Wednesday

30-04-2025 Vol 19

विवेक को जाने, अमेरिकी राष्ट्रपति उम्मीदवार!

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विवेक रामास्वामी के बारे में हम सभी को जानना चाहिए। भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक रामास्वामी 38 साल के हैं। वे पहले फार्मा उद्योग में काम करते थे और अब निवेशक हैं।  औरवे इन दिनों राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार बनने की कोशिश कर रहे हैं। आश्चर्य जो वे इस दौड़ में काफी आगे हैं। हालांकि तमाम अभियोगों और जेल जाने की संभावनाओं के बावजूद डोनाल्ड ट्रंप अभी भी सब पर भारी हैं। दूसरे नंबर पर हैं रॉन डिसांटिस। कहा जा रहा है कि रामास्वामी तीसरे स्थान पर हैं। और यदि किन्हीं भी कारणों से ये दोनों पिछड़ जाते हैं तो रामास्वामी सबसे आगे हो जाएंगे। 

कुछ जनमत संग्रहों के मुताबिक तो रामास्वामी डिसांटिस को पछाड़कर दूसरे स्थान पर आ चुके हैं। रामास्वामी रिपब्लिकन पार्टी के नामांकन की दौड़ में जो लोग शामिल हैं उनमें सबसे युवा हैं। वे भारतीय अप्रावासियों की संतान हैं। उन्होंने इस दौड़ में शामिल होने के बाद से कई इंटरव्यू दिए हैं, एनिमेन के गानों पर रेप किया है और मतदान करने वाले शुरूआती राज्यों आयोवा और न्यू हैम्पशायर के वोटरों का समर्थन हासिल करने में अन्य उम्मीदवारों की तुलना में अधिक समय खर्च किया है। रामास्वामी की लोकप्रियता बढ़ रही है और उनकी ओर सारी दुनिया के मीडिया का ध्यान जा रहा है। 

उनके रंग-ढंग ट्रंप जैसे हैं। वे खरी-खरी बातें करते हैं और अपने विचार छुपाते नहीं हैं। उनका मानना है कि क्लाइमेट चेंज के मसले पर एक्टिविज्म एक तरह की सनक है और वे मेक्सिको की सीमा पर सेना की तैनाती के पक्ष में हैं। उनका विश्वास है कि ट्रंप पर लगाए अभियोग राजनीति से प्रेरित हैं और वे कहते हैं “विविधता हमारी ताकत नहीं है।” आयोवा स्टेट फेयर में गवर्नर किम रेनोल्ड्स से बातचीत करते हुए – जिसे फेयर साईड चैट कहा जाता है – रामास्वामी ने कहा कि राष्ट्रपति बनने पर वे संघीय सरकार के 75 प्रतिशत कर्मचारियों को नौकरी से निकाल देंगे और एफबीआई, सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन – जिसने अमरीका में कोविड महामारी संबंधी ज्यादातर कार्य किया – और शिक्षा विभाग सहित कई सरकारी संस्थाओें को बंद कर देंगे। 

इसमें कोई शक नहीं कि रामास्वामी की ओर बहुत लोगों का ध्यान जा रहा है। जनता उनकी ऊर्जा और अति दक्षिणपंथी लोकलुभावन रवैये की कायल हो गई है। उनसे मुलाकात करना बहुत आसान है। वे जनता से सीधे बातचीत करने के लिए उद्यत रहते हैं। एलन मस्क का ध्यान भी उनकी ओर गया और उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर रामास्वामी को एक ‘उजली संभावनाओं वाला उम्मीदवार’ बताया। सोशल मीडिया सहित कुछ मुद्दों पर रामास्वामी जनता के साथ जुड़ने में कामयाब रहे हैं। वे 16 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिए ‘लत बन चुकी सोशल मीडिया’ पर पाबंदी लगाने के पक्षधर हैं। वहीं उनके राष्ट्रपति बनने पर संघीय कर्मचारी, जिनकी नौकरियां बची रहेंगी, उनके लिए रिमोट वर्किंग – जिसे रामास्वामी ‘आलस्य’ कहते हैं – पर पाबंदी लगा दी जाएगी। 

वे संविधान संशोधन के जरिए मतदान की न्यूनतम आयु 18 से बढ़ाकर 25 वर्ष करने के समर्थक हैं लेकिन उनके इस संशोधन में यह प्रावधान होगा कि 18 वर्ष के जो व्यक्ति अप्रवासियों को अमेरिका का नागरिक बनने के लिए जिस परीक्षा में सफल होना पड़ता है वह परीक्षा पास कर लेते हैं या 6 माह की सैन्य सेवा या फर्स्ट रिस्पांडर सर्विस कर लेते हैं, भी मतदाता बन सकेंगे। उन्होंने जूनटीन्थ के संघीय अवकाश, जो कालों की गुलामी से मुक्ति का उत्सव होता है, को एक ‘बेकार की छुट्टी’ बताया।

रामास्वामी की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं – “वोक इंक एंड नेशन ऑफ विक्टिम्स: आईडेंटिटी पालिटिक्स, द डेथ ऑफ मेरिट” और द पाथ बैक टू एक्सिलेंस’। इनमें वे -‘वोक लेफ्ट’ (अर्थात वे वामपंथी जो नस्लीय और सामाजिक भेदभाव के विरोधी हैं) की तुलना ‘मनोवैज्ञानिक गुलामी’ से करते हैं और उनका दावा है कि वह एक ‘नए धर्मनिरपेक्ष धर्म’ है जो कहता है कि हमारा लिंग, नस्ल और सेक्स संबंधी रूचि यह निर्धारित करती है कि आप कैसे होंगे और आप जिंदगी में क्या हासिल कर सकते हैं। 

ऑहियो के सिसिनाती में जन्मे रामास्वामी की पढ़ाई हार्वर्ड और येल में हुई और उसके बाद वे एक वेंचर केपिटिलिस्ट बने और उन्होंने दवा कंपनियों में निवेश किया, जिनमें से कुछ का फोकस नयी दवाओं के विकास पर था। इससे वे बहुत धनी हो गए – आज उनकी संपदा करोड़ों डालर में है – और उन्होंने जून माह के अंत में खुद से अपने प्रचार के लिए डेढ़ करोड़ डालर का कर्ज लिया। 

विवेक रामास्वामी वोक-विरोधी हैं और ट्रंप के युवा संस्करण हैं। उनका चुनाव अभियान भी ‘सपनों के अमेरिका के निर्माण के अभियान’ अर्थात अमेरिका फर्स्ट 2.0 की बात कहता है। ‘द एटलाटिंक’ को दिए एक साक्षात्कार में रामास्वामी ने कहा कि वे स्वयं को एक सांस्कृतिक योद्धा नहीं मानते। वे जोर देकर कहते हैं कि वे केवल सच बोल रहे हैं। वे अपने विचारों को स्वयंसिद्ध शाश्वत सत्य बताते हैं।

रामास्वामी अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं विशेषकर अपने युवा जोश और अतिदक्षिणपंथी रवैये और वाकपटुता के चलते। लेकिन रिपब्लिकन उम्मीदवार श्वेत होना चाहिए (रिपब्लिकनों में से 85 प्रतिशत श्वेत हैं) और उनकी नस्ल निश्चित ही एक बाधा है। इसलिए इस 38 वर्षीय युवा की राह आसान नहीं है। उनके रिपब्लिकन पार्टी का नामांकन हासिल करने की संभावना अभी तो बहुत क्षीण लग रही है। जनमत संग्रहों में ट्रंप सबसे आगे हैं। रामास्वामी 6.7 प्रतिशत समर्थन के साथ तीसरे स्थान पर हैं। लेकिन एक अंजान व्यक्ति के रूप में शुरू हुई उनकी यात्रा अब काफी आगे पहुँच गयी है। न्यू हैम्पशायर में वे सबसे लोकप्रिय रिपब्लिकन उम्मीदवार हैं और उनके कार्यक्रमों में आने वाले ज्यादातर लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। लेकिन ट्रंप अभी भी सबसे लोकप्रिय हैं – जनता में, पार्टी समर्थकों में और रिपब्लिकनों में। यदि कानूनी पचड़ों में फंसे ट्रंप मतदान के पहले जेल चले जाते हैं, तभी रामास्वामी कुछ उम्मीद कर सकते हैं। लेकिन भारतीयों के लिए खुश होने का एक और अवसर है – जो न उन्हें जानते हैं और ना ही उनके विचारों और नीतियों से परिचित हैं। लेकिन फिर भी सुनक और कमला हैरिस के बाद अब विवेक रामास्वामी का ‘गोरों की दुनिया’ में उदय हुआ है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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