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पूरा हिसाब अभी बाकी है

electoral bonds

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भारतीय स्टेट बैंक ने चुनावी बॉन्ड का हिसाब तो चुनाव आयोग को सौंप दिया है लेकिन यह अधूरा आंकड़ा है। हालांकि कहने को कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2019 से लेकर अभी तक के चुनावी बॉन्ड की खरीद बिक्री का डाटा देने को कहा था और स्टेट बैंक ने इसका पालन किया है। electoral bonds supreme court

लेकिन सवाल है कि जब चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा देने का कानून 2017 में बना था और 2018 से इसे लागू कर दिया गया था तो फिर एक साल बाद से डाटा देने का क्या मतलब है? कायदे से चुनावी बॉन्ड की व्यवस्था लागू होने के बाद से ही यह हिसाब सार्वजनिक होना चाहिए कि किस कारोबारी घराने ने कितने का बॉन्ड खरीदा और किस पार्टी ने कितने का बॉन्ड भुनाया।

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भारतीय स्टेट बैंक की ओर से दिया गया चुनावी बॉन्ड का हिसाब इस लिहाज से भी अधूरा है कि इसमें स्टेट बैंक ने हर बॉन्ड के साथ जारी होने वाला यूनिक कोड यानी यूनिक अल्फा न्यूमेरिक नंबर्स नहीं बताया है। उस यूनिक कोड के जरिए ही पता चलेगा कि किस कारोबारी घराने का बॉन्ड किस पार्टी ने भुनाया है। किस कारोबारी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है और कब दिया है यह पता चलने के बाद ही क्विड प्रो को यानी सरकार और पार्टियों के साथ कारोबारियों की मिलीभगत की पूरी तस्वीर सामने आएगी।

अभी तो सिर्फ अंदाजा लगाया जा रहा है। हालांकि शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह सवाल उठाया और भारतीय स्टेट बैंक से पूछा कि उसने बॉन्ड का यूनिक अल्फा न्यूमेरि नंबर क्यों नहीं दिया है। सर्वोच्च अदालत ने बैंक को यह नंबर भी सार्वजनिक करने को कहा है। इससे यह पता चल पाएगा कि किस कंपनी द्वारा खरीदा गया कौन सा बॉन्ड किस पार्टी ने भुनाया। electoral bonds supreme court

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स्टेट बैंक की ओर से जारी आंकड़ों पर और भी सवाल उठ रहे हैं। हालांकि अभी तक सारे आंकड़ों का विश्लेषण नहीं हो पाया है। सारे आंकड़ों का विश्लेषण होने के बाद ही पता चल पाएगा कि छोटी छोटी सैकड़ों कंपनियों ने जो बॉन्ड खरीदे हैं उन कंपनियों के पीछे कौन है या उनका क्या हित पूरा हो रहा है। लेकिन मोटे तौर पर विश्लेषण के बाद यह पता चल रहा है कि यह आंकड़ा अधूरा है। स्टेट बैंक की ओर से दी गई सूची में एक बड़ी गड़बड़ी का सवाल कांग्रेस ने उठाया है।

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कांग्रेस ने बताया है कि स्टेट बैंक के आंकड़े में दान देने वाले यानी चुनावी बॉन्ड खरीदने वालों की सूची में 18,871 एंट्री है, जबकि दान लेने वाले यानी बॉन्ड भुनाने वालों में 20,421 की एंट्री है। इस मिसमैच का क्या मतलब है? हालांकि भारतीय स्टेट बैंक की ओर से दिए गए आंकड़ों को वेबसाइट पर अपलोड करने के बाद चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया कि उसे स्टेट बैंक ने जो कुछ दिया था उसे उसने बिल्कुल उसी तरह से अपलोड कर दिया। यानी ब्योरे में अगर कुछ कमी है तो उसके बारे में स्टेट बैंक ही जानकारी दे सकता है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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