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27-05-2025 Vol 19

भारत-पाक का अतीत ही वर्तमान और भविष्य है

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बार बार यह बात कही जाती है कि अतीत को भूल कर आगे की ओर देखना चाहिए। वर्तमान और भविष्य की चिंता करनी चाहिए। लेकिन अगर अतीत ही वर्तमान और भविष्य हो तो क्या किया जा सकता है? यह सवाल भारत और पाकिस्तान के संबंधों में बहुत प्रासंगिक है। क्योंकि भारत और पाकिस्तान का जो अतीत रहा है वही वर्तमान और भविष्य है। पाकिस्तान अपने निर्माण के समय से भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष या परोक्ष युद्ध लड़ता रहा है। आजादी के तुरंत बाद 1947-48 में, फिर 1965 में, फिर 1971 में, 1999 में और अब 2025 में। अगर 1947 अतीत है तो 2025 वर्तमान है।

सोचें, अतीत और वर्तमान में क्या बदल गया? तब भी पाकिस्तान ने कबायलियों की मदद से भारत की जमीन हड़पने की कोशिश की, भारत के निर्दोष नागरिकों की हत्या की और आज भी आतंकवादियों के जरिए वह यही काम कर रहा है। इसलिए पाकिस्तान के संदर्भ में दुनिया के देशों को चुनिंदा बातें याद रखने या भूल जाने यानी सेलेक्टिव एमनेशिया की जो सुविधा उपलब्ध है वह भारत को नहीं हासिल है। भारत पाकिस्तान के साथ अपने अतीत को भूल कर आगे नहीं बढ़ सकता है क्योंकि उसका अतीत ही वर्तमान है और भविष्य भी।

अमेरिका को या वहां के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को यह सुविधा है कि वे अमेरिकी इतिहास में हुए सबसे भयावह आतंकवादी हमले में पाकिस्तान की भूमिका को भूल जाएं। वे अपनी सुविधा से इसे भूल भी गए हैं। सोचें, उस हमले में करीब तीन हजार लोगों की मौत हुई थी। अमेरिका ने उसका बदला लेने के लिए भयानक लड़ाई छेड़ी और ऐलान किया कि जो इस लड़ाई में उसके साथ नहीं हैं वब आतंकवादियों के साथ है।

उसने अफगानिस्तान को तहस नहस कर दिया। कोई 10 साल के अथक अभियान के बाद उसने ओसामा बिन लादेन को खोज निकाला और उसको मार डाला। ओसामा बिन लादेन अमेरिका को पाकिस्तान के रावलपिंडी में सेना मुख्यालय से थोड़ी दूर पर एक अति सुरक्षित रियाइश में मिला था।

भारत-पाकिस्तान: अतीत और भविष्य

सारी दुनिया ने देखा कि इतिहास का सबसे भयावह आतंकवादी हमले की साजिश रचने वाले ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान ने शरण और सुरक्षा दी थी। हो सकता है कि अमेरिका को लग रहा हो कि उसका निजी बदला पूरा हो गया और दक्षिण एशिया की भू राजनीतिक स्थितियों में उसे पाकिस्तान की जरुरत है। यह भी हो सकता है कि राष्ट्रपति ट्रंप के निजी हित पाकिस्तान से जुड़े हैं और इसलिए वे अपनी सुविधा के हिसाब से अतीत को भूल रहे हों। लेकिन भारत को यह सुविधा नहीं है। वह अगर अतीत को भूलना भी चाहे तो वह संभव नहीं है। पाकिस्तान भी उसे भूलने नहीं देगा।

इसलिए दुनिया के देशों के दौरे पर गए भारत के प्रतिनिधिमंडल को यह बात पूरी दुनिया को गंभीरता से बताने और याद दिलाने की जरुरत है कि पाकिस्तान क्या है और क्यों वह सिर्फ भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए खतरा है। साथ ही यह भी याद दिलाने की जरुरत है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में कोई आतंकवादी वारदात होती है तो उसके तार पाकिस्तान से जुड़ते हैं। यह भी याद दिलाने की जरुरत है कि अमेरिका और अमेरिका न्यूयॉर्क में स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से जितने भी डेजिगनेटेड आतंकवादी हैं उनमें से ज्यादातर का ठिकाना पाकिस्तान है।

करोड़ों के इनामी आतंकवादियों को पाकिस्तान ने प्रश्रय दिया है। वे आतंकवाद की पाठशाला चलाते हैं। नौजवानों में जिहादी मानसिकता पनपाते हैं और फिर प्रशिक्षण देकर वारदातों को अंजाम देने के लिए दुनिया भर में निर्यात करते हैं। पाकिस्तान जिहादी मानसिकता और आतंकवाद का सबसे बड़ा निर्यातक है। यह बताने के बाद यह समझाना होगा कि एकमात्र भारत है, जिसके साथ अगर दुनिया खड़ी हो तो वह पाकिस्तान की जिहादी फैक्टरी और आतंकवाद का निर्यात बंद कर सकता है।

लेकिन ऐसा लग रहा है कि आतंकवाद पर विश्व बिरादरी की चिंता सिर्फ ऊपरी और दिखावे वाली है। उनकी प्रतिक्रिया तात्कालिकता में है या कूटनीतिक व वित्तीय स्थितियों से निर्देशित होने वाली है। वे इसके खिलाफ बिना शर्त युद्ध छेड़ने को तैयार नहीं दिखते हैं। दूसरी ओर भारत को अपने भोलेपन में ऐसा लग रहा है कि चूंकि दुनिया के देश आतंकवाद को लेकर बड़ी बड़ी बातें करते हैं और इसे खत्म करने के संकल्प लेते हैं इसलिए वे भारत का साथ देंगे। ऐसा नहीं है।

जब डोनाल्ड ट्रंप बदल गए, जिन्होंने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान और कई इस्लामिक देशों की नकेल कसने की पहल की थी तो कोई भी देश या कोई भी नेता अपने स्वार्थ में बदल सकता है। भारत को इस दुखद और कठोर सचाई को स्वीकार करना होगा। कूटनीति और सामरिक नीति भोलेपन से नहीं चलाई जा सकती है।

सोचें, भारत ने कैसे आतंकवाद और पाकिस्तान के प्रति ट्रंप के बदलते नजरिए को नहीं समझा? ट्रंप इस साल जनवरी में राष्ट्रपति बने और उन्होंने फरवरी में पाकिस्तान को मिलने वाली विदेशी मदद पर रोक लगा दी लेकिन बेहद रहस्यमय तरीके से उसे करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रुपए की सुरक्षा मदद की अनुमति दे दी। इसी तरह मार्च में पाकिस्तान ने आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के कमांडर मोहम्मद शरीफुल्ला को गिरफ्तार कराने में अमेरिका की मदद की। इस शरीफुल्ला की वजह से अफगानिस्तान में 13 अमेरिकी फौजियों की जान गई थी।

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राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के साझा सत्र को संबोधित करते हुए इसके लिए पाकिस्तान की तारीफ की और उसे धन्यवाद कहा। इसके बाद अप्रैल में ट्रंप के परिवार से जुड़ी क्रिप्टोकरंसी की एक कंपनी के साथ पाकिस्तान ने करार किया। इस करार में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख दोनों शामिल हुए। ध्यान रहे इसमें सिर्फ ट्रंप के परिवार और उनके करीबियों की कंपनी को फायदा नहीं हो रहा है, बल्कि पाकिस्तान को भी बड़ी कमाई हो रही है क्योंकि क्रिप्टोकरंसी पर ट्रंप के बदले रुख से इसका बाजार तेजी से बढ़ रहा है और इसका भाव भी बढ़ रहा है।

यह भी अनायास नहीं है कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप वही बात कर रहे हैं, जो पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर कर रहे हैं। मुनीर ने सीमा विवाद से ज्यादा इस बात पर जोर दिया है कि हिंदू और मुस्लिम दो अलग राष्ट्र हैं, जिनकी संस्कृति, जिनका खानपान, पहनावा, सोचने का तरीका और महत्वाकांक्षा सब अलग हैं और इसलिए दोनों साथ नहीं रह सकते। यही बात ट्रंप ने कही है।

उन्होंने कहा है कि भारत और पाकिस्तान एक हजार, डेढ़ हजार साल से लड़ रहे हैं। सोचें, हजार साल पहले तो भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा का कोई विवाद नहीं था फिर ट्रंप किस विवाद की बात कर रहे हैं? जाहिर है वे हिंदू और मुस्लिम यानी धर्म और नस्ल के विवाद की बात कर रहे हैं। फिर भारत के लिए मुनीर और ट्रंप में क्या फर्क है?

अगर यह सचाई है कि भारत और पाकिस्तान को धर्म के आधार पर लड़ना है और सीमा का  विवाद अंततः धर्म, संस्कृति, पहचान या नस्ल का विवाद है तो फिर इसकी लड़ाई तो भारत को खुद ही लड़नी होगी। अमेरिका और ट्रंप का रुख स्पष्ट है। चीन के बारे में कहने की जरुरत नहीं है।

उसने पाकिस्तान को सदाबहार दोस्त बताया है और उसके साथ लगातार संधियां कर रहा है। वह पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा का संकल्प ले चुका है और सबको पता है कि रूस वही करेगा, जो चीन कहेगा या करेगा। सोचें, जब दुनिया की तीन महाशक्तियां किसी न किसी रूप में पाकिस्तान को बचाएंगी, उसके साथ खड़ी होंगी तो भारत के लिए उससे लड़ना कितना मुश्किल होता जाएगा! इसलिए भारत दुनिया के देशों को समझा रहा है वह अच्छी बात है। लेकिन उससे ज्यादा जरूरी यह है कि वह अपने को मजबूत करे। अपनी तैयारी करे। अपनी शर्तों पर संघर्ष का ऐलान करे और अपनी ही शर्तों पर संघर्षविराम भी करे।

यह मान ले कि दुनिया सिर्फ नसीहत देने आएगी। कोई साथ में लड़ने नहीं आ रहा है। क्योंकि पाकिस्तान के साथ उनका अतीत वैसा नहीं है, जैसा भारत का है और न उनका वर्तमान व भविष्य उस तरह से पाकिस्तान से जुड़ा है, जैसा भारत का जुड़ा है।

Pic Credit: ANI

अजीत द्विवेदी

संवाददाता/स्तंभकार/ वरिष्ठ संपादक जनसत्ता’ में प्रशिक्षु पत्रकार से पत्रकारिता शुरू करके अजीत द्विवेदी भास्कर, हिंदी चैनल ‘इंडिया न्यूज’ में सहायक संपादक और टीवी चैनल को लॉंच करने वाली टीम में अंहम दायित्व संभाले। संपादक हरिशंकर व्यास के संसर्ग में पत्रकारिता में उनके हर प्रयोग में शामिल और साक्षी। हिंदी की पहली कंप्यूटर पत्रिका ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, टीवी के पहले आर्थिक कार्यक्रम ‘कारोबारनामा’, हिंदी के बहुभाषी पोर्टल ‘नेटजाल डॉटकॉम’, ईटीवी के ‘सेंट्रल हॉल’ और फिर लगातार ‘नया इंडिया’ नियमित राजनैतिक कॉलम और रिपोर्टिंग-लेखन व संपादन की बहुआयामी भूमिका।

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