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राहुल गांधी अपना काम कर रहे हैं

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के असली सर्वोच्च नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी क्या कुछ ऐसा कर रहे हैं, जो उनको नहीं करना चाहिए? यह बड़ा सवाल है क्योंकि वे जो कुछ भी करते हैं उस पर सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से सवाल उठाया जाता है और सोशल मीडिया में सक्रिय भाजपा के इकोसिस्टम व कथित पत्रकारों की ओर से भी सवाल उठाया जाता है। वे युवाओं की बात करते हैं तो कहा जाता है कि युवाओं को उकसा रहे हैं। वे लद्दाख के आंदोलन का समर्थन करते हैं तो कहा जाता है कि देश तोड़ने वालों के साथ हैं। विदेश में जाकर भाषण देते हैं और मौजूदा सरकार की कमियां गिनाते हैं तो उन पर विदेश में जाकर देश विरोधी काम करने का आरोप लगाया जाता है। वे ‘वोट चोरी’ के आरोप लगाते हैं और मतदाता सूची में गड़बड़ी का मुद्दा उठाते हैं तो कहा जाता है कि वे संस्थाओं को कमजोर करने का काम कर रहे हैं। वे क्रोनी कैपिटलिज्म का मुद्दा उठाते हैं तो कहा जाता है कि वे देश में आर्थिक तरक्की नहीं चाहते हैं और देश को पिछड़ा बनाए रखना चाहते हैं इसलिए उद्योगपतियों पर सवाल उठा रहे हैं। आदि, आदि।

वास्तविकता यह है कि इनमें से कोई भी काम ऐसा नहीं है, जो मुख्य विपक्षी पार्टी का नेता होने और लोकसभा में नेता विपक्ष होने के नाते उनको नहीं करना चाहिए। वे वही काम कर रहे हैं, जो करने की जिम्मेदारी उनको देश के नागरिकों ने दी है। ध्यान रहे देश के मतदाता सिर्फ सरकार नहीं चुनते हैं, बल्कि विपक्ष भी चुनते हैं। उन्होंने 2014 और 2019 में कमजोर विपक्ष चुना और मजबूत सरकार चुनी। लेकिन 2024 में कमजोर सरकार और मजबूत विपक्ष चुना। देश के सौ करोड़ मतदाताओं के जनादेश से ही नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तो राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बने हैं। जैसे प्रधानमंत्री जनता की ओर से दी गई जिम्मेदारी निभा रहे हैं वैसे ही राहुल गांधी भी मतदाताओं द्वारा की गई जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

हां, यह जरूर है कि वे इस जिम्मेदारी को और बेहतर ढंग से निभा सकते थे। उनके पास अब 21 साल का राजनीतिक और विधायी कामकाज का अनुभव है। इसमें से 10 साल उनकी पार्टी सरकार में रही तो निश्चित रूप से सरकार के कामकाज भी उनकी भूमिका रही। सो, वे सरकारी कामकाज के तौर तरीकों से परिचित हैं तो 11 साल की विपक्ष की राजनीति करके वे विपक्ष की भूमिका से भी बखूबी परिचित हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को एक मजबूत विपक्ष के तौर पर काम करते देखा है। उन्हें यह जरूर सोचना चाहिए कि क्या वे उस तरह से विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, जैसे भाजपा ने 2004 से 2014 के बीच निभाई थी? विपक्ष की भूमिका से आशय संसद के अंदर के कामकाज से नहीं है। वहां तो कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां भी वैसे ही संसद स्थगित कर रही हैं, हंगामे और नारेबाजी कर रही हैं, जैसे भाजपा करती थी। लेकिन संसद के बाहर और मीडिया स्पेस में जिस तरह से भाजपा ने काम किया वह विपक्ष की टेक्स्टबुक भूमिका थी। कांग्रेस के सरकार में होने के बावजूद भाजपा ने कानून व्यवस्था से लेकर भ्रष्टाचार और महंगाई तक अपना नैरेटिव बनाया और कांग्रेस सारे समय उसका जवाब देती रही।

इसके उलट आज जब राहुल गांधी और कांग्रेस विपक्ष में हैं तब भी भाजपा और सरकार ही नैरेटिव बना रहे हैं और कांग्रेस उनका जवाब दे रही है। यानी विपक्ष में होकर भी कांग्रेस रिसीविंग मोड में है। यह भाजपा के नैरेटिव की ताकत है, उसकी होशियारी, अति सक्रियता और संसाधनों की बहुतायत है या कांग्रेस की कमजोरी है यह अलग बहस का विषय है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले 11 साल में एकाध मौकों को छोड़ दें तो कांग्रेस कभी भी सरकार को घेरने, उसे बैकफुट पर लाने और उसको जवाबदेह बनाने वाले नैरेटिव के सेंटर में नहीं रही। ज्यादातर मौकों पर अराजनीतिक समूहों ने सरकार को जवाबदेह बनाया। कांग्रेस को इस पर विचार करने की जरुरत है कि आखिर वह क्यों बहुत प्रभावी विपक्ष की भूमिका नहीं निभा पा रही है। उसे इस पर भी सोचना चाहिए कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैसे लगातार एंटी इन्कम्बैंसी को कम करने या बढ़ने नहीं देने के लिए काम कर रहे हैं।

बहरहाल, विषयांतर हो रहा है लेकिन मूल बात यह है कि राहुल गांधी वही काम कर रहे हैं, जो देश के नेता प्रतिपक्ष के नाते उनको करना चाहिए। राहुल गांधी अगर चुनाव आयोग पर सवाल उठा रहे हैं और उसकी निष्ठा संदिग्ध बता रहे हैं तो वे ऐसा करने वाले पहले नेता प्रतिपक्ष नहीं हैं। जब भाजपा विपक्ष में थी तो उसके नेता भी चुनाव आयोग पर, चुनाव प्रक्रिया पर और ईवीएम पर सवाल उठाते रहे हैं। लालकृष्ण आडवाणी ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे और उनके करीबी जीवीएल नरसिंहराव ने इस पर किताब लिखी थी। बाद में जीवीएल को राज्यसभा भेजा गया था। उससे भी बहुत पहले जब बैलेट से चुनाव होता था आडवाणी और दूसरे विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया था इंदिरा गांधी ने बैलेट पर ठप्पा लगाने वाली स्याही रूस से मंगाई है, जो मिट जाती है। सो, आज राहुल गांधी कह रहे हैं कि चुनाव आयोग मतदाता सूची में और मतदान प्रक्रिया में गड़बड़ कर रहा है तो यह विपक्ष के नेता का स्वाभाविक आरोप है।

ऐसे ही राहुल गांधी जब ‘जेन जी’ यानी 13 साल से लेकर 28 साल तक के युवाओं की बात करते हैं और कहते हैं कि उनको ‘वोट चोरी’ की असलियत का यकीन हो गया तो वे बरदाश्त नहीं करेंगे। इस पर भाजपा कह रही है कि राहुल गांधी युवाओं को नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसी तख्तापलट के लिए उकसा रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि पहले विपक्षी नेताओं ने इस तरह की बात नहीं की है या तख्तापलट की अपील नहीं की है। तमाम समाजवादी नेता आज भी राममनोहर लोहिया की इस बात को दोहराते हैं कि, ‘जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करतीं’। यहां तो लोहिया साफ साफ लोगों को बगावत के लिए उकसाते दिख रहे हैं लेकिन उनके इस बयान को स्वाभाविक लोकतांत्रिक भावना के तौर पर देखा गया। ऐसे ही जयप्रकाश नारायण ने जब सेना और पुलिस से अपील की थी कि वे सरकार के साथ असहयोग करें तो तब की कांग्रेस सरकार ने यही कहा था कि वे सेना और पुलिस को बगावत के लिए उकसा रहे हैं। लेकिन तब से लेकर आज तक यही माना जाता है कि जेपी लोकतंत्र की रक्षा कर रहे थे। सो, अगर डॉक्टर लोहिया और जेपी गलत नहीं थे तो राहुल कैसे गलत हैं?

जहां तक विदेश जाकर सरकार के खिलाफ बोलने का सवाल है तो इसका भी लंबा इतिहास रहा है। खुद प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने विदेशी धरती पर जाकर अपने से पहले वाली सरकारों के कामकाज की खूब आलोचना की। एक बार तो वे भवावेश में यहां तक कह गए थे कि 2014 से पहले लोगों को शर्म आती थी कि कहां से भारत में पैदा हो गए। यह बात मोदी ने विदेश में ही कही थी। उससे बहुत पहले जब संविधान के प्रावधानों का इस्तेमाल करके इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी तब सुब्रह्मण्यम स्वामी भी विदेश जाकर भारत सरकार के खिलाफ समर्थन जुटा रहे थे तो जेल में बंद जॉर्ज फर्नांडीज की पत्नी लैला कबीर भी विदेश जाकर उनकी रिहाई का आंदोलन चला रही थीं। सो, विदेश जाकर अपने देश की सरकार के कामकाज की आलोचना करना देश का अपमान नहीं होता है।

अब रही बात जन आंदोलनों का समर्थन करने की तो यह सबसे हैरान करने वाली बात है कि आंदोलनों से बनी और दशकों तक लगातार विपक्ष में रह कर आंदोलन खड़ा करने वाली भारतीय जनसंघ और भाजपा के नेता कैसे आंदोलन के समर्थन को देश विरोध बता सकते हैं? राहुल ने किसान आंदोलन का समर्थन किया या सीएए के खिलाफ हुए आंदोलन का समर्थन किया या लद्दाख के आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। ये सभी लोकतांत्रिक आंदोलन थे, जो इस देश के नागरिकों ने अपने अधिकार के लिए चलाए थे।

यह सरकार का जिम्मा होता है कि वह आंदोलन करने वालों से बात करे, उनकी मांगें सुने और उसका समाधान करे। विपक्ष तो ऐसे आंदोलन का समर्थन करेगा ही। अफसोस की बात है कि खुद कांग्रेस और राहुल गांधी कोई आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रहे हैं। विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने और उससे पहले भारतीय जनसंघ ने अनेक आंदोलन खड़े किए। जेपी का आंदोलन भी उनमें से एक था। याद करें आजादी के बाद इस देश में कितने आंदोलन हुए। भाषा के आंदोलन, मंदिर का आंदोलन, सत्ता बदलने का आंदोलन, नए राज्यों का आंदोलन, क्या उस समय की सरकारों ने इन आंदोलनों में शामिल नेताओं व नागरिकों को देशद्रोही माना!

By अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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