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27-05-2025 Vol 19

सवाल तो वही हैं

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जातीय जनगणना के आंकड़े जब आ जाएंगे, तब पिछड़ापन दूर करने की क्या योजना एनडीए के पास है? इस सवाल का जवाब विपक्ष ने भी नहीं दिया। दोनों पक्षों ने जातीय जनगणना को ही समाधान बताने की कोशिश की है।

सत्ताधारी नेशनल डेमोक्रेटिक एलांयस (एनडीए) के मुख्यमंत्रियों और उप-मुख्यमंत्रियों की बैठक में केंद्र के जातीय जनगणना कराने के निर्णय की प्रशंसा की गई। बैठक के बाद में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि यह “जाति राजनीति” नहीं है। नड्डा ने कहा- ‘हमने ये साफ कर दिया है कि हम जाति की राजनीति नहीं करते, बल्कि हम वंचित, दमित और शोषित तबकों को, जो पीछे छूट गए हैं, उन्हें मुख्यधारा में लाना चाहते हैं।

यह समाज की जरूरत है।’ संदेश यह है कि जातीय जनगणना की मांग करने वाली विपक्षी पार्टियां ऐसा अपनी “जाति राजनीति” के तहत कर रही थीं, मगर उसी काम को एनडीए ऊंचे सामाजिक उद्देश्य से पूरा करने जा रहा है!

एनडीए की जातीय जनगणना योजना

एनडीए के नेता ऐसे भ्रम में सिर्फ अपने कट्टर समर्थकों को रख सकते हैं। बाकी जन समूह तो जातीय गोलबंदी करके भाजपा की हिंदुत्व राजनीति का काट ढूंढ रहे विपक्षी दलों से जो सवाल पूछ रहे थे, वो एनडीए से भी लगातार लगातार पूछते रहेंगे। इस तथ्य की ओर पहले भी ध्यान दिलाया गया है कि जातीय गणना मुख्य रूप से ओबीसी समुदायों से संबंधित है। अनुसूचित जाति एवं जन जातियों की गिनती तो हर जनगणना के दौरान हुई है।

मुद्दा है कि उन समुदायों के बारे में आंकड़े मौजूद होने के बावजूद उनकी बहुसंख्या क्यों पिछड़ी रह गई हैं? और ओबीसी जातियों के बारे में जब आंकड़े आ जाएंगे, तब उन्हें पिछड़ेपन से निकालने की क्या योजना एनडीए के पास है?

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इन सवालों के जवाब किसी विपक्षी दल ने भी नहीं दिया। उन्होंने जातीय जनगणना को अपने-आप में एक समाधान के रूप में पेश करने की कोशिश की। अब हकीकत यह है कि उसमें निहित जातीय गोलबंदी की संभावना को नाकाम करने के लिए एनडीए ने उस मुद्दे को हथिया लेने की कोशिश की है।

अपनी मंदिर राजनीति के साथ मंडल की सियासत को समाहित करने में भाजपा पहले ही काफी हद तक कामयाब रही है। अब जातीय जनगणना का भी राग अलापना उसका इसी मेल को और मजबूती देने का प्रयास है। अगर ऐसा नहीं है, तो एनडीए को उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए।

Pic Credit: ANI

NI Editorial

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