क्या हमास केवल ईरान का मुखौटा है? युद्ध क्या असल में ईरान और इजराइल के बीच है? यह गंभीर सवाल है। सात अक्टूबर को शुरू हुआ वीकएंड, इजराइल के लिए बहुत बुरा रहा।इन पंक्तियों को लिखे जाने तक 7,00 से अधिक इजरायली मारे जा चुके हैं। यदि आनुपातिक दृष्टि से देखें तो यह 9/11 में मरने वालों से काफी ज्यादा है। बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि इजराइल एक ‘लंबा और मुश्किल युद्ध’ शुरू कर रहा है। गाजा पर बड़े पैमाने पर इजरायली हवाई हमले जारी हैं और खबरों के मुताबिक गाजा में भी500 लोगों की मौत हो चुकी है। इस्लामिक गणराज्य ईरान को छोड़कर दुनिया का करीब-करीब हर देश इजराइल के प्रति एकजुटता दिखा रहा है।
ईरान के शासकों ने हमास के हमलों का समर्थन किया है। उन्होंने तेहरान के पलेस्टाइन स्क्वायर पर आतिशबाजी करवाई। वहां के सांसदों ने मजलिस में ‘इजराइल मुर्दाबाद’ के नारे लगाए। यहां तक कि हमास ने भी ईरान की भागीदारी और समर्थन की बात स्वीकार की। वॉल स्ट्रीट जर्नल से बात करते हुए हमास और हिजबुल्लाह के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि इस अप्रत्याशित हमले को अंजाम देने में ईरान ने उसकी मदद की थी। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने यह खबर भी दी है कि ईरान के रेवोलुशनरी गार्ड कोर (आईआरजीसी) के अधिकारियों ने “अगस्त से हमास के साथ हवाई, जमीनी और समुद्री रास्ते से किए जाने वाले हमलों की तैयारी शुरू की थी। और यह भी कि ईरानी रक्षा अधिकारियों ने ‘‘पिछले सोमवार को बेरूत में हुई एक बैठक में इन हमलों को हरी झंडी दे दी थी”।
आईआरजीसी के एक पूर्व वरिष्ठ कमांडर याह्या सफावी, जो वर्तमान में सर्वोच्च नेता अली खौमेनी के प्रमुख सलाहकार हैं, ने ख़ुशी से झूमते हुए हमले के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया और फिलिस्तीनी लड़ाकों को बधाई दी। खौमेनी के एक अन्य वरिष्ठ सलाहकार और लंबे समय तक विदेशमंत्री रहे अली अकबर विलायती ने भी हमास और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद के नेताओं को लिखित संदेश भेजकर अपना समर्थन दिया: ‘‘यह सफल कार्यवाही निश्चित ही यहूदी सत्ता के पतन में सहायक होगी और उसमें तेजी लाएगी।” आईआरजीएस के प्रकाशन पोस्टर प्रकाशित कर रहे हैं, जिनमें कुछ हिब्रू में हैं, जिनमें लिखा है कि ‘‘हमने तुमसे कहा था कि इसके पहले कि बहुत देर हो जाए तुम यहूदी राष्ट्र में बने अपने घर बेच दो,” और ऐसे यहूदी विरोधी कार्टून भी हैं जिनमें इजरायली यहूदियों को देश छोड़कर भागते हुए दिखाया गया है।
ईरान ने हमेशा अरब देशों की आतंरिक राजनीति में दखलअंदाजी की है।इसलिए 7 अक्टूबर के हमलों में उसके शामिल होने के कयासों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हमास को समय-समय पर तुर्की और कतर जैसे देशों से धन और राजनैतिक समर्थन मिलता रहा है। तुर्की के इजराइल के साथ रक्षा मामलों में गहरे संबंध हैं और कतर, अतीत में इजराइल से जुड़े मामलों में मध्यस्थ की भूमिका निभा चुका है और आधिकारिक रूप से इजराइल के स्थान पर दो अलग-अलग देश बनाकर समस्या को सुलझाने का समर्थक रहा है। दूसरी ओर ईरान न केवल हमास को धन मुहैया कराता है वरन् उसे अच्छी-खासी सैन्य मदद और राजनैतिक समर्थन भी देता है। साथ ही वह दुनिया का इकलौता देश है जो अभी भी इजराइल से युद्ध कर उसे पूरी तरह नष्ट करने की बात करता है।
हाल में पैगम्बर मुहम्मद के जन्मदिन के मौके पर दिए गए अपने वार्षिक ‘इस्लामिक एकजुटता’ भाषण में खौमेनी ने इजराइल के प्रति अपनी नफरत का इजहार किया और अपना नजरिया दुबारा साफ किया। सर्वोच्च नेता ने दावा किया कि ‘यहूदी सत्ता’ अपने सभी पड़ोसियों से बहुत ‘घृणा’ करती है और उसका लक्ष्य इस क्षेत्र में ‘नील से लेकर फरात नदी तक’ अपना प्रभुत्व कायम करना है। उन्होंने कहा कि ‘‘यहूदी सत्ता खात्मे की ओर है” और उन्होंने उन देशों को आगाह किया जो इजराइल से संबंध सामान्य बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि ‘‘वे गलती कर रहे हैं…हारने वाले घोड़े पर दांव लगा रहे हैं”।उन्होंने कहा ‘‘इजराइल एक कैंसर है जिसे फिलिस्तीनी जनता और प्रतिरोधी शक्तियां उखाड़ देगी और जड़मूल से नष्ट कर देंगीं”। 7 अक्टूबर के हमले के कुछ ही समय बाद हमास के इस्माइल हानिया और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद के एहसान अताया सहित फिलिस्तीनी नेताओं ने इजराइल से सामान्य संबंध बनाने के लिए प्रयासरत अरब देशों को भी स्पष्ट चेतावनी दी कि उन्हें भी इसी तरह के हमलों का सामना करना पड़ेगा।
लेकिन सर्वोच्च नेता की ज्यादातर बातें कोरी लफ्फाजी हैं। इजराइल पर आतंकी हमलों से फिलिस्तीनियों को कुछ भी हासिल नहीं होगा। हमास और हिजबुल्ला न तो इजराइल को खत्म कर सकते हैं और ना ही वहां के 70 लाख यहूदियों की जान ले सकते हैं। तेहरान अपनी काल्पनिक दुनिया में जी रहा है जो न पहले मुमकिन थी और न आज है। जहां तक इजराइल का सवाल है, नेतन्याहू को उम्मीद थी कि देश को हासिल हो रही कूटनीतिक और आर्थिक सफलताओं पर दुष्प्रभाव डाले बिना वे वेस्ट बैंक पर अपना कब्जा कायम रख पाएंगे। लेकिन जैसा कि अन्य इजरायली लंबे समय से चेतावनी दे रहे हैं, यह एक बुलबुला है जो आखिरकार फूटेगा। और बड़े खतरे – ईरान – का मुकाबला करने के लिए दुनिया को एकजुट होकर इजराइल-फिलिस्तीनी टकराव का स्थायी समाधान निकालना होगा। तब तक इजराइल को हमास के भेष में ईरान से युद्ध लड़ना होगा। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)