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24-06-2025 Vol 19

युद्ध नहीं, आतंकवाद पर कार्रवाई

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जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को बेकसूर सैलानियों पर हमला करने, धर्म पूछ पर हत्या करने और महिलाओं के सामने उनके पतियों को गोली मार कर अपनी अमानवीयता व नृशंसता का परिचय देने वाले आतंकवादियों पर भारत की सेना ने बड़ी कार्रवाई की है। भारत का सैन्य अभियान ‘ऑपरेशन सिंदूर’ किसी मुल्क पर हमला नहीं है और न किसी देश के खिलाफ युद्ध का ऐलान है। यह आतंकवाद के बुनियादी ढांचे को नष्ट करने का सैन्य अभियान है। पूरा देश सेना की इस कार्रवाई के समर्थन में खड़ा है। कह सकते हैं कि देश इसका इंतजार कर रहा था।

आतंकवादी हमले के दो हफ्ते तक सेना ने अपनी तैयारी की ताकि सटीक जवाब दिया जा सके। हालांकि अब भी पहलगाम में मारे गए लोगों और वहां से विधवा होकर लौटी महिलाओं को इंसाफ नहीं मिला है। यह अधूरा इंसाफ है क्योंकि पहलगाम नरसंहार करने वाले पांचों आतंकवादी अभी तक पकड़े नहीं गए हैं और न उनके मारे जाने की सूचना मिली है।

भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत तीन बड़े आतंकवादी संगठनों को निशाना बनाया। लश्कर ए तैयबा के चार, जैश ए मोहम्मद के तीन और हिजबुल मुजाहिदीन के दो ठिकानों को सेना ने नष्ट किया। भारतीय सेना ने खुफिया एजेंसियों की सूचना पर अपना निशाना तय किया और लक्षित कार्रवाई की। सेना और खुफिया एजेंसियों को पहले से पता है कि बहावलपुर में मसूद अजहर के बनाए जैश ए मोहम्मद का मुख्यालय है। वहां सेना ने उसके मुख्यालय मरकज सुभान को नष्ट किया। इसी तरह मुरीदके शहर को हाफिज सईद के बनाए लश्कर ए तैयबा का गढ़ माना जाता है।

वहां सेना ने उमालकुरा मस्जिद को निशाना बनाया। यह भी खबर है कि मुरीदके में लश्कर के प्रशिक्षण शिविर मरकज ए तैयबा को नष्ट किया गया। इसके अलावा मुजफ्फराबाद में बिलाल मस्जिद और कोटली में अब्बत मस्जिद को भी निशाना बनाया गया। सियालकोट और बरनाला में भी भारतीय सेना ने आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट किया है। पाकिस्तानी सेना की ओर से शुरुआती प्रतिक्रिया में कई ‘मस्जिदों के शहीद’ होने की बात कही गई।

भारत ने बहुत सावधानी और बड़े सुलझे तरीके से पाकिस्तान की आतंकवादी कार्रवाई का जवाब दिया है। पहलगाम हमले के पीछे आतंकवादियों का दो मकसद था। पहला मकसद देश के सांप्रदायिक विभाजन बढ़ाने का था। उन्होंने धर्म पूछ कर हिंदुओं की हत्या की। महिलाओं के सामने उनके पतियों को गोली मारा और महिलाओं को संदेश पहुंचाने के लिए छोड़ दिया। लेकिन देश के लोगों ने संयम रख कर आतंकवादियों के मंसूबे को विफल कर दिया। आतंकियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के बाद विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सैन्य अभियान की जानकारी दी।

इतनी बड़ी सैन्य कार्रवाई के बाद एक मुस्लिम महिला अधिकारी का प्रेस कॉन्फ्रेंस करना आतंकवादियों के धर्म पूछ कर हत्या करने का जवाब था। आतंकवादियों का दूसरा मकसद जम्मू कश्मीर में सामान्य हो रहे हालात और बेहतर हो रही अर्थव्यवस्था को बेपटरी करने का था। उम्मीद है कि राज्य की चुनी हुई सरकार, सुरक्षा बल और देश के नागरिक उनके इस मंसूबे को भी विफल करेंगे।

बहरहाल, यह वास्तविकता है कि पाकिस्तान कभी भी भारत के साथ युद्ध नहीं कर सकता है। उसको 1965 और 1971 की लड़ाई में सबक मिल गया है, जिसे उसने गांठ बांध ली है। इसलिए पिछले 54 साल में उसने कोई प्रत्यक्ष युद्ध नहीं लड़ा है। उसने 1971 की लड़ाई के बाद छद्म युद्ध का रास्ता चुन लिया। 1999 में करगिल में भी प्रत्यक्ष युद्ध नहीं हुआ था। वहां भी पाकिस्तानी सेना ने गुपचुप तरीके से भारतीय सीमा में घुस कर अपना शिविर बना लिया था। ठीक वैसे ही जैसे मालिक के लापरवाह होने पर चूहे घरों में घुस कर ठिकाना बना लेते हैं।

ऑपरेशन सिंदूर: भारत की आतंकवाद के खिलाफ बड़ी कार्रवाई

वह भारत की लापरवाही थी लेकिन पाकिस्तानी सेना के सीमा में घुसने की जानकारी मिलने के बाद एक सीमित सैन्य कार्रवाई के जरिए भारत ने करगिल को मुक्त करा लिया था। सो, पाकिस्तान भारत के खिलाफ युद्ध नहीं कर सकता है। लेकिन वह छद्म युद्ध हमेशा जारी रखना चाहेगा क्योंकि इससे पाकिस्तान के शासकों और सैन्य अधिकारियों को संजीवनी मिलती है, वे पाकिस्तानी आवाम को बरगलाए रखने में कामयाब होते हैं और एक सीमा तक भारत को अशांत किए रहते हैं। इसलिए भारत को सीमा पार आतंकवादियों का नेटवर्क पूरी तरह से समाप्त करने की जरुरत है और साथ ही अपने खुफिया नेटवर्क व सुरक्षा तंत्र को ज्यादा बेहतर बनाने की भी जरुरत है।

इससे पहले भारत ने 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक किया था और नियंत्रण रेखा पार करके आतंकवादी शिविरों का सफाया किया था। उसके तीन साल बाद पुलवामा कांड हुआ तो भारत ने एयर स्ट्राइक करके कुछ आतंकवादी ठिकाने नष्ट किए। लेकिन इससे आतंकवाद का सफाया नहीं हुआ और न भारत को स्थायी राहत मिली। एक निश्चित अंतराल पर भारत में बड़े आतंकवादी हमले होते रहे हैं। पाकिस्तानी सेना के संरक्षण में आंतकवादी घुसपैठ करते हैं और सुरक्षा बलों व नागरिकों को निशाना बनाते है।

पिछले 10 साल में आतंकवादी हमले में छह सौ से ज्यादा जवान शहीद हुए हैं और करीब डेढ़ हजार जवान घायल हुए हैं। साढ़े तीन सौ से ज्यादा नागरिक मारे गए हैं और सैकड़ों घायल हुए हैं। सोचें, यह शांति काल के आंकड़े हैं। जाहिर है पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत को कई तरह से नुकसान पहुंचा रहा है। दुनिया इससे परिचित है तभी पहलगाम कांड के बाद जब पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ में पहुंचा तो सुरक्षा परिषद की बैठक में सदस्य देशों ने उलटे उसी को कठघरे में खड़ा किया।

असल में पाकिस्तान अपनी राष्ट्रीय नीति के तौर पर आतंकवाद को पालता पोसता है। उसके रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने खुद कबूल किया कि उनका मुल्क 30 साल से आतंकवादियों को प्रशिक्षण और प्रश्रय दे रहा है। बाद में पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने भी इसकी पुष्टि की। हालांकि पाक रक्षा मंत्री ने आतंकवादियों को पालने पोसने की गतिविधि को अमेरिका और पश्चिमी देशों की रणनीति के साथ जोड़ दिया। हो सकता है कि सोवियत युद्ध या चीन के दखल की वजह से इससे दुनिया के कुछ देश जुड़े हों लेकिन उनका निशाना भारत नहीं है।

उन देशों के बहाने पाकिस्तान अपना भारत विरोधी एजेंडा चलाता है। इसलिए कह सकते हैं कि पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन, उनके नेता और ठिकाने मिथकीय राक्षस रक्तबीज की तरह हैं। एक ठिकाना नष्ट करेंगे तो कई दूसरे ठिकाने बनेंगे और एक आतंकवादी को मारेंगे तो कई आतंकवादी पैदा होंगे। तभी दीर्घावधि में कैसे पाकिस्तान को आतंकवादियों के सहारे भारत के खिलाफ छद्म युद्ध चलाने से रोका जाए इस पर काम करना होगा। तात्कालिक जरुरत आतंकी ठिकानों को नष्ट करने, आतंकवादियों को खोज कर मारने, अपनी सीमा सुरक्षित करने और खुफिया नेटवर्क दुरुस्त करने की है। लेकिन अब तक के अनुभव से पता है कि यह स्थायी समाधान नहीं है।

पाकिस्तान के साथ भारत वार्ता करके देख चुका है। उससे कोई फायदा नहीं हुआ। कई युद्धों से भी फायदा नहीं हुआ और आतंकवाद के ठिकानों पर लक्षित कार्रवाई का भी फायदा तात्कालिक ही होता है। इसलिए स्थायी समाधान का कोई दूसरा रास्ता तलाशना होगा। भारत को एक तरफ पाकिस्तान का छद्म युद्ध झेलना है तो दूसरी ओर बांग्लादेश भी एक दुश्मन देश के तौर पर भारत के खिलाफ खड़ा हो गया है।

चीन पहले से भारत पर नजर गड़ाए हुए है। भौगोलिक रूप से भारत शत्रुओं से घिरा है। उनसे निपटने के कई तरीके हो सकते हैं लेकिन उससे पहले भारत को अपनी आर्थिक ताकत और सामरिक क्षमता बढ़ाने होगी और साथ ही देश के अंदर के सांप्रदायिक विभाजन को कम से कम रखने का प्रयास करना होगा।

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Pic Credit: ANI

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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