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एआई चापलूस, झूठा और प्रोपेगेंडा मशीन?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई को लेकर पूरी दुनिया अद्भुत अचम्भे में है। जीवन के हर क्षेत्र में इसके महत्व और इसकी जरुरत को प्रमाणित करने के दावे किए जा रहे हैं। इसका असर भी दिख रहा है। एआई के कारण बड़ी टेक कंपनियों के सीईओ की सैलरी बढ़ रही है और कंपनियों के शेयरों की कीमत में बेहिसाब बढ़ोतरी हो रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला के वेतन में इस साल 152 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है, जिसके बाद उनका वेतन 847 करोड़ रुपए के करीब हो गया है। एक साल में उनका वेतन 22 फीसदी बढ़ा है और ऐसा एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमता की वजह से हुआ। एआई तकनीक में उतरने की वजह से माइक्रोसॉफ्ट के शेयरों में बढ़ोतरी हुई, जिसका लाभ कंपनी ने सीईओ सत्य नडेला को भी दिया।

ऐसा सिर्फ एक कंपनी या एक सीईओ के साथ नहीं हुआ है। एआई की भेड़चाल में सारी दुनिया शामिल है और सब कमाई कर रहे हैं। दूसरी ओर गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई ने बाजार की खबरों के हवाले से यह आशंका जताई है कि एआई एक लाख 80 हजार नौकरियां छीन सकता है। उनकी कंपनी ने 13 हजार लोगों की छंटनी की है और अब अमेजन ने कहा है कि वह एमबॉट्स तैनात करने जा रहा है, जिससे तत्काल 18 हजार लोगों की नौकरियां जाएंगी। एक तरफ एआई से चुनिंदा लोगों की कमाई बढ़ रही हैं और दूसरी ओर लाखों लोगों की नौकरियां जा रही हैं। यह एक विरोधाभास है, जिससे हर नई तकनीक को गुजरना होता है।

लेकिन हम इस विरोधाभास की चर्चा नहीं कर रहे हैं। हम एआई की उन खामियों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिनके बारे में बहुत कम चर्चा होती है। टुकड़ों में खबरें आती हैं और फिर कहीं गायब हो जाती हैं। देश के जाने माने पत्रकार शेखर गुप्ता ने अपने एक लेख में इसके झूठ का पर्दाफाश किया है। उन्होंने बताया है कि एआई कितना झूठ बोल सकता है या कितनी गलत जानकारी आपके सामने परोस सकता है। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऑपरेशन सिंदूर के लिए घोषित वीरता पुरस्कारों के बारे में एआई टूल ग्रोक से जानकारी मांगी थी। ग्रोक ने उन्हें ऐसी ऐसी जानकारी दी, जिसका सचाई से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था।

ग्रोक ने वीरता पुरस्कार पाने वालों का ऐसा प्रशस्ति गान किया, जिसकी मिसाल नहीं दी जा सकती है। इतना ही नहीं ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई के दौरान के ऐसे ऐसे कारनामे बताए, जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं था, लेकिन जिन्हें युद्ध के समय एक खास मकसद से व्हाट्सऐप के जरिए प्रचारित किया गया था। यानी जिस झूठ का प्रचार, प्रोपेगेंडा किसी खास मकसद से, किसी खास समूह द्वारा किया जाता है, एआई टूल उसे सची खबर बना कर आपके सामने पेश कर सकता है। सोचें, कितना आसान है अपने झूठ के प्रचार के लिए एआई टूल्स को इस्तेमाल कर लेना!

कहानी इतने पर खत्म नहीं होती है। शेखर गुप्ता ने जब सरकार की ओर से जारी आधिकारिक अधिसूचना का लिंक खोल लिया और सारी जानकारी उनके सामने आ गई तो उन्होंने ग्रोक से जवाब तलब किया तो उसने गलती मानी और कम से कम एक मामले में उनको सही जानकारी उपलब्ध कराई। इसका मतलब है कि एआई टूल सही जानकारी दे सकता है लेकिन उसको अगर इस्तेमाल किया जाए तो वह झूठ और प्रोपेगेंडा को भी सची खबर बना कर प्रचारित और प्रसारित कर सकता है।

ग्रोक के साथ अपने अनुभव में शेखर गुप्ता के तीन निष्कर्ष हैं। पहला, ‘एआई तेज है, बल्कि कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार है। यह आपको तथ्य उपलब्ध कराने का वादा करता है, लेकिन आपकी जरूरत के मुताबिक सजा धजाकर नैरेटिव गढ़ सकता है’। दूसरा, ‘एआई प्रोपेगेंडा, दुष्प्रचार और सूचना के साथ खिलवाड़ को नए स्तर पर ले जा रहा है’ और तीसरा, ‘एआई को आसानी से शिकार बनाया जा सकता है’।

अब सवाल है कि एआई टूल ग्रोक ने यह बात वेब पर उपलब्ध खबरों से उठा कर पेश कर दी या उसे इस रूप में प्रशिक्षित किया गया है कि वह ऐसे मामलों में इसी तरह का नैरेटिव पेश करे? इस सवाल का जवाब देने के लिए कई संदर्भ उपलब्ध हैं, जिनसे सही जवाब तक पहुंचा जा सकता है। एक संदर्भ चीन के बनाए जेनेरेटिव एआई डीपसीक का है। उससे आप कितना भी पूछें वह थियेनआनमन चौक पर हुए नरसंहार के बारे में सही जानकारी नहीं देगा। इसी तरह वह भारत के कई क्षेत्रों को चीन का हिस्सा बताता है। वह ताइवान को भी चीन का ही हिस्सा बताता है।

जाहिर है कि चीन ने उसका एलगोरिद्म इस तरह से तैयार किया है कि वह चीन के हित को प्राथमिकता देकर ही कोई भी जवाब देगा। दूसरा संदर्भ इलॉन मस्क के टूल ग्रोक के एनसाइक्लोपीडिया, जिसका नाम ग्रोकपीडिया है और विकीपीडिया के जवाबों को देख सकते हैं। मस्क का अपना जो एनसाइक्लोपीडिया है वह तथ्यों को इस अंदाज में पेश करता है, जिससे मस्क के गोरे और नस्ली श्रेष्ठता को सपोर्ट किया जा सके। जॉर्ज फ्लॉयड के बारे में पूछे गए सवाल पर दोनों के जवाब का अंतर इसको दिखाता है। पहले यह जान लें कि जॉर्ज फ्लॉयड एक अश्वेत व्यक्ति थे, जिनको एक गोरे पुलिस अधिकारी ने मिनियापोलिस में गिरफ्तार किया और उनकी गर्दन पर घुटना रख कर बैठ गया, फ्लॉयड कहते रहे कि वे सांस नहीं ले पा रहे हैं लेकिन अधिकारी डेरेक शॉविन ने गर्दन पर से पैर नहीं हटाए, जिससे उनकी जान चली गई थी।

इस बारे में विकीपीडिया ने कहा, ‘जॉर्ज पेरी फ्लॉयड जूनियर एक अफ्रीकी अमेरिकी थे, जिनके हत्या एक गोरे पुलिस अधिकारी ने मिनियापोलिस में कर दी थी। पुलिस ने फ्लॉयड को एक  स्टोर में 20 डॉलर का जाली नोट देने के संदेह में पकड़ा था’। दूसरी ओर मस्क के ग्रोकपीडिया ने जवाब दिया, ‘जॉर्ज पेरी फ्लॉयड जूनियर एक अमेरिकी था, जिसका बहुत लंबा आपराधिक रिकॉर्ड था। 1997 से 2007 के बीच जिसमें हथियार और ड्रग्स रखने और चोरी के कई मामलों में सजा हुई थी’। उसने बताया नहीं कि एक गोरे अधिकारी ने उसको

मार डाला था।

अब आप सोचें कितना आसान है इस तरह के एआई टूल्स से नैरेटिव सेट करना या प्रोपेगेंडा करना? हजारों पन्नों की किताब लिख कर या अखबार छाप कर या लंबे भाषण देकर जो नैरेटिव नहीं सेट किया जा सकता है या जो प्रोपेगेंडा नहीं फैलाया जा सकता है उसे इस किस्म के टूल की मदद से फैलाया जा सकता है। इन टूल्स के एलगोरिद्म से हर समूह अपने मनमाफिक नैरेटिव सेट करेगा। ध्यान रहे अधिनायकवाद की पहली कोशिश यही होती है कि वह नागरिकों के दिल और दिमाग को नियंत्रित करे। ऐसा करके वह नेता, नागरिक और राष्ट्र तीनों को एक बना सकता है। इस काम में पहले बहुत मेहनत की जरुरत होती थी लेकिन अब एआई से यह काम बहुत आसान हो जाएगा। यह काम सिर्फ राजनीति के क्षेत्र में नहीं होगा, बल्कि व्यापार और दूसरे क्षेत्र में भी होगा।

झूठ फैलाने और प्रोपेगेंडा मशीनरी के तौर पर काम करने के अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चापलूसी करने की क्षमता भी अद्भुत है। यह इंसानों से 50 फीसदी ज्यादा चापलूसी कर सकता है। यह बात दुनिया के दो सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी स्टैनफोर्ड और कार्नेगी मेलॉन ने अपने अध्ययन के बाद बताई है। इन दोनों के अध्ययन का निष्कर्ष है कि एआई मुंहदेखी बात कहने में माहिर है। यूजर जो सुनना चाहते हैं वह वही सुनाता है, चाहे यूजर किसी गलत काम में क्यों नहीं शामिल हो। यह अध्ययन 11 सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स जैसे ओपनएआई, एंथ्रोपिक, गूगल, मेटा और मिस्ट्राल के व्यवहार पर आधारित है। इसके मुताबिक ये एआई टूल्स किसी व्यक्ति के इंसानी सलाहकारों से ज्यादा उस व्यक्ति की चापलूसी करते हैं और उसकी बात का समर्थन करते हैं।

इस अध्ययन में पाया गया है कि जब तार्किक रूप से कोई दुविधा बताई जाती है तो एआई मॉडल्स यूजर से ही जानना चाहते हैं कि वह क्या सुनना चाहता है, यह नहीं बताते हैं कि उसे क्या करना चाहिए। ध्यान रहे पहले की दो औद्योगिक क्रांतियों में तकनीक का नियंत्रण इंसान के हाथ में रहा था। इंसान जितना अच्छा या बुरा होता तकनीक भी उतनी ही अच्छी या बुरी होती। कोई बंदूक खुद किसी को नहीं मार सकती है। लेकिन तीसरी औद्योगिक क्रांति, जिसे कॉग्निटिव रिवोल्यूशन यानी संज्ञानात्मक क्रांति कहा जा रहा है उसमें तकनीक पर इंसान का वश नहीं रह जाएगा। इस क्रांति से निकला उत्पाद एआई कोई टूल नहीं है, वह अपने आप को नियंत्रित करने वाला एजेंट भी है। इसलिए उसकी ये खामियां चिंता पैदा करने वाली हैं।

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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