nayaindia farting problem ज्यादा गैस (उदरवायु) पास होना रोग तो नहीं?...

ज्यादा गैस (उदरवायु) पास होना रोग तो नहीं?…

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक दिन में डकार और फार्टिंग के रूप में 13 बार गैस पास होना सामान्य है (इसमें मल पास करते समय निकलने वाली गैस शामिल नहीं है) लेकिन इससे ज्यादा बार गैस पास होना संकेत है पाचन तन्त्र में किसी गम्भीर समस्या का। अमूमन ये समस्यायें होती हैं सीलियक डिजीज, गैस्ट्रोपरेसिस और इरीटेबल बॉउल सिंड्रोम के रूप में। 

दिन में कभी-कभार गैस पास होना सामान्य है, समस्या शुरू होती है जब दिन के बजाय हर घंटे कई बार गैस पास हो, वह भी बदबूदार। व्यक्ति मजाक बनकर रह जाता है। सामाजिक समारोहों में शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है। मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर होता है। अगर शारीरिक स्वास्थ्य पर इसके असर की बात करें तो ज्यादा गैस बनने से ब्लोटिंग, पेट दर्द, भूख न लगना, सीने में जलन और सांस लेने में दिक्कत जैसे कष्टदायी लक्षण उभरते हैं।

मेडिकल साइंस में फ्लैचुलेंस, आम बोलचाल में फार्टिंग (पादना) कही जाने वाली इस समस्या पर लोग खुलकर बात नहीं करते। इसे मजाक समझते हैं लेकिन ये गलत है। याद रहे, हमेशा खराब खानपान इसका कारण हो, जरूरी नहीं। कई बार ये संकेत होता है सीलियक, गैस्ट्रोपरेसिस और इरीटेबल बॉउल सिंड्रोम जैसी बीमारियों का।

क्यों बनती है ज्यादा गैस?

गैस, चाहे डकार के रूप में मुंह से पास हो या फार्टिंग के रूप में मल द्वार से, बनती हमारे पाचन तन्त्र में ही है। इसका निर्माण होता है हमारे भोजन से। जब हमारा पाचन तन्त्र भोजन को शरीर के लिये जरूरी ऊर्जा में बदलता है तो बनती है ये गैस। शरीर के लिये ये किसी काम की नहीं होती इसलिये डकार या फार्टिंग के रूप में बाहर निकल जाती है। भोजन में राजमा, छोले, पत्ता गोभी, ब्रोकली, बीन्स, प्याज, पनीर, हाई फ्रुकटोस और प्रोसेस्ड फूड अधिक होने पर इसके निकलने की फ्रिकवेंसी बढ़ जाती है। कारण इनका देर से पचना और पूरी तरह अवशोषित न होना।

जब ये खाद्य-पदार्थ ठीक से अवशोषित हुए बिना छोटी आंत (इन्टसटाइन) से बड़ी आंत में पहुंचते हैं तो फ्लैचुलेंस की समस्या बढ़ती है और पास होती है गंदी बदबूदार गैस। ये मिश्रण होती है कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और मीथेन जैसी गैसों का।

इसके अलावा च्युंगम, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, स्मोकिंग, ढीला डेन्चर पहनने और जल्दी-जल्दी खाने से पेट में काफी मात्रा में गैस चली जाती है जो रूप ले लेती है उदरवायु का। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के मुताबिक दिन में डकार और फार्टिंग के रूप में 13 बार गैस पास होना सामान्य है (इसमें मल पास करते समय निकलने वाली गैस शामिल नहीं है)  लेकिन इससे ज्यादा बार गैस पास होना संकेत है पाचन तन्त्र में किसी गम्भीर समस्या का। अमूमन ये समस्यायें होती हैं सीलियक डिजीज, गैस्ट्रोपरेसिस और इरीटेबल बॉउल सिंड्रोम के रूप में।

क्या है सीलियक डिजीज?

सीलियक डिजीज मतलब ग्लूटेन इन्टॉलरेन्स। जो होती है भोजन में मौजूद ग्लूटेन न पचने से। ग्लूटेन एक तरह का प्रोटीन है जो पाया जाता है गेहूं, जौ और ओट से बने खाद्य-पदार्थों में। जब हम इन्हें खाते हैं तो हमारा इम्यून सिस्टम इसे शरीर के लिये खतरनाक समझकर सक्रिय हो जाता है। इसका पहला संकेत मिलता है ज्यादा गैस पास होने यानी फार्टिंग के रूप में।

इसके साथ पेट फूलना, पेट दर्द, उल्टी, थकान, दांतों में पीलापन, नम्बनेस, टिंगलिंग और स्किन एलर्जी जैसे लक्षण उभरने लगते हैं। अगर इसका समय रहते इलाज न कराया जाये तो खून की कमी (एनीमिया), वजन गिरना, जोड़ों में दर्द, हड्डियों में कमजोरी, सीजर्स (दौरे), बार-बार डॉयरिया, अनियमित मासिक धर्म, इन्फरटीलिटी जैसी समस्यायें हो जाती हैं। कई बार इसकी वजह से गर्भपात भी हो जाता है। इसलिये जैसे ही ज्यादा गैस पास होना शुरू हो तुरन्त इस पर ध्यान दें। अपना खान-पान बदलें। अगर इससे राहत न मिले तो डॉक्टर से सम्पर्क करें।

गैस्ट्रोपरेसिस में क्या परेशानी?

जरूरी नहीं ज्यादा गैस पास होने का कारण हमेशा सीलियक डिजीज हो, कई बार गैस्ट्रोपरेसिस की वजह से भी ऐसा होता है। गैस्ट्रोपरेसिस यानी भोजन का पेट में लम्बे समय तक रूकना। इससे गैस ज्यादा बनती है और फार्टिंग बढ़ जाती है। इसके अलावा पेट दर्द, भूख न लगना, उल्टी, मतली, कुपोषण, ब्लोटिंग जैसी समस्यायें होने लगती हैं।

अगर गैस्ट्रोपरेसिस के कारण की बात करें तो अभी तक हुए शोध के मुताबिक इसकी वजह है पेट को मिलने वाले नर्व सिगनल में रूकावट। ज्यादातर मामलों में इस रूकावट की वजह होती है डॉयबिटीज। रक्त में शुगर बढ़ने से कमजोर हुयी नर्व, पेट को ठीक से सिगनल नहीं दे पाती कि वह भोजन को आगे बढ़ाकर पहले छोटी आंत और फिर बड़ी आंत तक ले जाये। इसके अलावा वायरल इंफेक्शन, थायराइड डिस्ऑर्डर, सिस्टिक फाइब्रोसिस, पार्किन्सन और कैंसर से भी यह नर्व डैमेज हो जाती है जिससे पाचन-तन्त्र में भोजन को आगे बढ़ने का सिगनल देर से मिलता है।

पेट में ज्यादा गैस बनने से दिल और फेफड़ों पर दबाब बढ़ता है। इसका परिणाम सामने आता है लो-ब्लड प्रेशर, धड़कन और सांस तेज चलने के रूप में। यूरीन पास होना कम हो जाता है। जख्म देर से भरते हैं। इसलिये जैसे ही ज्यादा फार्टिंग के रूप में इसके शुरूआती संकेत मिलें तुरन्त खानपान बदलें। दो-चार दिनों में सुधार नजर न आये तो डॉक्टर से सलाह लें।

इरीटेबल बॉउल सिंड्रोम (आईबीएस)

यह कोई एक बीमारी नहीं बल्कि पेट से जुड़ी समस्यायों जैसे ज्यादा गैस बनने, मरोड़, डाइरिया, ब्लोटिंग, कॉन्सटीपेशन और अनियमित बॉउल मूवमेंट जैसी समस्याओं के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला मेडिकल टर्म है। वे इसकी चपेट में जल्द आते हैं जिनका इम्यून सिस्टम संवेदनशील हो। सन् 2007 में हुए एक शोध से सामने आया कि एंग्जॉयटी, डिप्रेशन, सोमेटिक सिम्पटम्स डिस्ऑर्डर (मनोविक्षुब्ध्ता), फूड प्वाइजनिंग, एंटीबॉयोटिक लेने और छोटी आंत डैमेज होने से भी लोग इरीटेबल बाउल सिंड्रोम से पीड़ित हो जाते हैं।

इसके अलावा लम्बे समय तक जंक या प्रोसेस्ड फूड खाने, पाचन तन्त्र में बैक्टीरिया असुंतलन, कॉलन में सेरोटोनिन का असामान्य स्तर बॉउल मूवमेंट पर असर डालता है जिससे ज्यादा गैस बनती है और जब गैस ज्यादा बनेगी तो पास भी ज्यादा होगी।

आमतौर पर आईबीएस स्थायी समस्या नहीं है, खानपान में बदलाव और इलाज से ये ठीक हो जाती हैं। फाइबर रिच खाद्य-पदार्थ और प्रोबॉयोटिक्स खाने से बॉउल मूवमेंट सुधरता है जिससे गैस, कॉन्सटीपेशन और डाइरिया जैसी परेशानियां दूर होती हैं। याद रखें फूड प्वाइजनिंग, स्ट्रेस, एंग्जॉयटी, डिप्रेशन, छोटी आंत डैमेज होने और सोमेटिक सिम्पटम्स डिस्ऑर्डर यानी मनोविक्षुब्ध्ता के मामले में खानपान बदलने से ज्यादा इलाज की जरूरत होती है। इसलिये ज्यादा गैस पास होने की सूरत में पहले खानपान बदलकर देखें अगर तीन-चार दिन में राहत न मिले तो डॉक्टर से सम्पर्क करें।

इन घरेलू उपचारों से होगा फायदा

ज्यादा गैस पास होने की समस्या के घरेलू समाधान के लिये सबसे पहले एक फूड डॉयरी बनायें और नोट करें कि क्या खाने से ज्यादा गैस बनती है। ज्यादा गैस बनाने वाले फूड आइटम्स की पहचान होने पर उनसे परहेज करें। अगर यह सम्भव न हो तो भोजन में उनकी मात्रा कम करें। आहार में मुश्किल से पचने वाले कार्बोहाइड्रेट्स घटायें। इनके स्थान पर चावल और केले जैसे आसानी से पचने वाले कार्ब लें। एक बार में ज्यादा भोजन करने के बजाय दिन में कई छोटे-छोटे मील लें। च्युइंग गम, धूम्रपान और कार्बोनेटेड ड्रिंक्स न लें तो बेहतर है।

कब्ज से ज्यादा बदबूदार गैस बनती है। इससे छुटकारा पाने के लिये दिन में कम से कम तीन लीटर पानी पियें। डाइट में प्रोबॉयोटिक शामिल करें। लैक्टोबैसिलस और बिफीडोबैक्टीरियम जैसे प्रोबायोटिक पाचन ठीक करने में मदद करते हैं। आप इन्हें दही और अन्य फरमेन्टेड खाद्य-पदार्थों के रूप में ले सकते हैं। वैसे ये बाजार में सप्लीमेन्ट्स के रूप में भी उपलब्ध हैं।

अदरक, पाचन क्रिया सुधारने में प्रभावी है। इसका नियमित सेवन गैस सहित पेट की कई समस्याओं से छुटकारा दिलाता है। ज्यादा गैस से यदि पेट में ऐंठन हो रही है तो पेट पर हीटिंग पैड या गर्म पानी की बोतल रखें। नियमित व्यायाम करें। बैठने का पोश्चर बदलें, कोशिश करें कि बैठते समय रीढ़ की हड्डी सीधी हो। अगर गैस में ज्यादा बदबू है तो अंडरवियर में चारकोल से बने “फ़ार्ट पैड” लगायें। ये बदबू कम करने में मदद करते हैं।

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