावरकर ने अन्तर्राष्ट्रीय कानून की जानकारी फ्रांसीसी पुलिस को दी। बिना अनुमति किसी दूसरे देश के नागरिकों का फ्रांस की धरती पर उतरना भी अपराध था, पर दुर्भाग्य से फ्रांस की पुलिस दबाव में आ गई।

उन्होंने सावरकर को ब्रिटिश पुलिस को सौंप दिया। उन्हें कठोर पहरे में वापस जहाज पर ले जाकर हथकड़ी और बेड़ियों में कस दिया गया। मुंबई पहुंचकर उन पर मुकदमा चलाया गया, जिसमें उन्हें 50 वर्ष काले पानी की सजा दी गयी। बाद में एक विशेष न्यायालय द्वारा उनके अभियोग की सुनवाई हुई और उन्हें आजीवन कालेपानी की दुहरी सज़ा मिली। सावरकर 1911 से 1921 तक अंडमान के सेल्यूलर जेल में रहे। 1921 में वे स्वदेश लौटे और फिर 3 वर्ष तक जेल भोगी। 1937 ईस्वी में उन्हें मुक्त कर दिया गया था। 1947 में इन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया। हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त महात्मा रामचन्द्र वीर ने उनका समर्थन किया। 1948 ईस्वी में महात्मा गांधी की हत्या में उनका हाथ होने का संदेह किया गया। इतनी मुश्क़िलों के बाद भी वे झुके नहीं और उनका देशप्रेम का जज़्बा बरकरार रहा और अदालत को उन्हें तमाम आरोपों से मुक्त कर बरी करना पड़ा। फिर उन्होंने मातृभूमि के चरणों में पहले से ही अर्पित मन को देश सेवा में ईश्वर सेवा मानकर देश सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा में लगा दिया।

भारत की स्वाधीनता के लिए किए गए संघर्षों में वीर सावरकर का नाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा है। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत 1940 तदनुसार 28 मई 1883 ईस्वी को नासिक के भगूर गाँव में जन्मे महान देशभक्त और क्रांतिकारी सावरकर ने अपना संपूर्ण जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया। अपने राष्ट्रवादी विचारों से जहाँ सावरकर देश को स्वतंत्र कराने के लिए निरन्तर संघर्ष वे करते रहे, वहीं दूसरी ओर देश की स्वतंत्रता के बाद भी उनका जीवन संघर्षों से घिरा रहा। सावरकर अंग्रेज़ी सत्ता के विरुद्ध भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले प्रथम ऐसे क्रान्तिकारी थे, जिन पर मामला हेग के अंतराष्ट्रीय न्यायालय में तो चला ही, स्वतंत्र भारत की सरकार ने भी उन पर झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी मांगी। सावरकर भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया था। उन्होंने पहली बार सन 1905 के बंग-भंग के बाद सन 1906 में स्वदेशी का नारा दे, विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी।

सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे, जिन्हें अपने विचारों के कारण बैरिस्टर की डिग्री खोनी पड़ी। सावरकर पहले भारतीय स्वाधीनता सेनानी थे, जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की। सावरकर पहले ऐसे कवि थे, जिन्होंने बिना काग़ज़ -कलम के ही जेल की दीवारों पर पत्थर के टुकड़ों से कवितायें लिखीं। उन्होंने स्वसृजित दस हज़ार से भी अधिक पंक्तियों को प्राचीन वैदिक साधना के अनुरूप वर्षों स्मृति में सुरक्षित रखा, जब तक वह किसी न किसी तरह देशवासियों तक नहीं पहुँच गई। सावरकर ने ही पहली बार सन 1857 की लड़ाई को भारत का स्वाधीनता संग्राम बताते हुए लगभग एक हज़ार पृष्ठों का इतिहास 1907 में लिखा। सावरकर भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र ऐसे लेखक थे, जिनकी पुस्तक को प्रकाशित होने के पूर्व ही ब्रिटिश और ब्रिटिश साम्राज्य की सरकारों ने प्रतिबंधित कर दिया था। सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनीतिक कैदी थे, जिसने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था। सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा ने फहराया था।

सावरकर एक उत्तम लेखक भी थे, जिन्होंने अनेक प्रसिद्ध पुस्तकों को लिखा था। सावरकर रचित ग्रन्थों में  अंग्रेजी में लिखी गई भारतीय स्वातंत्र्य युद्ध, मेरा आजीवन कारावास और अण्डमान की प्रतिध्वनियाँ आदि अत्यंत प्रसिद्ध ग्रन्थ शामिल हैं। जेल में हिन्दुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा। 1909 में लिखी पुस्तक द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857 में सावरकर ने इस संघर्ष को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध स्वाधीनता का प्रथम संग्राम घोषित किया था। विनायक दामोदर सावरकर, 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े हिन्दूवादी थे। उन्हें हिन्दू शब्द से बेहद लगाव था। वह कहते थे कि उन्हें स्वातन्त्रय वीर की जगह हिन्दू संगठक कहा जाए। उन्होंने जीवन भर हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए कार्य किया। उन्होंने हिन्दुत्व की अवधारणा का संस्थापन किया था, जो भारत के लिए एक हिन्दू राष्ट्रवादी पहचान बनाने का प्रयास करती थी। वे अखिल भारत हिन्दू महासभा के 6 बार राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। 1937 में वे हिन्दू महासभा के अध्यक्ष चुने गए और 1938 में ही उन्होंने हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया था। 1943 के बाद दादर, मुंबई में रहे। बाद में वे निर्दोष सिद्ध हुए और उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। ऐसे परम राष्ट्रवादी स्वातंत्र्य वीर सावरकर की मृत्यु फाल्गुन शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत 2022 तदनुसार 26 फ़रवरी 1966 को मुम्बई में हुई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, उनके हिन्दुत्व से सम्बद्धता के कारण उन्हें भारतीय राजनीति व इतिहास में एक द्विपक्षीय व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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