गिग कर्मी हमेशा अपने काम से संबंधित असुरक्षा और अन्य चिंताओं से ग्रस्त रहते हैँ। जिस महंगाई आसमान पर है, इस समूह के कर्मचारी खास तौर पर बेहद कमजोर स्थिति में पहुंच गए हैँ।
ब्रिटेन में गिग वर्करों पर हुए एक अध्ययन से अर्थव्यवस्था के इस क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की जैसी दुर्दशा सामने आई है, उससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में इन वर्करों का क्या हाल होगा। इसलिए इसमें कोई हैरत नहीं है कि ब्लिंकिट कंपनी के कर्मियों को हाल में संघर्ष पर उतरना पड़ा था या कुछ समय पहले गुड़गांव में अर्बन कंपनी की महिला कर्मियों को मोर्चाबंदी करनी पड़ी थी। ताजा अध्ययन रिपोर्टे के निष्कर्षों पर गौर कीजिएः ब्रिटेन में आधे से ज्यादा गिग वर्कर न्यूनतम मजदूरी से कम मेहताने पर काम कर रहे हैं। उनके कामकाज के घंटे इतने अधिक हैं कि उन्हें अपनी निजी सुरक्षा खतरे में पड़ी मालूम पड़ती है। गुजरे वर्षों के दौरान दुनिया भर गिग वर्क का नया चलन आया है। इन कर्मियों में खाना डिलवरी या अन्य होम डिलिवरी करने वाले कर्मी, ऐप से चलने वाली कंपनियों के तहत टैक्सी चलाने वाले ड्राइवर, डेटा एंट्री कर्मी आदि शामिल हैं। जिन कंपनियों के लिए ये लोग काम करते हैं, वे उन्हें कर्मचारी का दर्जा नहीं देतीं। बल्कि इन्हें पार्टनर या सेल्फ इम्पलॉयड बताती हैँ।
ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टॉल के अध्ययन के दौरान गिग वर्करों से अपनी कमाई और कामकाज की स्थितियों के बारे में बताया। उनमें से 52 प्रतिशत ने जो आमदनी बताई, वह ब्रिटेन में तय न्यूनतम वेतन से कम है। ब्रिटेन में न्यूनतम वेतन 9.50 पाउंड प्रति घंटे है। जबकि इन कर्मियों की औसत प्रति घंटे आमदनी 8.97 पाउंड ही है। लगभग तीन चौथाई कर्मियों ने कहा कि वे अपने काम से संबंधित असुरक्षा और अन्य चिंताओं से ग्रस्त रहते हैँ। जिस समय भोजन, ईंधन और मकान का खर्च बढ़ता जा रहा है, इस समूह के कर्मचारी खास तौर पर कमजोर स्थिति में पहुंच गए हैँ। तो जाहिर है कि ऐसे कर्मियों को सबसे पहले वेतनभोगी कर्मचारी का दर्जा देने की जरूरत है। इसके साथ ही न्यूनतम वेतन की गारंटी करने, अवकाश और बीमारी के दौरान छुट्टी आदि की व्यवस्था जरूरी है। उन्हें अनुचित ढंग से जब चाहे काम से हटा देने के जारी चलन पर रोक लगनी चाहिए। ऐसा दुनिया में हर जगह होना चाहिए।