Wednesday

30-04-2025 Vol 19

साहस कहें या दुस्साहस?

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मध्य वर्ग के लिए आय कर में छूट का जो एलान शुरुआत में बड़ा दिखा, वह विश्लेषण पर दिखावटी मालूम पड़ने लगा। साफ हो गया कि इसके पीछे मकसद साफ तौर पर विभिन्न मदों से मिलने वाले डिडक्शन को खत्म करना है।

आप चाहें, तो इसे साहस या आत्म-विश्वास कह सकते हैं। किसी और नजरिए से इसे दुस्साहस या अति आत्म-विश्वास भी कहा जा सकता है। लेकिन यह सचमुच काबिल-ए-गौर है कि चुनावी साल होने के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने बजट में कृषि क्षेत्र, सामाजिक क्षेत्र, कल्याणकारी योजनाओं आदि के लिए बजट में कटौती कर दी। मध्य वर्ग के लिए आय कर में छूट का जो एलान शुरुआत में बड़ा दिखा, वह विश्लेषण पर दिखावटी मालूम पड़ने लगा। साफ हो गया कि इसके पीछे मकसद साफ तौर पर विभिन्न मदों से मिलने वाले डिडक्शन को खत्म करना है। इसके अलावा बीमा मैच्युरिटी की रकम पर भी टैक्स लगाने का फैसला सरकार ने किया है। इस बजट की एक खास बात पूंजीगत खर्च में 33 प्रतिशत वृद्धि बताई गई है। लेकिन इस रकम का कितना बड़ा हिस्सा सब्सिडी के रूप में बड़े कॉरपोरेट घरानों को जाएगा और कितने से सचमुच सार्वजनिक संपत्ति निर्मित होगी, इसका ब्योरा नहीं दिया गया है।

तो साफ है कि सरकार को भरोसा है कि उसके पास चुनाव जीतने का ऐसा फॉर्मूला है, जिससे बजट से डाले गए बोझ भी बेअसर बने रहेंगे। गौर कीजिए। बजट से ठीक पहले आए इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया था कि वित्त साल 2022-23 में आर्थिक वृद्धि इन तीन वजहों से हुईः कोरोना के बाद मांग में बढ़ोतरी, 2022 के पहले कुछ महीनों में बढ़ा निर्यात और सरकार की ओर से किए गए खर्चे। इनमें से दो बातें तो अगले साल के लिए डरावना इशारा कर रही हैं। मांग के अगले साल और बढ़ने के आसार नहीं हैं। नई नौकरियां आती हैं और तनख्वाह बढ़ती है, तो फिर मांग बढ़ती है। अभी भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में हालात इससे उलट हैं। निर्यात में बढ़ोतरी की संभावना भी नहीं है। जाहिर है, आम जन की अर्थव्यवस्था तो फिलहाल डगमग ही रहने वाली है। खुद सरकार भी कर्ज का बोझ बढ़ेगा, यह बजट में ही कहा गया है। इसके बावजूद अमृत काल का नारा उछाला गया है, तो यह भी सरकार के अति आत्म-विश्वास का ही संकेत देता है।

NI Editorial

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