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गुरुग्राम और विकास की सच्चाई का नाम जलभराव

गुरुग्राम को ‘मिलेनियम सिटी’ का दर्जा बनाए रखने के लिए केवल आलीशान इमारतें और कॉरपोरेट कार्यालय पर्याप्त नहीं हैं, इसे एक ऐसा शहर बनाना होगा जो अपनी जनता को बुनियादी सुविधाएं और सम्मानजनक जीवन प्रदान कर सके। जब तक ये कदम नहीं उठाए जाते, तब तक गुरुग्राम हर मानसून में डूबता रहेगा और निवासियों की निराशा बढ़ती रहेगी। 

गुरुग्राम, जिसे ‘मिलेनियम सिटी’ और ‘साइबर सिटी’ जैसे नामों से नवाज़ा जाता है, हर साल मानसून के समय में एक जलमग्न नरक में तब्दील हो जाता है। महज दो घंटे की बारिश इस शहर को घुटनों तक पानी में डुबो देती है। सड़कों पर घंटों लंबा ट्रैफिक जाम लग जाता है। करोड़ों रुपये की कीमत वाले आलीशान घरों में रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव में त्रस्त हो उठते हैं। यह विडंबना है कि एक ओर गुरुग्राम भारत के सबसे महंगे रियल एस्टेट बाजारों में से एक है, जहां लोग भारी-भरकम टैक्स और किराए चुकाते हैं, वहीं दूसरी ओर सरकारी विभागों की लापरवाही और गैर-जिम्मेदारी के कारण यह शहर हर बारिश में डूब जाता है। इस संकट ने न केवल शहर की छवि को धूमिल किया है, बल्कि निवासियों के बीच गुस्सा और निराशा को भी बढ़ावा दिया है।

हाल ही में, लेखक और उद्यमी सुहेल सेठ ने एक सार्वजनिक मंच पर हरियाणा सरकार और स्थानीय प्रशासन की कड़ी आलोचना की। उन्होंने गुरुग्राम की स्थिति को ‘शर्मनाक’ करार देते हुए कहा, “गुरुग्राम खत्म हो चुका है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते। इसकी शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने की और वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी इस स्थिति को संभाल नहीं पा रहे। बीजेपी को गंभीर आत्ममंथन की जरूरत है। वे 11 साल से इस राज्य को चला रहे हैं, अब नेहरू को दोष नहीं दे सकते।” सेठ की यह टिप्पणी न केवल गुरुग्राम की बदहाल स्थिति को उजागर करती है, बल्कि सरकारी एजेंसियों की जवाबदेही की कमी को भी रेखांकित करती है।

सुहेल सेठ ने अपनी एक अन्य टिप्पणी में कहा, “क्या नालों की सफाई के लिए रॉकेट साइंस चाहिए? नहीं, बिल्कुल नहीं।” उनकी यह बात सटीक है। गुरुग्राम जैसे शहर, जो गूगल, मेटा और सैमसंग जैसे बड़े कॉरपोरेट्स का घर है, को बुनियादी ढांचे के मामले में इतना पिछड़ा होना न केवल शर्मनाक है, बल्कि यह एक गंभीर प्रशासनिक विफलता को भी दर्शाता है। निवासियों का गुस्सा जायज है, क्योंकि वे अपनी मेहनत की कमाई से भारी टैक्स और किराए चुकाते हैं, लेकिन बदले में उन्हें बारिश में डूबता शहर और घंटों का ट्रैफिक जाम मिलता है।

गुरुग्राम में जलभराव की समस्या कोई नई बात नहीं है। हर साल मानसून के दौरान शहर की सड़कें नदियों में बदल जाती हैं, और प्रमुख मार्ग जैसे गोल्फ कोर्स रोड, सोहना रोड, और दिल्ली-जयपुर हाईवे पर घंटों तक ट्रैफिक रेंगता रहता है। 1 सितंबर 2025 को, महज चार घंटे की बारिश में 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा दर्ज की गई, जिसने शहर को पूरी तरह ठप कर दिया। नेशनल हाईवे-48 पर 7 किलोमीटर लंबा जाम लग गया। लोग घंटों तक सड़कों पर फंसे रहे। सोशल मीडिया पर निवासियों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए तस्वीरें और वीडियो साझा किए, जिसमें गोल्फ कोर्स रोड जैसे पॉश इलाकों में गहरे पानी में डूबी गाड़ियां और फंसे हुए लोग दिखाई दिए।

गुरुग्राम में जन्में और वहीं पर बसे एक सफल उद्यमी और समाज सेवी शरद गोयल ने हाल ही में एक चैनल में दिए इंटरव्यू में कहा कि, “इस संकट का मूल कारण है शहर की अनियोजित शहरीकरण और सरकारी विभागों का आपसी तालमेल का अभाव। आज गुरुग्राम अनियंत्रित निर्माण और बुनियादी ढांचे की कमी का शिकार है। गुरुग्राम की पुरानी भौगोलिक संरचना में कई प्राकृतिक जलाशय और नाले थे, जो बारिश के पानी को संचित करते थे। लेकिन तेजी से हुए निर्माण ने इन जल निकायों को नष्ट कर दिया।” वे आगे कहते हैं कि “जनता बारिश और जल भरवा से त्रस्त होती है लेकिन जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि कभी भी ऐसे मौकों पर सड़क पर दिखाई नहीं देते।

नेताओं को छोड़िये निगम के अधिकारी भी ईद  का चाँद बने हुए हैं जो केवल अनियमितताओं के चलते ही हरकत में आते हैं। अपने ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैये के लिए कभी भी जनता के बीच नहीं दिखाई देते। सरकारी विभागों के बीच जवाबदेही का अभाव इस समस्या को और गंभीर बनाता है। म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ गुरुग्राम (एमसीजी), हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (हुडा) और गुरुग्राम मेट्रोपॉलिटन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएमडीए) जैसे विभिन्न निकाय एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालते हैं, लेकिन कोई भी पूर्ण रूप से समस्या का समाधान नहीं करता। गुरुग्राम हो या देश अन्य कोई शहर, सभी को इंदौर से सबक लेना चाहिए जहाँ के अधिकारी और जनता सभी अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूर्णतः निभाते हैं और सुखी रहते हैं।”

समाधान के लिए दीर्घकालिक और टिकाऊ शहरी नियोजन की जरूरत है। प्राकृतिक जल निकायों को पुनर्जनन, आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम का निर्माण, रेन वाटर हार्वेस्टिंग के कुओं का निर्माण और अवैध निर्माण पर सख्त कार्रवाई जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही, सरकारी विभागों के बीच बेहतर तालमेल और जवाबदेही सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है। हर वो अधिकारी जो गुरुग्राम जैसे क्षेत्र में तैनाती पाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाता है वो यहाँ आते ही काम करने से क्यों बचता है? यदि किसी भी अधिकारी पर काम न करने पर तबादले की तलवार लटका दी जाए या कुछ आलसी अधिकारियों का तबादला कर दिया जाए तो इससे बाक़ी अधिकारियों के बीच एक सही संदेश जाएगा।

गुरुग्राम को ‘मिलेनियम सिटी’ का दर्जा बनाए रखने के लिए केवल आलीशान इमारतें और कॉरपोरेट कार्यालय पर्याप्त नहीं हैं, इसे एक ऐसा शहर बनाना होगा जो अपनी जनता को बुनियादी सुविधाएं और सम्मानजनक जीवन प्रदान कर सके। जब तक ये कदम नहीं उठाए जाते, तब तक गुरुग्राम हर मानसून में डूबता रहेगा और निवासियों की निराशा बढ़ती रहेगी।

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By रजनीश कपूर

दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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