जो लोग पंजाब के बुरे दिनों को जरनैल सिंह भिंडरावाले से शुरू हुआ मानते हैं या उससे जोड़ कर याद करते हैं, उन्हें लग सकता है कि पंजाब में अभी वैसा कुछ नहीं हो रहा है, जैसा अस्सी के दशक में हुआ था। लेकिन पंजाब पर बुरे दौर का साया सत्तर या अस्सी के दशक में नहीं पड़ा था। उसकी बुनियादी साठ के दशक में ही पड़ गई थी, जब पंजाब के बेहद ताकतवर और लोकप्रिय नेता प्रताप सिंह कैरो की हत्या हुई थी। तब भाषायी आधार पर पंजाब का विभाजन भी नहीं हुआ था। भाषा के आधार पर अलग राज्य की मांग हो रही थी और उसी दौरान 1965 में प्रताप सिंह कैरो की हत्या हो गई थी। उसके बाद राज्य का बंटवारा हुआ और थोड़े समय तक शांति रही लेकिन कुछ ऐतिहासिक हालात और कुछ राजनीतिक गलतियों की वजह से सत्तर के दशक में सिख चरमपंथी संगठनों का उदय हुआ और उसके बाद की कहानी इतिहास है, जिसका एक अध्याय देश की प्रधानमंत्री की हत्या के साथ समाप्त हुआ था।
ऐसा लग रहा है कि तीन दशक की घटनाओं और राजनीतिक गलतियों से सबक लेने की बजाय उन्हें दोहराया जा रहा है। अमृतसर के अजनाला में 23 फरवरी को जिस तरह से हथियार से लैस हजारों लोगों की भीड़ थाने में घुस गई और पुलिस जिस तरह से बेबसी के साथ खड़ी रही वह कोई आपवादिक घटना नहीं है, बल्कि कुछ समय से बन रही स्थितियों का प्रकटीकरण है। पिछले कुछ दिनों से पंजाब में अचानक राजनीतिक और सामाजिक विमर्श धर्म की तरफ मुड़ गया है। प्रदेश के कई हिस्सों में गुरु ग्रंथ साहेब की बेअदबी का मामला सामने आया। स्वर्ण मंदिर में भी ऐसी घटना हुई और कई जगह बेहद हिंसक प्रतिक्रिया देखने को मिली। गांवों में नौजवान भिंडरावाले के नाम की शपथ लेने लगे हैं। अगर सरकारें इतिहास की गलतियों के प्रति लापरवाह नहीं रहतीं तो इस तरह की घटनाओं पर सख्त रुख अख्तियार किया जाता और इसके पीछे की साजिश को समझने व रोकने का प्रयास किया जाता। लेकिन सरकारों और पुलिस ने इसे कानून व्यवस्था की समस्या के तौर पर लिया और उसी अंदाज में निपटने का प्रयास किया। इसी की परिणति अजनाला में देखने को मिली।
अजनाला की घटना, ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का उदय और अमृतपाल सिंह का उभरना स्पष्ट रूप से पंजाब के हालात से जुड़ा है। पंजाब अंदर अंदर कई कारणों से और कई तरह से खदबदा रहा है। पंजाब में युवाओं की बड़ी आबादी नशे की आदी हो गई है। एक आंकड़े के मुताबिक 15 से 20 साल की उम्र के किशोर व युवाओं की 40 फीसदी आबादी नशे की लत में जकड़ी है। किसानों में 48 फीसदी आबादी नशे का शिकार है। पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या और उसके बाद हत्या में शामिल दो लोगों का जेल के भीतर मारा जाना पंजाब की एक दूसरी हकीकत बताने वाला है। नशे के बाद जो दूसरा सबसे बड़ा संकट है वह गैंगवार और गैंगेस्टर्स का है। दर्जनों की संख्या में गैंगेस्टर पाकिस्तान से लेकर कनाडा में बैठे हैं और वहां से उनके इशारे पर पंजाब में हत्याएं हो रही हैं। पंजाब में करीब सत्तर गैंग ऐसे हैं, जिनमें हर गैंग के सदस्यों की संख्या पांच सौ से ऊपर है। इसके अलावा छोटे छोटे गैंग्स की संख्या बहुत ज्यादा है।
इनके पास पैसे के दो स्रोत हैं- नशा और हथियार। पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब के इलाकों में भारी मात्रा में हथियार और नशीले पदार्थों की सप्लाई हो रही है। सत्तर-अस्सी के दशक में पंजाब में अस्थिरता का फायदा उठा कर दहशतगर्दी फैला चुकी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को पता है कि ऐसी स्थिति में उसे क्या करना है। अब तो उसको प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से चीन की मदद भी हासिल है। वह थोक के भाव ड्रोन के जरिए हथियार और नशीले पदार्थ पंजाब में भेज रहा है। देश से बाहर कई सिख संगठन ऐसे हैं, जो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के संपर्क में हैं और भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। बब्बर खालसा हो या खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन हो या खालिस्तान कमांडो फोर्स, इन संगठनों के बारे में कहा जा रहा है कि पाकिस्तान में अब भी इनका आधार है। इसी तरह सिख फॉर जस्टिस या वर्ल्ड सिख ऑर्गेनाइजेशन जैसी संस्थाएं हैं, जो कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से काम कर रही हैं। ये संस्थाएं जाने अनजाने में अपने एजेंडे के तहत या किसी बाहरी ताकत के असर में पाकिस्तान के युवाओं के दिमाग को प्रभावित करने का काम कर रही हैं। नशे की लत के शिकार और गैंगवार की जाल में फंसे युवाओं को अपना भला बुरा नहीं दिख रहा है।
पंजाब का तीसरा संकट आर्थिकी का है। हरित क्रांति की भूमि पंजाब बंजर हो रहा है। भूमिगत जल का स्तर लगातार नीचे गिर रहा है। पैदावार कम हो रही है और किसानों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। पंजाब में किसान कैसे परेशान हैं, इसकी एक झलक केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में देखने को मिली थी। तब किसान किसी राजनीतिक कारण से कानून के विरोध में एक साल तक आंदोलन नहीं करते रहे थे, बल्कि वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे थे। उस समय उनके आंदोलन के प्रति सहानुभूति दिखाने की बजाय जिस तरह से उसे बदनाम करने और किसानों को खालिस्तानी बताने का अभियान चला उसने पंजाब की बड़ी आबादी के दिल दिमाग पर असर डाला। अलगाववादी और चरमपंथी ताकतें इसका फायदा उठा रही हैं। उन्होंने भाषा और धर्म के साथ साथ पंजाब की आर्थिक समृद्धि का मुद्दा उठाया है। वे आरोप लगा रहे हैं कि पंजाब से उसकी समृद्धि छीन ली गई है। उसकी नदियों का पानी चुरा लिया गया है। उसका गौरव समाप्त हो रहा है। अमृतपाल सिंह जैसे लोग इन्हीं बातों से लोगों को आक्रोशित कर रहे हैं।
चौथा संकट राजनीतिक है। राजनीतिक का मतलब यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी की सरकार है या मजबूत मुख्यमंत्री नहीं है। इसका मतलब है कि देश का राजनीतिक विमर्श पंजाब को प्रभावित कर रहा है। अमृतपाल ने खुल कर कहा कि जब हिंदू राष्ट्र की बात हो रही है तो खालिस्तान की बात करना अपराध कैसे हो सकता है। हिंदू राष्ट्रवाद की धारणा के उदय और मुख्यधारा में उसके प्रचार ने परोक्ष रूप से पंजाब में सिख राष्ट्रवाद के विचार को हवा दिया है। पंजाब के छोटे छोटे शहरों से लेकर ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के शहरों में भी यह देखने को मिला है। दुनिया के कई देशों में हिंदू बनाम सिख राष्ट्रवाद का उन्माद जोर पकड़ रहा है। कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में सिखों और हिंदुओं के बीच हिंसक झड़प हुई है। वहां का टकराव जंगल के आग की तरह पंजाब में फैलता है।
सो, इससे फर्क नहीं पड़ता है कि सरकार किसकी है या मुख्यमंत्री कौन है। असली बात यह है कि केंद्र और राज्य की सरकारें पंजाब के गहराते संकट को समझ नहीं पा रही हैं। वे किसी न किसी मुगालते में हैं या इसमें राजनीतिक फायदा देख रही हैं, जैसा सत्तर के दशक में कांग्रेस ने देखा था। यह आग से खेलने जैसा है। सोचें, भिंडरावाल ने अपनी तरफ से कभी अलग देश की मांग नहीं की थी, तब खालिस्तान के विचार ने पंजाब की बड़ी आबादी को प्रभावित किया था, जबकि आज अमृतपाल खुल कर खालिस्तान की बात कर रहा है। वह खुल कर देश के गृह मंत्री को धमकी दे रहा है और इंदिरा गांधी के हस्र की याद दिला रहा है। सोचें, यह कितना खतरनाक है। इस समय एक भी गलत राजनीतिक पहल हुई थी उसका अंजाम पहले से भयानक होगा। केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इसे समझने की जरूरत है। वे इस भ्रम में न रहें कि यह कोई मामूली कानून व्यवस्था की घटना है और न यह सोच रखें कि जब चाहेंगे इसे कुचल देंगे। संकट को देखने का यह दोनों नजरिया खतरनाक है।