nayaindia Nitish Kumar Chandrababu Naidu चंद्रबाबू, नीतीश की क्या चलेगी?

चंद्रबाबू, नीतीश की क्या चलेगी?

नरेंद्र मोदी ने शपथ ली नहीं कि उससे पहले ही गुरूवार को सूत्रों के हवाले पालतू मीडिया से चंद्रबाबू नायडू और नीतूश कुमार की हैसियत पर खबरें चल गईं। कैसी खबरें? जैसे भाजपा ने बता दिया है कि स्पीकर पद नहीं मिलेगा। टॉप चार मंत्रालयों में से कोई मंत्रालय नहीं दिया जाएगा। न ही ज्यादा मंत्री पद मिलेंगे। भाजपा ने पांच सासंदों पर एक मंत्री का फॉर्मूला दे दिया है। चंद्रबाबू नायडू को तो अमरावती के लिए पैसा और कमाई वाले मंत्रालय चाहिए। इन सहयोगियों को सड़क परिवहन, ग्रामीण विकास, कृषि, रेल, जल संसाधन जैसे मंत्रालय मिलेंगे।

इतना ही नहीं सूत्रों के हवाले यह भी चला कि भाजपा ने अन्य खेमे के निर्दलीय सांसदों से बात कर ली है। मतलब भाजपा को फिक्र नहीं है। जनता दल यू के केसी त्यागी ने अग्निवीर योजना, जाति जनगणना जैसी सवेरे बात की तो उन्हें शाम को सफाई देनी पड़ी कि उनका कहा परिप्रेक्ष्य विशेष में था। मतलब नीतीश कुमार यदि साझा न्यूनतम प्रोग्राम पर सोच भी रहे थे तो उससे पहले ही मैसेज दे दिया गया कि आप लोगों की औकात नहीं जो ऐसे एजेंडा तय कराएं।

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यह बाल की खाल निकालना नहीं है, बल्कि नरेंद्र मोदी की स्टाइल, नई सरकार का बीजारोपण है। मैंने कोई खबर नहीं पढ़ी, जिसमें चंद्रबाबू नायडू ने या उनके करीबी सूत्र के हवाले खबर छपी हो कि चंद्रबाबू ने फलां-फलां मांग की है। स्पीकर पद का कयास इसलिए लगा था क्योंकि वाजपेयी सरकार में भी तेलुगू देशम ने स्पीकर का पद लिया था। कोई न माने इस बात को लेकिन सत्य है कि नरेंद्र मोदी को चंद्रबाबू और नीतीश कुमार दोनों अनुभवों से भी जानते हैं। चंद्रबाबू कुछ महीने पहले ही जेल में थे। उस दौरान दिल्ली में उनका बेटा दर दर जैसे भटका और जो सलूक हुआ तो उसे बाप-बेटा ताउम्र नहीं भूल सकते। वही नीतीश कुमार के साथ भी नरेंद्र मोदी-अमित शाह ने जो सलूक किया है, जदयू को जैसे हाईजैक करना चाहा, उसे नीतीश याद न रखें, यह संभव नहीं। फिर भले नीतीश कुमार मतिभ्रम की बीमारी में जी रहे हों।

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बहरहाल, असल मुद्दा यह है कि तेलुगू देशम और जद यू का सरकार में रोल दबंग होगा या नरेंद्र मोदी इनको वैसे ही हैंडल करेंगे जैसे भाजपा और संघ के लोगों और मंत्रियों को करते हैं? मोदी सरकार में इनके मंत्रियों की क्या औकात होनी है, इसे दस सालों में सरकार के मंत्रियों के अनुभवों से समझना चाहिए। मंत्री कहने भर के लिए और सचिव सीधे प्रधानमंत्री दफ्तर से नियंत्रित।

आखिर अफसर को अपनी सीआर तो कैबिनेट सचिव से ही ठीक बनवानी है। चंद्रबाबू और नीतीश कुमार अपने राज्यों से वफादार अफसरों को अपने मंत्रियों के यहां तैनात कराएं तब भी सब कुछ पीएमओ से रूट होता हुआ होगा। न केवल फोन टेप होंगे, बल्कि धंधों का हिसाब भी मय रिकॉर्ड रखा जाएगा। छह-आठ महीने बाद ही नरेंद्र मोदी सहयोगियों के मंत्रियों की फाइलें लिए चंद्रबाबू और नीतीश को अल्टीमेटम दे देंगे कि बंधुआ बनते हो या मीडिया में सुर्खियां बने।

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हां, मोदी ने गुजरात से लेकर अभी तक ऐसे ही राज किया है। दोनों जगह एक एक कर तमाम भाजपा नेताओं को ऐसे ही निपटाया। लोगों को धमका कर, डरा कर, लालच दे कर दलबदल कराने, पार्टियां तोड़ने, तुड़वाने का रिकॉर्ड आजाद भारत के इतिहास का अब स्थापित कलंक है। इसलिए सवाल है चंद्रबाबू और नीतीश कुमार वैसे ही अपनी गर्दन मोदी के यहां फंसाते हुए नहीं हैं? ये क्या बिना अपनी शर्तें मनवाए, अपनी सुरक्षा बनाए मोदी पर विश्वास कर लेंगे? चंद्रबाबू और नीतीश क्या नरेंद्र मोदी को वाजपेयी जैसा मानते हुए गठबंधन धर्म की पालना की उम्मीद में हैं? तब फिर गौर करें पिछले 48 घंटों के दिल्ली नैरेटिव पर।

मैं चंद्रबाबू और नीतीश कुमार (बीमारी के कारण अब जरूर पांव पड़ते हुए) को नरेंद्र मोदी से अधिक शातिर मानता हूं। फिर मोदी को इनकी ज्यादा जरूरत है न कि इन्हें मोदी की। ये जो मांग रहे हैं वह ‘इंडिया’ गठबंधन में भी मिलता। बावजूद इसके यदि इन्होंने नरेंद्र मोदी का झंडा पकड़ा है तो बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के अलावा दोनों अपने मनचाहे पद (आगे संस्थाओं में भी) लेंगे। ये अपने मिजाज की राजनीति को आगे बढ़ाएंगे।  नरेंद्र मोदी को हिंदू-मुस्लिम नहीं करने देंगे।

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जाति जनगणना से हिंदू राजनीति को पंक्चर करेंगे। अग्निवीर जैसी योजनाओं को रद्द करवाएंगे। अमित शाह और योगी आदित्यनाथ को हटवाएंगे। ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स पर चेक लगवाएंगे। मतलब वह सब करेंगे, जिससे बतौर हिंदू भगवान के नरेंद्र मोदी जो नौटंकियां करते थे वे खत्म हों। और इसी साल होने वाले हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों में भाजपा न घर की रहे और न घाट की।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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