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गपशप

कितना रोए? किस-किस पर रोइए?

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लिखना मेरा कर्म, धर्म और आदत है। मेरा यह शगल 1976 से है। तभी कोई 45 वर्षांत और नव वर्ष! मैं साल-दर-साल देश-दुनिया की समीक्षा में कलम घसीटता आया हूं! 1976 में इंदिरा गांधी, जेराल्ड फोर्ड-जिमी कार्टर, ब्रेजनेव, माओं, कैलाघन-थेचर थे। तब इमरजेंसीऔर अफगानिस्तान पर सोवियत सेनाके कब्जे जैसी घटनाएं थी। भारत की आबादी कोई 62 करोड और पृथ्वी पर चार अरब लोग। अब भारत 140 करोड तो दुनिया आठ अरब आबादी का आंकड़ा छूते हुए है। तभी सोचता हूं60 करोड लोगों का तब भारत कैसा था और 140 करोड आबादी के मुहाने का भारत कैसा है?… लेकिनयह सवाल पैदा हुआ तो फिर देश, उसकी लीडरशीप, उसकी आर्थिक-राजनैतिक सेहत का रोना! उस नाते बेमतलब है देश पर सोचना ही। मेरा यह दो टूक निष्कर्ष है कि प्रधानमंत्री मोदी, उनकी सरकार, हिंदू राजनीति, सेकुलर राजनीति, समाज, धर्म, घर-परिवार जीवन और विकास आदि तमाम पहलूओं में भारत का भविष्य तय शुदा है। वही होगा जो भारत इतिहास में होता आया है।

तभी 2019 से मेरी कोशिश रही है कि भारत के राजनैतिक खटराग से हट कर दुनिया और पृथ्वी की सेहत को जांचे। मैंने गुजरे वर्ष में भी संकट में पृथ्वी और मानव सभ्यता की दशा-दिशा पर अधिक लिखा था। अपन तो कहेंगे का कैनवस वैश्विक बनाया। वर्षांत की गपशप में भी हट कर लिखने का आईडिया बनाया। पोजिटिविटी के खातिर सोचा अमृत वर्ष का अमृत निकाले। आखिर कई लोग मानते हैं कि भारत अमृत काल में है। वह अपने को नए सिरे से गढ़ता हुआ है! भारत की आत्माखिलती हुई है।हिंदू गौरवान्वित है। भीड पहचान पाते हुए है। उसके धर्म, राजनीति, आर्थिकी, समाज, कला-संस्कृति, मनोरंजन, खेलकूद सब उमंग, उत्साह, विश्वास, जोश में है। भारत विश्व गुरू है या बनता हुआ है!

क्या सचमुच?यदि मैं अपने लंबे लेखन काल के दायरे में हिसाब लगाऊं तो क्या ऐसा ही विश्वास 1976 में नहीं था? इमरजेंसी से तब भारत अनुशासन का अमृत पाता हुआ था! तो 1947 में आधी रात को आजाद हुए भारत ने भी खूब विश्वास बनाया था। सन् 2022 में आजादी की75वीं वर्षगांठ के बहाने जब मैंने आजादी के कथित ‘अमृत’ को तलाशा। सीरिज लिखी। ‘अमृत’ प्राप्तलोगों का सत्य देखा, सुना, समझा और लिखा तो  परिणाम वही जो होता है। देश, कौम, धर्म, राजनीति, समाज के तमाम निष्कर्ष रूदाली लिए हुए थे। मुझे न ‘अमृत’दिखा और न ‘अमृतवान’ लोगऔर न ‘अमृत’ के लिए समुद्र मंथन, विचार याकि सत्य खोजते हुए कौम!

और अब अमृत वर्ष का अंत। पर क्या आज कहीं किसी भी नैरेटिव, बहस में यह सुनाई दे रहा है कि वर्ष 2022 था भारत का अपूर्व ‘अमृत’ वर्ष? कतई नहीं। क्यों? इसलिए कि लोग सन् 2022 में टुकडे-टुकड़े सुनते आए है। भारत में जो होता हुआ है, जो देखा-सुना-पढ़ा गया हैउस पर नंबर एक पर अपराध है। सन् 2022 अमृत वर्ष नहीं बल्कि अपराध वर्ष था जिसमें समाज-घर परिवार और रिश्तों के कभी 35 टुकड़े दिखे तो कभी 18 टुकड़े। सुबह की व्हाट्सअप खबरे हो या शाम के प्राइम टाइम की मीडिया खबरें, हर रोज वे क्राइम जो कभी रिश्तों को दहलाएं तो कभी इंसानियत को। कभी तेज धार चाकू रखने का आव्हान तो कभी चाकू सेकिसी जिदंगी के टुकडे-टुकडे। कभी चाकू से किसी (उदयपुर में कन्हैया) का सर कलम करना…तो कभीलिवइन रिलेशनमें 35 टुकड़ों में कटा शव…या केरल की पढी-लिखी दंपति द्वारा नरबलि…पेड पर लटके नाबालिग दलित लडकियों के शव …. या ग़रीब ग्रामीण परिवार की अंकिता की हत्या… या दिल्ली में पत्नी और बेटे द्वारा पिता के टुकडे-टुकड़े करके फेकना… या साहेबगंज में महिला के शव की 18 टुकड़ों की बरामदगी…आदि-आदि।

याद करें, पूरे बारह महिने भारत के टीवी चैनलों में क्या नैरेटिव था? या तो चुनाव से टुकड़े-टुकडे बंटता समाज या फिर रिश्तों के टुकड़ोकी सनसनी मेंखोया हुआ समाज!

ऊफ! समाज। यह भी लीक से हट कर नहीं। क्या इस समाज में ऐसा कुछ भी है जो बताएं कि अपना समाज अमृत काल में जीता हुआ लगे?सो समाज पर सोचे तब भी रूदाली। राजनीति, आर्थिकी पर बात करें तब भी दस तरह का रोना-धोना। फिल्म, कला-संगीत-संस्कृति-साहित्य आदि में यदि वर्ष को तौले तब और ज्यादा रोना-धोना!तभी क्या है भारत में अब वह जिसे पूरा समाज, देश देख-सुन-पढ़ कर साझा मजा पाए, खुश हो और उमंग-जोश में फुदके, खिलखिलाएं?

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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