Judiciary

  • राज्यपाल और राष्ट्रपति न्यायिक सुनवाई से ऊपर

    नई दिल्ली। केंद्र सरकार से सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के जो फैसले होते हैं वो न्यायिक सुनवाई से ऊपर होते हैं। उनके फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आते। साथ ही सरकार ने अदालत से यह भी कहा कि राज्यपालों और राष्ट्रपति को किसी मसले में निर्देश देने का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं है। गुरुवार को हुई सुनवाई में केंद्र ने कहा कि राष्ट्रपति और राज्यपाल की विधानसभा से पास बिलों पर कार्रवाई के खिलाफ राज्य सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर नहीं कर सकते। केंद्र सरकार ने कहा कि राज्य सरकारें अनुच्छेद...

  • रिवर्स ज्यूडिशियल एक्टिविज्म?

    दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि अदालतें अब “देशभक्ति” और “सच्ची भारतीयता” को परिभाषित करने लगी हैं। और वे इसे आज के सत्ता प्रतिष्ठान की सोच और पसंद के अनुरूप कर रही हैं। क्या न्यायिक सक्रियता की दिशा पलट गई है? कुछ रोज पहले की ही बात है, जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी को देशभक्ति की भावना दिखाने की नसीहत दी थी। जबकि मामला यह था कि सीपीएम मुंबई में गजा में मानव संहार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना चाहती थी। प्रशासन ने इजाजत नहीं दी, तो पार्टी कोर्ट के पास गई मगर वहां उसे सुनने को मिला कि...

  • सिर्फ न्यायपालिका नहीं सबकी साख का सवाल

    चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत की उच्च न्यायपालिका की एक बड़ी खामी की ओर इशारा किया है। उनके पूर्ववर्ती चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने भी जाते जाते इसका संकेत दिया था। उसे चीफ जस्टिस गवाई से ज्यादा विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि रिटायर होने के तुरंत बाद जजों के कोई सरकारी पद स्वीकार करने या बेंच से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने से न्यायपालिका के सामने साख का संकट खड़ा होता है। आम लोगों का भरोसा टूटता है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन सबसे ताजा मिसाल कलकत्ता हाई कोर्ट के जज जस्टिस अभिजीत गांगुली का है,...

  • अवमानना मामले पर दोहरा रवैया

    सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर यूट्यूबर अजय शुक्ला के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला शुरू किया है। आरोप है कि अजय शुक्ला ने अपने यूट्यूब प्लेटफॉर्म पर सुप्रीम कोर्ट से हाल ही में रिटायर हुईं जज जस्टिस बेला एम त्रिवेदी के लिए अपमानजनक टिप्पणियां की हैं। चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने स्वंय इस पर संज्ञान लिया और सर्वोच्च अदालत की रजिस्टरी को निर्देश दिया है कि वह अवमानना की कार्रवाई शुरू करे। इतना ही नहीं अदालत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को निर्देश देकर अजय शुक्ला की वीडियो भी हटवा दी। साथ ही अदालत ने कहा...

  • अपना घर ठीक कर रही है न्यायपालिका

    राज्यपालों और राष्ट्रपति को राज्यों के विधेयकों पर एक निश्चित समय सीमा में फैसला करने का आदेश देने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर चौतरफा बहस चल रही है। सरकार ने आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा है लेकिन उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा के कई सांसदों ने इस पर सवाल उठाया है। असल में सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल के खिलाफ दायर राज्य सरकार की एक याचिका पर दिया था, जिसमें कहा गया था कि राज्यपाल 10 विधेयकों को तीन साल से लंबित रखे हुए हैं। इस पर ही अदालत ने कहा है कि...

  • न्यायपालिका पर फिजूल की बहस

    यदि विधायिका संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करती है, तो न्यायपालिका उसे निरस्त कर सकती है, जैसा कि ‘केशवानंद भारती’ मामले में स्थापित किया गया था। इस प्रकार न्यायपालिका संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित करती है। संविधान के अनुसार न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को अपने-अपने कार्यक्षेत्र में स्वतंत्रता के साथ कार्य करना चाहिए और एक-दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। भारत के संविधान में न्यायपालिका और विधायिका को विशेष अधिकार और शक्तियाँ प्रदान की गई हैं, जो उनके बीच संतुलन और नियंत्रण बनाए रखने के लिए ज़रूरी हैं। ये दोनों संस्थाएं संविधान के तहत अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र...

  • न्यायिक सक्रियता के विरोधियों की बौद्धिक दरिद्रता!

    न्यायिक सक्रियता की हमेशा आलोचना होती रही है। यह आम धारणा है कि सरकार कमजोर होती हैं तो न्यायपालिका सक्रिय हो जाती है और वह विधायिका व कार्यपालिका दोनों के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करती है या करने की कोशिश करती है। भारत में न्यायिक सक्रियता की सबसे तेज गूंज तभी सुनाई दी थी, जब देश में गठबंधन की सरकारों का दौर शुरू हुआ। आठवें दशक के आखिरी दिनों से लेकर समूचे नब्बे के दशक में भी न्यायपालिका खूब सक्रिय रही। अनायास नहीं है कि उसी दौर में जजों की नियुक्ति और तबादले का कॉलेजियम सिस्टम भी शुरू हुआ। उस...

  • कुछ तो जिम्मेदारी दिखाएं!

    सत्ताधारी दल के नेताओं से अधिक जिम्मेदारी की अपेक्षा होती है। उचित होगा कि भाजपा नेतृत्व अवरोध एवं संतुलन की व्यवस्था के बारे में अपने समर्थकों का उचित मार्ग-निर्देशन करे। वरना, संवैधानिक व्यवस्था के लिए जोखिम बढ़ जाएंगे।   सांसद निशिकांत दुबे के न्यायपालिका के खिलाफ आक्रामक बयान से जब पार्टी अध्यक्ष ने भाजपा को अलग करने का एलान किया, तो समझा गया कि भाजपा ने इस मुद्दे पर ठंडा पानी डाल दिया है। जेपी नड्डा ने यह भी कहा कि पार्टी न्यायपालिका के खिलाफ ऐसी बातों को नापसंद करती है। जिम्मेदारी का कुछ तो एहसास करें! मगर इसके बाद भाजपा...

  • न्यायिक सक्रियता पर धनखड़ का निशाना

    नई दिल्ली। राज्य विधानसभा से पास विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपालों के अधिकार तय करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सरकार ने तो अभी कुछ नहीं कहा है कि लेकिन उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधा है। आठ अप्रैल को फैसला आने के 10 दिन बाद गुरुवार को उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की उस सलाह पर आपत्ति जताई, जिसमें उसने राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समय सीमा तय की थी। धनखड़ ने कहा कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। उप राष्ट्रपति ने संविधान के...

  • न्यायपालिका का सम्मान कैसे बचा रहे?

    भारत की न्यायपालिका एक शक्तिशाली संस्था है, जो देश के लोकतंत्र को सँभाले हुए है। लेकिन न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप और संरचनात्मक कमियाँ इसकी विश्वसनीयता को कमजोर कर रही हैं। सुधारों की दिशा सकारात्मक अवश्य है, लेकिन इनका प्रभाव तभी दिखेगा जब इन्हें प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। समय की माँग है कि न्यायपालिका अपनी आंतरिक कमियों को दूर करे और जनता का भरोसा फिर से हासिल करे, ताकि यह संविधान के ‘न्याय, समानता और स्वतंत्रता’ वाले वादे को साकार कर सके। भारत के इतिहास में पहली बार सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस रामस्वामी पर अनैतिक आचरण के चलते...

  • इसे अवसर ना बनाएं

    judiciary supreme court : उप-राष्ट्रपति ने पूछा है कि क्या अदालतों को संविधान संशोधन विधेयकों की समीक्षा का अधिकार है? बेशक, संविधान में अलग से ऐसा अधिकार उल्लिखित नहीं है, मगर न्यायपालिका के ऐसे अधिकार को लेकर अब तक कोई भ्रम नहीं रहा है। ऐसा लगता है कि दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर पर नकदी मिलने के मामले को सरकार अपने लिए एक अवसर मान रही है। इस घटना से न्यायपालिका में कथित भ्रष्ट जजों की मौजूदगी की बात चर्चित हुई है। सत्ता पक्ष को इसमें संभवतः मौका यह नजर आया है कि इस माहौल में...

  • लोकतंत्र: निर्भीक अदालत जो सत्ता की लगाम हो..!

    Democracy and Judiciary:  शास्त्रीय तौर पर पर तो लोकतंत्र में विधायी संस्था शासन के निकाय पर नियंत्रण रखती है, और इन दोनों के अतिरेक को स्पष्ट करने के लिए ’न्यायपालिका होती है। सुनने में तो यह बहुत अच्छा लगा, लेकिन सभी लोकतंत्र राष्ट्रों में होता इसका उल्टा ही है। प्रजातन्त्र की अवधारणा यूं तो बहुत सत्य लगती हैं, परंतु वास्तविकता के धरातल पर होता उल्टा ही हैं ! यंहा हम यूरोप के अनेक देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ उदाहरण लेते हैं। अमेरिका में नेता और जनता का यह संवाद बहुत माकूल हैं। जनता के अधिकारों की रक्षा का...

  • न्यायपालिका ही प्रजातंत्र की सही संरक्षक…!

    भोपाल। सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने आज पुनः यह सिद्ध कर दिया है कि प्रजातंत्र के चार अंगों- विधायिका, कार्यपालिका, न्याय पालिका और खबर पालिका में न्याय पालिका ही प्रजातंत्र की सही संरक्षक है, कथित अवैध निर्माणों के नाम पर लोगों के घरों को ‘जमींदोज’ कर देने की शासकीय मनमानी पूर्ण प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय ने एकदम गैर कानूनी व गलत माना है तथा शासन-प्रशासन को सख्त निर्देश दिए है कि बिना ठोस गैरकानूनी सबूतों के ऐसी कार्यवाही कतई नही की जानी चाहिए। इस तरह आज फिर एक बार यह स्पष्ट हो गया है कि प्रजातंत्र की सही संरक्षक...

  • न्यायिक सक्रियता का दौर लौटा

    इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विपक्षी पार्टियों का हौसला लौटा है और मीडिया में भी सरकार से सवाल पूछे जाने लगे हैं। लेकिन एक बड़ा बदलाव अदालतों की सक्रियता में दिख रहा है। हालांकि चुनाव से पहले भी सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड सहित कई मामलों में ऐसे फैसले किए थे, जिनसे सरकार असहज हुई थी। हो सकता है कि यह संयोग हो लेकिन चुनाव नतीजों के बाद ऐसे फैसलों की आवृत्ति बढ़ गई है। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के एक बयान पर नाराजगी जताते हुए कह दिया था कि अदालत के...

  • आज प्रजातंत्र का मुख्य आधार-स्तंभ न्यायपालिका…?

    भोपाल । भारत की आजादी की ‘हीरक जयंति’ मनाने के बाद आज के हालातों को देखकर यह सहज ही महसूस होता है कि प्रजातंत्र की परिभाषा के चार अंगों से तीन अंग करीब-करीब निष्क्रीय हो चुके है और अब केवल और केवल न्यायपालकिा ही प्रजातंत्र का मुख्य आधार स्तंभ बन गया है, जिस पर देश की जनता को आज भी पूरा भरोसा है, शेष तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और खबर पालिका अपने मूल अस्तित्व खो चुके है और समय के साथ आज की गैर प्रजातंत्री बाढ़ के साथ बहने लगे है। सिर्फ न्यायपालिका ही है जो प्रजातंत्र की हर जरूरत...

  • न्यायपालिका के समक्ष चुनौतियां

    अगर मुकदमों का निपटारा समयबद्ध तरीके से नहीं होता है तो नागरिकों के अदालत का दरवाजा खटखटाने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि अब भी लोग न्यायालय का दरवाजा खटखटा रहे हैं। अकेले अक्टूबर के महीने में देश भर की अदालतों में 16 लाख से ज्यादा मामले पहुंचे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा के जरिए जजों की बहाली का सुझाव दिया तो उनके सामने ही देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नागरिकों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें न्यायालय का दरवाजा खटखटाने...

  • न्यायपालिका में भी सब ठीक नहीं

    एक तरफ न्यायपालिका और केंद्र सरकार के बीच कई मुद्दों पर टकराव की चर्चा है तो दूसरी ओर न्यायपालिका में भी सब कुछ ठीक नहीं लग रहा है। पिछले एक हफ्ते में कई जजों ने रिटायर होने के दिन या उसके बाद कॉलेजियम को लेकर सवाल उठाया या किसी पूर्व चीफ जस्टिस पर हमला किया या मौजूदा चीफ जस्टिस की तारीफ की। एक जज ने तो रिटायर होने के दिन सेरेमोनियल बेंच में बैठ कर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस पर टिप्पणी की। इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर ने मंगलवार को अपने कार्यकाल के आखिरी...

  • न्यायिक सक्रियता से क्या टकराव बढ़ेगा?

    न्यायपालिका और विधायिका के बीच टकराव का क्या नया दौर शुरू होने जा रहा है? देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में कहा है कि विधायिका चाहे तो नए कानून बना सकती है लेकिन वह अदालत के किसी फैसले को सीधे खारिज नहीं कर सकती है। यह उनका अपना आकलन नहीं है, बल्कि संवैधानिक स्थिति है, जिसका जिक्र करके उन्होंने स्थिति स्पष्ट की। इस बयान को एक के बाद एक हो रही घटनाओं के साथ मिला कर देखें तो समझ में आता है कि आने वाला समय टकराव का हो सकता है। एक के...

  • गहलोत का न्यायपालिका पर बड़ा हमला

    जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने न्यायपालिका पर बड़ा हमला किया है। उन्होंने कहा है कि नीचे से लेकर ऊपर तक न्यायपालिका में भयंकर भ्रष्टाचार है। उन्होंने यहां तक दावा किया है कि कई वकील ऐसे हैं, जो फैसला लिख कर ले जाते हैं और जज उसी तरह का फैसला सुनाते हैं। गहलोत ने कहा कि एक जमाने में उन्होंने भी कई जजों के नाम का सिफारिश की थी लेकिन जज बन जाने के बाद फिर कभी उनसे बात नहीं की।  गौरतलब है कि राजस्थान में दो महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले बुधवार को...

  • क्या है सरकार की मंशा?

    कमजोर सरकारों के दौर में जब अदालतें कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में जाकर आदेश देती थीं, तब वह भी संविधान की भावना के अनुरूप नहीं था। अब सरकार ने न्यायपालिका के लिए एसओपी तैयार किया है, तो इस पर भी वही बात लागू होती है। भारत की संवैधानिक व्यवस्था के तीन प्रमुख अंगों- विधायिका, कार्यकपालिका और न्यायपालिका- में कोई एक दूसरे लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) बनाए, यह बात गले नहीं उतरती। दरअसल, ऐसा करने की कोई व्यवस्था संविधान के तहत नहीं है। कमजोर सरकारों के दौर में जब अदालतें कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में जाकर आदेश देती नजर आती...

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