मुंबई। महाराष्ट्र की देवेंद्र फड़नवीस सरकार ने स्थानीय निकाय चुनावों की मजबूरी में हिंदी को अनिवार्य करने का फैसला रद्द कर दिया है। कक्षा एक से तीन भाषा फॉर्मूला लागू करने और हिंदी अनिवार्य करने के राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ उद्धव और राज ठाकरे ने पांच जुलाई को साझा रैली करने का ऐलान किया था। उसके बाद फड़नवीस सरकार को तय करना था कि स्थानीय निकाय चुनावों की चिंता करें या हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले पर टिके रहें। अंत में उसने चुनाव की चिंता में हिंदी भाषा का अपना फैसला बदल दिया।
उद्धव और राज ठाकरे की रैली की घोषणा के बाद सरकार इतने दबाव में आ गई है कि उसने रविवार को ही तीन भाषा नीति से जुड़े अपने दो आदेश रद्द कर दिए। गौरतलब है कि फड़नवीस सरकार ने इसी साल अप्रैल में कक्षा एक से पांचवीं तक तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को अनिवार्य करने का आदेश जारी किया था। लेकिन रविवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस और दोनों उप मुख्यमंत्री, एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके इस फैसले को रद्द करने का ऐलान किया।
मुख्यमंत्री फड़नवीस ने कहा, ‘तीन भाषा नीति को लेकर शिक्षाविद नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई है। इसके रिपोर्ट के बाद ही हिंदी की भूमिका पर अंतिम फैसला लिया जाएगा’। उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर आरोप लगाते हुए कहा, ‘मुख्यमंत्री रहते उद्धव ठाकरे ने कक्षा एक से 12 तक तीन भाषा नीति शुरू करने के लिए डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकारा था। साथ ही नीति लागू करने पर समिति गठित की थी’।
बहरहाल, 30 जून से महाराष्ट्र में विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। इससे एक दिन पहले हिंदी को अनिवार्य करने का आदेश रद्द किया गया। गौरतलब है कि हिंदी को अनिवार्य बनाने के फैसले के खिलाफ उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने पांच जुलाई को मुंबई में साझा रैली करने का ऐलान किया है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र सरकार ने 16 अप्रैल में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाया था। विरोध के बाद 17 जून को संशोधित आदेश जारी किया गया, जिसमें हिंदी को वैकल्पिक बनाया गया। हालांकि उद्धव ठाकरे ने इसका भी विरोध किया और कि महायुति सरकार का फैसला राज्य में ‘लैंग्वेज इमरजेंसी’ घोषित करने जैसा है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हिंदी के भाषा के रूप में विरोध नहीं करती, लेकिन महाराष्ट्र में इसे थोपने के खिलाफ है।