आज सूरत यह है कि जब कभी पाकिस्तान से भारत के सैन्य टकराव की स्थिति आएगी, चीन- भले परोक्ष रूप से लेकिन- उसमें खास भूमिका निभाएगा। ऐसे में उचित रणनीति यही है कि भारत उस स्थिति के लिए खुद को तैयार रखे।
अमेरिका की रक्षा खुफिया एजेंसी (डीआईए) की ‘विश्व खतरा मूल्यांकन’ रिपोर्ट में जो कहा है, उस पर अवश्य ध्यान दिया जाना चाहिए, लेकिन उसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने पाकिस्तान को परमाणु हथियारों और बैलिस्टिक मिसाइलों का जखीरा बढ़ाने में मदद की है। ये सहायता वह वर्षों से दे रहा है।
रिपोर्ट में जिक्र है कि पाकिस्तान भारत को अपने अस्तित्व से जुड़े खतरे के रूप में देखता है, जबकि ‘भारत का ध्यान संभवतः विश्व नेताओं को यह दिखाने पर केंद्रित है’ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता चीन का मुकाबला करना और भारत की सैन्य क्षमता को बढ़ाना है।
चीन-पाकिस्तान का भारत पर प्रभाव
ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों के बाद दुनिया में बनी ऐसी धारणा पर गंभीरता से विचार करना बेहद जरूरी हो गया है। फिलहाल, सूरत यह है कि रक्षा मामलों में चीन और पाकिस्तान को अलग-अलग करके देखना वाजिब नजरिया नहीं रह गया है। कई रक्षा विशेषज्ञ पांच साल से इस ओर ध्यान खींच रहे हैं कि चीन और पाकिस्तान ने अपनी रक्षा रणनीतियों में गहरा तालमेल बना लिया है।
ऐसा खासकर अगस्त 2019 के बाद से हुआ है, जब भारत ने धारा 370 खत्म करने के बाद अपना नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया था। इस नक्शे को चीन ने खुद पर भारत का “मानचित्रीय हमला” बताया था। उसके बाद ना सिर्फ चीन ने पाकिस्तान हथियारों की सप्लाई बढ़ाई, बल्कि साझा ट्रेनिंग और डिजिटल सूचनाओं के लगातार आदान- प्रदान की व्यवस्था भी दोनों देशों ने की है।
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समझा जाता है कि इसके ठोस संकेत ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मिले। ऐसे में प्रश्न उठा है कि क्या चीन और पाकिस्तान के मोर्चों को अलग- अलग करके देखना अब भारत के नजरिए से उचित रणनीति रह गई है? दरअसल, आज सूरत यह है कि जब कभी पाकिस्तान से भारत के सैन्य टकराव की स्थिति आएगी, चीन- भले ही परोक्ष रूप से लेकिन- उसमें एक खास भूमिका निभाएगा। यानी भारत के सामने चीन और पाकिस्तान की साझा ताकत का मुकाबला करने की चुनौती होगी। ऐसे में उचित रणनीति यही है कि भारत वैसी स्थिति के लिए खुद को तैयार करे।
Pic Credit: ANI