जयपुर। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर उच्च न्यायपालिका पर निशाना साधा है। उन्होंने संविधान में की गई न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था पर एक तरह से सवाल उठाते हुए सवालिया लहजे में कहा कि क्या संसद का बनाया गया कानून तभी कानून होगा, जब उस पर अदालत की मुहर लगेगी? उन्होंने संसद के काम में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई। साथ ही केशवानंद भारती मामले से निकले संविधान के बुनियादी ढांचे की अवधारणा को भी खारिज किया। उन्होंने कहा कि केशवानंद केस से एक गलत परंपरा शुरू हुई।
देश भर के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका पर निशाना साधा। उन्होंने कहा- संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी। देश भर की विधानसभाओं के अध्यक्षों के 83वें राष्ट्रीय सम्मेलन उप राष्ट्रपति के साथ लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी शामिल थे और उन्होंने भी अदालती हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई।
धनखड़ ने कहा- 1973 में एक बहुत गलत परंपरा चालू हुई। केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर का आइडिया दिया कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं। कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि इससे मैं सहमत नहीं। उन्होंने कहा- सदन बदलाव कर सकता है। यह सदन बताए कि क्या इसे किया जा सकता है? क्या संसद को यह अनुमति दी जा सकती है कि उसके फैसले को कोई और संस्था रिव्यू करे? धनखड़ ने कहा- जब मैंने राज्यसभा के सभापति का चार्ज लिया तब कहा था कि न तो कार्यपालिका कानून को देख सकती है, न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है। संसद के बनाए कानून को किसी आधार पर कोई संस्था अमान्य करती है तो प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं होगा।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा- न्यायपालिका भी मर्यादा का पालन करें। न्यायपालिका से उम्मीद की जाती है कि जो उनको संवैधानिक अधिकार दिया है, उसका उपयोग करें। साथ ही अपनी शक्तियों का संतुलन भी बनाए। हमारे सदनों के अध्यक्ष यही चाहते हैं। गौरतलब है कि उप राष्ट्रपति पहले उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति, प्रमोशन और तबादले के कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं।