बिहार के दरभंगा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मां की गाली दिए जाने की घटना बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गई है। इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने का जितना श्रेय खुद प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी को है उतना ही श्रेय विपक्षी पार्टियों को भी जाता है। कांग्रेस के साथ साथ राजद के नेता अति उत्साह में इसे बड़ा मुद्दा बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं। विपक्ष इस मामले में एक के बाद एक बड़ी गलतियां कर रहा है और भाजपा के बिछाए जाल में उलझता जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी पार्टी और उनके इकोसिस्टम ने इस घटना के हर आयाम को आम आदमी तक पहुंचाने के उपाय कर लिए हैं और उसमें काफी हद तक उनको कामयाबी मिल गई है।
यह बिहार की धरती पर प्रधानमंत्री के अपमान का मुद्दा बन गया है, एक महिला के अपमान का मुद्दा बन गया है और चूंकि गाली देने वाला मुस्लिम है तो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का मुद्दा भी बन गया है। इसका चुनावी लाभ कितना मिलेगा या नतीजों पर इसका क्या असर होगा, यह नहीं कहा जा सकता है लेकिन इस विवाद ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के मुद्दे को हाशिए में पहुंचा दिया है। साथ ही एसआईआर के खिलाफ हुई यात्रा और पटना की सड़कों पर विपक्ष के मार्च से जो मोमेंटम बना था उसको भी रोक दिया है। हो सकता है कि इस विवाद को बढ़ाने का मकसद भी यही हो।
बहरहाल, दरभंगा में 27 अगस्त को महागठबंधन यानी कांग्रेस, राजद, सीपीआई, सीपीएम, सीपीआई माले और वीआईपी के मंच से मोहम्मद रिजवान उर्फ रिजवी ने प्रधानमंत्री को मां की गाली दी। घटना के तुरंत बाद इसका वीडियो वायरल हो गया और तब से यह विवाद चल रहा है। यात्रा का नेतृत्व चूंकि राहुल गांधी और तेजस्वी यादव कर रहे थे इसलिए वे भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के निशाने पर हैं। इन दोनों नेताओं ने घटना पर माफी मांग कर नैतिक साहस दिखाने और मामले को समाप्त करने की बजाय अपनी पार्टी के प्रवक्ताओं और इकोसिस्टम को इसका बचाव करने या दोनों नेताओं को जिम्मेदारी से मुक्त करने के तर्क खोजने के काम में लगा दिया। उस दिन से कांग्रेस और राजद के जेएनयू ब्रांड नेता और प्रवक्ता एक से एक बेहूदा तर्क खोज कर गालीबाज का बचाव करने, राहुल व तेजस्वी को जिम्मेदारी से मुक्त करने और मोदी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। ये नेता जितना बचाव कर रहे हैं, उतना ही उलझते जा रहे हैं।
कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी क्यों माफी मांगें, जबकि वे घटना के समय मंच पर नहीं थे, गाली देने वाला कांग्रेस या राजद का कार्यकर्ता नहीं है और वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है, जिसे बकरी से दुष्कर्म के केस में जेल हुई थी। यह सही है कि राहुल गांधी मंच पर नहीं थे। लेकिन मंच तो कांग्रेस और राजद का था। चारों तरफ उनके झंडे लगे थे और चंद मिनट पहले ही उस मंच से राहुल गांधी व तेजस्वी यादव उतरे थे। उनके जिले के नेता और पदाधिकारी मंच पर थे। उनके सामने प्रधानमंत्री को मां की गाली दी गई।
फिर कांग्रेस और राजद इस जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं? वह उनका कार्यकर्ता नहीं है लेकिन उनके मंच से उसने गाली दी तो इसके लिए माफी मांग लेने से राहुल छोटे नहीं हो जाते। कांग्रेस के नेता सोच रहे हैं कि अगर माफी मांगी तो इसका मतलब यह स्वीकार करना होगा कि कांग्रेस ने प्रधानमंत्री को गाली दी। लेकिन अगर माफी नहीं मांगते हैं तब भी कहां इस आरोप से पीछा छूट रहा है! उनको याद करना चाहिए कि कैसे देश के किसी भी हिस्से में कांग्रेस के आंदोलन में किसी किस्म की हिंसा होती थी या कोई भी गलती होती तो महात्मा गांधी उसका प्रायश्चित करते थे। घटना कहीं की भी हो और महात्मा गांधी कहीं भी रहे हों लेकिन वे शुद्धि के लिए उपवास करते थे, प्रायश्चित करते थे। अगर राहुल तर्क, कुतर्क करने की बजाय गांधी मार्ग पर चलते और माफी मांग लेते, प्रायश्चित करते तो मामला भी खत्म होता और उनका कद भी बड़ा हो जाता। चुनाव से ठीक पहले जो नुकसान होता दिख रहा है वह भी नहीं होता क्योंकि भाजपा को ऐसे आंदोलन करने का मौका ही नहीं मिलता।
दूसरा सवाल यह है कि मानसिक रूप से विक्षिप्त और बकरी से दुष्कर्म में जेल काट चुका व्यक्ति कांग्रेस और राजद के इतने बड़े कार्यक्रम के मंच पर कैसे पहुंचा? तीसरा सवाल है कि विक्षिप्त व्यक्ति ने मंच से राहुल गांधी या तेजस्वी को गाली क्यों नहीं दी? जाहिर उसकी गाली मोदी के प्रति उसकी नफरत को दिखाती है, जिसे भाजपा पूरे समुदाय के मन में मोदी के प्रति नफरत के रूप में पेश कर रही है। चौथा सवाल है कि उसने गाली दी तो उस समय मंच पर मौजूद दिख रहे कांग्रेस के नेताओं ने क्या किया? अगर उस व्यक्ति ने राहुल या तेजस्वी को वही गाली दी होती, जो उसने मोदी को दी तो मंच पर मौजूद कांग्रेस व राजद के नेताओं ने उसे मारपीट कर अधमरा कर दिया होता और उसी समय पुलिस के हवाले किया होता। लेकिन उसने प्रधानमंत्री को गाली दी तो मंच पर मौजूद किसी व्यक्ति ने उसे कुछ नहीं कहा और न पुलिस में शिकायत की। बाद में जब मीडिया में यह मुद्दा बना तब उस व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई हुई और कांग्रेस, राजद ने तर्क गढ़ने शुरू किए।
कांग्रेस के जेएनयू से निकले एक युवा नेता से जहां भी इस पर सवाल पूछा जा रहा है तो वे मीडिया के लोगों से पलट कर पूछते हैं कि, ‘क्या गाली दी गई’। क्या यह कोई समझदारी की बात है? क्या वे चाहते हैं कि उनके सामने गाली दोहराई जाए और अगर कोई गाली दोहराता नहीं है तो इसका मतलब है कि उस गाली का अस्तित्व नहीं है? इसी तरह कांग्रेस और राजद की ओर से कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने भी महिलाओं के प्रति अपशब्द कहे हैं। तो क्या इस आधार पर उनकी मां को गाली दी जा सकती है या गाली देने वाले का बचाव किया जा सकता है? उन्होंने अपशब्द कहे तो आज तक विपक्ष को इसे मुद्दा बनाने का मौका मिल रहा है। आज तक विपक्ष उनको महिला विरोधी ठहरा रहा है। लेकिन उनको महिला विरोधी ठहराने के लिए विपक्ष का अपना आचरण तो उससे अलग होना चाहिए!
सबसे हैरानी की बात यह है कि राजद के कथित पढ़े लिखे प्रवक्ता जो एब्सर्ड तर्क खोज कर ला रहे हैं उनको पार्टी के सुप्रीम नेता तेजस्वी यादव खुद सोशल मीडिया पोस्ट में लिख रहे हैं। तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, ‘प्रधानमंत्री मोदी जी महिलाओं और लड़कियों से बलात्कार करने वाले प्रज्वल रेवन्ना का प्रचार कर उसे जिताने की अपील करें तो वह मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक’! इसके आगे वे क्या कहना चाह रहे हैं वह समझ में आ रहा है। लेकिन सोचें, यह कैसा तर्क है। क्या इस तर्क से मोदी को मां की गाली देने को जस्टिफाई किया जाएगा?
प्रज्वल पर आरोप है कि उसने कई बरसों तक सैकड़ों महिलाओं का यौन शोषण किया। तो क्या उन बरसों में जितने लोग जेडीएस के साथ रहे सब आरोपी या चरित्रहीन माने जाएंगे? जब प्रज्वल की पार्टी मोदी की सहयोगी बनी उससे पहले कांग्रेस की सहयोगी थी। कांग्रेस ने प्रज्वल के चाचा एचडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री और प्रज्वल के पिता एचडी रेवन्ना को मंत्री बनाया था और वह भी तब जब 224 के सदन में उनके पास सिर्फ 30 विधायक थे। प्रज्वल के दादा को तो प्रधानमंत्री बनाने का श्रेय लालू प्रसाद लेते हैं। इन तर्कों का मकसद प्रज्वल का या मोदी का बचाव करना नहीं है, बल्कि यह है कि ऐसे तर्कों से मोहम्मद रिजवान उर्फ रिजवी की गाली का बचाव नहीं हो सकता है।
तेजस्वी यादव ने यह भी लिखा कि प्रधानमंत्री ने किसी की मां को 50 करोड़ की गर्लफ्रेंड कहा। मोदी ने यह बात सुनंदा पुष्कर के लिए कही थी, जिनको फरवरी 2010 में आईपीएल की कोच्चि टीम में 50 करोड़ की हिस्सेदारी मिली थी। उस समय वे शशि थरूर की दोस्त थीं और जिस कंपनी में 18 दिन पहले निदेशक बनी थीं उस कंपनी को आईपीएल की कोच्चि की टीम मिल गई थी और सुनंदा को 50 करोड़ की हिस्सेदारी मिल गई थी। यह विशुद्ध रूप से भ्रष्टाचार और मिलीभगत का मामला था। हालांकि मोदी ने तत्कालीन यूपीए सरकार और उसके केंद्रीय मंत्री शशि थरूर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए जो शब्द चुने उनको सही नहीं ठहराया जा सकता है लेकिन क्या उस आधार पर उनको दी गई गाली को सही ठहराया जाएगा? अब भी समय है कि विपक्ष इस मामले को खत्म करने का प्रयास करे क्योंकि यह मामला जितना बढ़ेगा उतना नुकसान करेगा।