राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

विपक्षी पार्टियां हारेंगी या टूटेंगी!

भाजपा की पुरानी रणनीति है कि प्रादेशिक पार्टियों को या तो हरा कर खत्म करना है या तोड़ कर खत्म करना है। भाजपा की पुरानी सोच रही है कि देश में सिर्फ दो ही पार्टियां होनी चाहिए। अगर दूसरी पार्टी कांग्रेस हो तो वह भाजपा के ज्यादा अनुकूल है क्योंकि भारतीय जनसंघ के जमाने से यानी कोई 72 साल के प्रचार के दम पर भाजपा ने कांग्रेस को देश की सारी समस्याओं की जड़ के तौर पर स्थापित किया है। भारत के विभाजन से लेकर देश की गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, आबादी जैसी तमाम समस्याओं के लिए भाजपा ने कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। साथ ही तमाम तरह के भ्रष्टाचार के लिए भी कांग्रेस को जिम्मेदार बना दिया है।

तभी अगर चुनाव नतीजों को देखें तो साफ लगेगा कि भाजपा के लिए कांग्रेस को हराना बहुत आसान है। जहां भी कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला है वहां भाजपा ज्यादा आसानी से जीतती है। विधानसभा चुनावों में भी यह ट्रेंड है लेकिन लोकसभा चुनाव में तो अब यह थंब रूल की तरह स्थापित है। कांग्रेस जो 52 सांसद अभी हैं उनमें से ज्यादातर वहां जीते हैं, जहां उनको सहयोगी पार्टियों का साथ मिला है या भाजपा से सीधे नहीं लड़ना पड़ा है। सो, भाजपा की राजनीति है कि कांग्रेस कमजोर रहे और प्रादेशिक पार्टियां हार या टूट कर खत्म हो जाएं। फिर देश में भाजपा का स्थायी राज बनेगा। एकदलीय लोकतंत्र स्थापित हो जाएगा। कहने को और भी पार्टियां होंगी लेकिन उनका अस्तित्व मायने वाला नहीं होगा। सो, एक रणनीति के तहत भाजपा उन पार्टियों को तोड़ने के प्रयास करती है, जिनको हरा नहीं पाती है।

इस बात को महाराष्ट्र में शिव सेना के उदाहरण से समझा जा सकता है। कायदे से शिव सेना के प्रति भाजपा को अहसानमंद होना चाहिए था क्योंकि उसके दम से ही भाजपा महाराष्ट्र में फली फूली और सत्ता में आई। लेकिन जब लगा कि राज्य में भाजपा अपने दम पर पर्याप्त मजबूत हो गई है और ठाकरे परिवार की कमान वाली शिव सेना उसके और मजबूत होने के रास्ते में बाधा है तो शिव सेना को कमजोर करने का मिशन  शुरू हुआ। पहले बड़े भाई की भूमिका में रही शिव सेना को छोटा भाई बनाया गया। उससे भी काम नहीं चला तो उसमें विभाजन करा दिया गया। भाजपा की आगे की राजनीति को इस बात से समझें कि उसने 288 सदस्यों की विधानसभा में सिर्फ 40 विधायकों वाले एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है। इसका मकसद सिर्फ इतना है कि ठाकरे परिवार की राजनीति को खत्म किया जाए। अगर हिंदुत्व की राजनीति करने वाली और महाराष्ट्र में गहरी जड़ वाली शिव सेना समाप्त होती है तो एकनाथ शिंदे आदि को निपटाना तो बाएं हाथ का काम होगा। तब तो उनकी पार्टी का विलय भाजपा में हो ही जाएगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें