नई दिल्ली। कांवड़ यात्रा के रास्ते में आने वाली दुकानों पर क्यूआर कोड लगाने और उसमें दुकान मालिकों के बारे में सारी जानकारी देने के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा है कि कांवड़ यात्रा के रास्ते में खाने की दुकानों, ढाबों आदि को अपने मालिकों की जानकारी क्यूआर कोड के जरिए प्रदर्शित करनी होगी। इसके खिलाफ दायर याचिका पर 15 जुलाई को सुनवाई होगी।
उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका दायर करने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने दावा किया है कि इस निर्देश का मकसद धार्मिक आधार पर दुकानदारों की प्रोफाइलिंग करना है, जो पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के खिलाफ है। जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच अपूर्वानंद और अन्य लोगों की ओर से दायर जनहित याचिका पर 15 जुलाई को सुनवाई करेगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल भाजपा शासित उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार की ओर से जारी ऐसे के निर्देशों पर रोक लगा दी थी, जिनमें कांवड़ यात्रा के रास्ते पर स्थित खाने पीने की दुकानों को अपने मालिकों, कर्मचारियों के नाम और अन्य ब्योरा प्रदर्शित करने को कहा गया था। अपूर्वानंद ने उत्तर प्रदेश प्रशासन की ओर से 25 जून को जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्ति का हवाला देते हुए कहा है ‘नए उपायों में कांवड़ मार्ग पर स्थित सभी भोजनालयों के लिए क्यूआर कोड प्रदर्शित करना अनिवार्य किया गया है ताकि मालिकों के नाम और पहचान का पता चले लेकिन इस तरह की भेदभावपूर्ण नीति पर कोर्ट पहले ही रोक लगा चुका है’।
अपूर्वानंद ने राज्य सरकार के निर्देशों को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया है और ऐसे सभी निर्देशों पर रोक लगाने की मांग की है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से जारी निर्देश में दुकान मालिकों से ‘कानूनी लाइसेंस आवश्यकताओं’ के तहत धार्मिक और जातिगत पहचान बताने को कहा गया है। याचिका में कहा गया है कि दुकानदारों को पहचान बताने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।


