पृथ्वी पर गजब हो रहा है। भारत में फसल कटने के वक्त बारिश है तो अमेरिका में एक दिशा में भारी बर्फबारी तो पश्चिमी दिशा में गर्मी और बाढ़! फ्रांस में सूखा और तुर्की में भूकंप। इजराइल की सड़कों पर यहूदी बागी तो फिलस्तीनी भी! फ्रांस की सड़कों पर पैशन को ले कर गदर तो पाकिस्तान की सड़कों पर इमरान खान के भक्त! सचमुच इक्कीसवीं सदी के तीसरे दशक में देश और दुनिया में चारो तरफ गड़बड़ ही गड़बड़ है। तभी सवाल है क्यों इस सबको सन् 2020 की महामारी से शुरू हुई महाकाल की दशा नहीं माना जाना चाहि्ए?
भारत की हकीकत बूझें। कोविड से भारत में लोगों की लावारिस मौतों का पहलू खौफनाक अनुभव था। मगर महामारी के खत्म होने के बाद अब क्या सीन है? क्या लोगों की पुरानी नार्मल सेहत लौटी है? क्या सब सामान्य है? मुझे तो नहीं लगता। लोग शारीरिक तौर पर कई परेशानियां बतलाते हुए हैं। लोग छोटी-छोटी बीमारियों, जुकाम-बुखार-खांसी-थकान, एच3एन2, इन्फ्लूएंजा, अनापेक्षित हार्ट अटैक जैसी ऐसी तकलीफों में जी रहे हैं जिससे असमान्यता के खटके है। समझ नहीं आ रहा है कि भारत में ही क्यों लोग ज्यादा तकलीफ में हैं, जबकि यूरोपीय देशों, अमेरिका या अन्य देशों से ऐसी खबरें नहीं हैं। भारत में सीजनल छोटी-छोटी बीमारियां भी आफत हो गई है। हर सीजन में बीमारियां ही बीमारियां। तभी लगता है भारत कोविड वायरस का असामान्य असर लिए हुए है। नतीजतन लोगों की चिकित्सा चिंता-खर्च और मेडिकल धंधे के मायने बदलते हुए हैं।
ऐसे ही दूसरा घातक मसला 140 करोड़ लोगों की आबादी के धर्मादे में जीने का है। महामारी ने काम-धंधे खत्म किए, आर्थिकी को खोखला बनाया तो जनता और सरकार दोनों के दिल-दिमाग में मुफ्त-सस्ते राशन और खैराती-बेगारी जीवन की जरूरत स्थायी हो गई है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों सभी के लिए राजनीति के तकाजे, जनकल्याण की जरूरत में रेवड़ियों की प्रसादी की निरतंरताअब जरूरी है।
कह सकते हैं सन् 2020 के महामारी काल से भारत में ‘अच्छे दिन’ का जुमला ‘आश्रित दिन’ में बदलाहै। कभी लोगों की आकांक्षाओं पर विकास और राजनीति की हवाबाजी थी। वह अब खत्म है। वायरस और चीन के असर को भारत सरकार के स्तर पर जांचे तो महामारी और चीन दोनों के कारण मोदी सरकार कड़की में लगातार है।सरकार पेट्रोल-डीजल की महंगाई सहित आम महंगाई की अनदेखी को मजबूर है तो इसलिए है कि सरकार की पहली चिंता अपनी रेवेन्यू है। सो कोविड वायरस ने जहां जनजीवन की कमर तोड़ी है वही चीन की रीति-नीति से सरकार की आर्थिकी, विदेश नीति की कमर भी टूटी हुई। सीमा पर सेना की तैनातगी है तो सेना के बजट से ले कर सामरिक-कूटनीति-भूराजनीति कीउलझने भी कम नहीं है।