nayaindia khalistan movement in punjab पंजाब का घाव नासूर न बन जाए

पंजाब का घाव नासूर न बन जाए

खालिस्तान समर्थक कट्टरपंथी उपदेशक अमृतपाल सिंह का मामला केंद्र और पंजाब की सरकारों की लापरवाही का नमूना है। बेहद संवेदनशील स्थितियों और रक्तरंजित इतिहास के बावजूद पिछले 10 साल में राज्य की तीन पार्टियों की सरकारों और केंद्र की सरकार ने बिगड़ते हालात की अनदेखी की। अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी तीनों की सरकारों के सामने चरमपंथी संगठन मजबूत होते गए। उन्होंने आंखें मुंदे रखी तो केंद्र की खुफिया एजेंसियों ने भी राज्य के हालात को कभी गंभीरता से नहीं लिया। दमदमी टकसाल ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में मारे गए जरनैल सिंह भिंडरावाले और अन्य आतंकवादियों को शहीद बताते हुए 2014 में जब उनके स्मारक बनवाए उसी समय सरकारों को अलर्ट हो जाना चाहिए था। उसके बाद अलग अलग मौकों पर पंजाब में खालिस्तान समर्थक नारे सुनने को मिले और खुलेआम भिंडरावाले का जिक्र होने लगा। नौजवान उसकी फोटो वाली टी शर्ट पहनने लगे और किसी न किसी तरह से उसे वैधता दिलाने की कोशिश शुरू हुई तब भी सरकारों की नींद नहीं खुली।

भारत सरकार की खुफिया एजेंसियों को पता ही नहीं चला कि पाकिस्तान ने अलग सिख राष्ट्र के बहाने भारत में अस्थिरता फैलाने का नापाक इरादा छोड़ा नहीं है। सबको यह याद है कि जुल्फिकार अली भुट्टो ने कश्मीर के लिए हजार साल तक लड़ने का इरादा जताया था लेकिन सब इस बात को भूल गए कि 1971 की लड़ाई में निर्णायक हार और पाकिस्तान के विभाजन के बाद भुट्टो ने ही अलग सिख राष्ट्र के नाम पर भारत में अस्थिरता फैलाने और भारत के टुकड़े करने का संकल्प जाहिर किया था। भुट्टो को फांसी देने वाले जनरल जिया उल हक ने भी भुट्टो के इस इरादे को पूरा करने का प्रयास किया और उसके बाद पाकिस्तान के हर शासक का यह संकल्प रहा। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई 1980 के दशक में अपने इरादे में काफी हद तक कामयाब हो गई थी। सबको पता है कि अस्सी का दशक कैसा बीता! ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी वह आग ठंडी नहीं हुई। इंदिरा गांधी की हत्या के एक दशक बाद 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या हुई थी।

तभी हैरानी है कि इस इतिहास के बावजूद सरकारों ने लापरवाही की। उन्होंने अलगाववादी तत्वों को खत्म करने की बजाय उनको फलने फूलने दिया। दुनिया के दूसरे देशों में बैठ कर अलगाववादी संगठन काम करते रहे। उनको आईएसआई की मदद मिलती रही और किसी न किसी तरीके से वह मदद पंजाब पहुंचती रही। आब जाकर भारत सरकार की खुफिया एजेंसियां जांच कर रही हैं कि पंजाब में पिछले सात साल में 40 करोड़ रुपए धार्मिक कार्यों के लिए अलग अलग संगठनों को मिले। सवाल है कि सात साल पहले भारत की खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक कैसे नहीं लगी? जिस समय गुरुग्रंथ साहेब की बेअदबी की घटनाएं बढ़ीं, नौजवान भिंडरावाले की फोटो वाली टी शर्ट पहन कर घूमने लगे, सीमा पार से नशीले पदार्थों के साथ साथ हथियारों की तस्करी बढ़ गई, सैकड़ों की संख्या में आपराधिक गैंग बन गए, इन गिरोहों को सीमा पार से मदद मिलने लगी, हथियार और नशे की बात लोकप्रिय गानों का हिस्सा बन गई तब सरकारों ने इसे छोटी मोटी घटना मान कर इसकी अनदेखी की। दीप सिद्धू ने ‘वारिस पंजाब दे’ नाम से संगठन बनाया तब भी सरकारें सोती रहीं। न तो उसके इरादों की जांच हुई और न उसकी फंडिंग की। दीप सिद्धू की मौत के बाद कैसे दुबई से आकर एक व्यक्ति ने उस संगठन पर कब्जा कर लिया, इस पर भी किसी ने ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी। इसी लापरवाही का नतीजा है अमृतपाल! अगर सरकारें और खुफिया एजेंसियां अलर्ट होतीं तो पहले ही पता लग जाता कि अमृतपाल दुबई से जॉर्जिया गया था, जहां उसे भारत विरोधी गतिविधियों के लिए प्रशिक्षण दिया गया था और उसके बाद वह भारत आया। खुफिया एजेंसियों को उसके फरार होने के बाद पता चला कि थोड़े दिन पहले ही उसने जिस लड़की से शादी की है वह भी बब्बर खालसा की सदस्य है और उसके लिए फंडिंग जुटाती है।

वह तो संयोग है कि 23 फरवरी को अजनाला वाली घटना हुई, जहां अमृतपाल अपने करीबी सहयोगी लवप्रीत सिंह तूफान को थाने से छुड़ाने के लिए बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ पहुंच गया और थाने पर धावा बोल दिया। पंजाब पुलिस को मजबूरी में उसके सहयोगी को छोड़ना पड़ा। लेकिन उस घटना से केंद्र और राज्य सरकार की नींद खुली। एजेंसियां अलर्ट हुईं और अमृतपाल की जांच-पड़ताल शुरू हुई। उसके बाद 18 मार्च के अभियान की तैयारी हुई। इस तरह के किसी भी अभियान की तैयारी बड़ी गोपनीय होती है और बहुत बारीकी से उसका ताना-बाना बुना जाता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि इस मामले में भी कुछ लापरवाही हुई। सुरक्षा एजेंसियों के जानकार मान रहे हैं कि कहीं न कहीं मानक संचालन प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ। पुलिस को सबसे पहले अमृतपाल को पकड़ना चाहिए था, लेकिन पुलिस ने पहले उसके सहयोगियों को पकड़ा, जिससे वह अलर्ट हो गया और भाग गया। यह भी कहा जा रहा है कि पुलिस के पास पुख्ता खुफिया इनपुट नहीं था। उसके फरार होने के बाद की घटनाएं तो बताती ही है कि खुफिया एजेंसियों ने कैसा काम किया है!

इसके बावजूद कहा जा सकता है कि यह एक मौका है, जिसका सही तरीके से इस्तेमाल करके पंजाब के इस छोटे से घाव को नासूर बनने से रोका जा सकता है और अब तक जो गलतियां हुई हैं उनको ठीक किया जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकार दोनों को पहले इस समस्या के साथ साथ पंजाब की दूसरी समस्याओं और मुश्किलों को भी समझना होगा। बिना हालात को समझे इस समस्या की गंभीरता को नहीं समझा जा सकता है। देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक रहे पंजाब में बड़ा आर्थिक संकट है। बेरोजगारी बढ़ रही है। गेहूं-धान की खेती से राज्य की अर्थव्यवस्था नहीं चल सकती है। ऊपर से भूमिगत जल स्तर लगातार नीचे जा रहा है और जमीन की उर्वरता कम होती जा रही है। आर्थिक संकट के अलावा सामाजिक स्तर पर कई समस्याएं हैं। बड़ी संख्या में बेरोजगार युवा नशे की गिरफ्त में हैं और किसी न किसी गैंग का हिस्सा बन कर आपराधिक गतिविधियों में शामिल हैं। सीमा पार से ड्रोन के जरिए बड़ी मात्रा में हथियार और नशा भारत की सीमा में भेजा जा रहा है। ऐसी स्थिति में कट्टरपंथी उपदेशकों के लिए युवाओं को भटकाना बहुत आसान हो जाता है। बाहरी और विदेशी ताकतों से मिल रही मदद के दम पर वे धर्म प्रचार के नाम पर भड़काऊ और उत्तेजक भाषण देते हैं। वे गौरवशाली सिख इतिहास की याद दिला कर अलग देश बनाने के लिए लोगों को उकसाते हैं। इस तरह की हर छोटी बड़ी घटना को रोकना होगा।

जहां तक विदेशी मदद का सवाल है तो भारत को कूटनीतिक स्तर पर इसे एक मिशन की तरह लेना होगा। भारत सरकार को तत्काल कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों की सरकारों से बात करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी धरती से चलने वाली भारत विरोधी गतिविधियां बंद हों। सोचें, खालिस्तान समर्थक लंदन में भारतीय उच्चायोग पर से तिरंगा उतार देते हैं, सैन फ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास पर हमला करते हैं, ब्रिस्बेन में भी इंडियन कौंसुलेट पर हमला करते हैं, कनाडा में हिंदुओं के ऊपर हमले करते हैं और सरकार सिर्फ निंदा करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती है। दुनिया के दूसरे देशों से भारत की अखंडता भंग करने के लिए काम कर रहे संगठनों पर अंतरराष्ट्रीय पाबंदी और उनकी फंडिंग के स्रोत बंद करने का प्रयास होना चाहिए। अगर हम चाहते हैं कि यह घाव नासूर नहीं बने तो सुरक्षा एजेंसियों के साथ साथ खुफिया एजेंसियों को भी सतर्क होना होगा और भारत सरकार को अपनी कूटनीतिक ताकत दिखानी होगी।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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