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मोदी का ‘पल’ तो अकाल तख्त, केजरीवाल, राहुल, ममता का भी मोमेंट!

जब राष्ट्रसत्ता और राजनीति खरीद फरोख्त की दुकान है तो स्वभाविक जो हर जात, हर धर्म, हर समूह अपने अस्तित्व की चिंता करे। उस नाते अमृतपाल के मोमेंट में सिखों की आला संस्था अकाल तख्त की कही बातें दिमाग में झनझनाहट बना गईं। तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह की इन बातों पर गौर करें-एक, सिखों का शिकार करना और उन्हें बदनाम करना बंद करो। दो, ‘हिंदू राष्ट्रकी बात करने वालों पर कार्रवाई नहीं होती जबकि सिख युवाओं पर रासुका लग रहा है। तीन, राष्ट्रीय मीडिया सिखों को आतंकवादीबता रहा है। जब राष्ट्रीय मीडिया सिखों को बदनाम कर रहा था तब पंजाब में सिख पत्रकारों और सिख चैनलों को सेंसर किया गया और यह एक गहरी साजिश का संकेत है। चार, दुनिया को सिखों के साथ हो रहे व्यवहार, उन पर अत्याचारों पर प्रकाश डालने के लिए अकाल तख्त की ओर से धार्मिक यात्रा खालसा वाहीरशुरू करने का आह्वान।

इन बातों के साथ दुनिया के अलग-अलग कोनों में सिखों के प्रदर्शन, विरोध की घटनाओं को यदि जोड़ें तो क्या यह बेसिक सत्य जाहिर नहीं होगा कि सिख मनोदशा उबलते हुए है। भारत के सबसे बहादुर लोग और दुनिया में अपनी मेहनत, बेफिक्री, जिंदादिली से अपना झंडा गाड़े सिखों में हिंदू बनाम सिख का दुराव रग-रग में गहराता हुआ है। खालिस्तानपंथी दुनिया में भारत की, हिंदुओं की बदनामी करते हुए है। कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका आदि में सिख या तो हिंदुओं की पिटाई करते हुए हैं या सिख और हिंदू आपस में भिड़ते, शक्ति परीक्षण करते हुए हैं। त्रासद बात यह है जो हिंदू भक्त दुनिया में सिखों से लड़ते हुए यह संतोष जतलाते मिल रहे हैं कि देखा हमने ताकत दिखलाई। सोचे, यह जोड़ना है या तोड़ना

कौन जिम्मेवार? मोदी के मोमेंट में बनी गंवार हिंदू राजनीति। अमृतपाल का सिखों में दो कौड़ी मतलब नहीं था। पर वह हिरोइज्म का अब प्रतीक है। केंद्र और राज्य सरकार की खुफिया, पुलिसिया एजेंसियों को छकाने वाला सिख। तभी अमृतसर में अकाल तख्त और विदेश में खालिस्तानी सब सरकार को चेतावनी देते हुए हैं। सो, नोट रखें पंजाब में सिख बनाम हिंदू व  दुनिया में भारत बनाम खालिस्तानियों के रिश्तों के जख्म हरे हो गए हैं। आने वाले सालों में सिख आबादी वैसे ही चुपचाप घावों में पकती हुई होगी जैसे मुस्लिम आबादी चुपचाप मन ही मन पक रही है।  

अब जरा नरेंद्र मोदी के मोमेंट में अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी और ममता बनर्जी के घावों की मार्च की बिलबिलाहट पर विचार करें। मार्च में इन्हें जो अनुभव हुआ तो बूझ सकते हैं कि  इन तीन नेताओं और इनकी पार्टियों में कैसी और कितनी कट्टरता बनी होगी। मार्च के आखिर में राहुल गांधी ने मन ही मन क्या सोचा और ठाना होगा? अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा के रिकार्ड में नरेंद्र मोदी का नाम ले कर उन पर जो बोला है वह क्या बताता है? और आश्चर्य जो जनसभा में ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ने भी नरेंद्र मोदी को ले कर भारी तेवर दिखाए। 

तो इस सबका निचोड़? वहीं जो नरेंद्र मोदी की तासीर और उनका लक्ष्य है। बकौल सन् 2003 के इडिया टुडेकवर- –MASTER DIVIDER और घृणा-नफरत का क्राफ्ट्समैन, ध्वंस का सम्राट! कुल मिलाकर वह जो हम हिंदुओं का इतिहास है। दुकानदारी का लालच भरा जीवन, बांटो-लड़ो और राज करो तथा गुलाम जीवन! सोचें, ईमानदारी से दिल पर हाथ रख कर सोचें, ये तीनों बिंदु क्या आज के सत्य नहीं हैं?

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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