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भारत आकर क्यों घिरे?

इल्जाम है कि पिछले हफ्ते हुई भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री दहल ने नेपाल को पूरी तरह भारत पर निर्भर बना दिया। जबकि इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ।

नेपाल के विपक्षी दलों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को घेरने में जुट गया है। उनका इल्जाम है कि पिछले हफ्ते हुई भारत यात्रा के दौरान दहल ने नेपाल को पूरी तरह ‘भारत पर निर्भर’ बना दिया। इस यात्रा के दौरान नेपाल को ज्यादा कुछ हासिल नहीं हुआ। कहा गया है कि दहल सीमा विवाद, विमान रूट, पंचेश्वर परियोजना के बारे में नेपाल की मांगों पर भारत को राजी नहीं कर पाए। जबकि उनकी यात्रा के दौरान यही तीन प्रमुख मसले थे। इसके बजाय दहल ने दोनों देशों के बीच इलाकों की अदला-बदली की बात की है। नेपाल में इसका यह अर्थ निकाला गया है कि नेपाली प्रधानमंत्री ने भारत को यह संकेत दे दिया है कि नेपाल कालापानी इलाके पर से अपना दावा छोड़ने को तैयार है। दहल की भारत यात्रा शुरू होने से ठीक पहले नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने नेपाल के विवादित नागरिकता विधेयक पर दस्तखत कर दिया था। विपक्ष का आरोप है कि ऐसा भारत सरकार को खुश करने के लिए किया गया। इसके अलावा कभी अपने को धर्म निरपेक्ष राजनीति का चेहरा बताने वाले दहल ने मध्य प्रदेश में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर का दौरा किया।

इसे भी भारत की मौजूदा सरकार को खुश करने की कोशिश बताया गया है। आलोचकों ने कहा है कि भारत में दहल का स्वागत संदेह के साथ किया गया। वहां उन्हें एक कमजोर गठबंधन के नेता के तौर पर देखा गया है। साथ ही उनकी ‘चाइना मैन’ की छवि के कारण भी भारत सरकार ने ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया। नेपाल में परंपरा रही है कि वहां प्रधानमंत्री बनने के बाद कोई नेता अपनी पहली विदेश यात्रा पर भारत जाता है। आलोचकों ने कहा है कि दहल ने यह रस्म-अदायगी की, लेकिन वे अपने देश के लिए कुछ हासिल नहीं कर पाए। इस सिलसिले में दहल की जल्द ही संभावित चीन यात्रा की चर्चा शुरू हो गई है। क्या चीन में दहल कुछ ज्यादा हासिल कर पाएंगे? या वहां उनकी अब उनकी भारत समर्थक की बनी छवि आड़े आ जाएगी- यह सवाल उठाया जा रहा है।

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By NI Editorial

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