बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन शुरू होने से पहले एक कमाल की घोषणा की। उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा कि 14 नवंबर के नतीजों में उनकी सरकार बनेगी और वे 20 दिन के भीतर ऐसा कानून बनाएंगे, जिसके जरिए बिहार के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी। यह पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस और इसके बाद मीडिया को इंटरव्यू तेजस्वी ने थर्ड पर्सन में दिया। हर जगह वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह यह कहते रहे कि तेजस्वी नौकरी देगा, तेजस्वी ने सर्वे कराया है, तेजस्वी कोई भी वादा बिना तैयारी के नहीं करता है, तेजस्वी जो वादा करता है वह पूरा करता है आदि, आदि। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस या किसी दूसरी सहयोगी पार्टी का कोई नेता नहीं था। उनकी अपनी पार्टी के भी नए नेता नहीं थे। उनकी बजाय अब्दुल बारी सिद्दिकी और मंगनी लाल मंडल उनके साथ थे, जिनसे तेजस्वी की शायद ही कभी बातचीत होती है या जिनकी नीति निर्धारण में शायद ही कोई भूमिका है।
बहरहाल, तेजस्वी की इतनी बड़ी घोषणा पर खूब चर्चा होनी चाहिए थी। मीडिया में खबर छा जानी चाहिए थी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। मीडिया में इस खबर को तवज्जो नहीं मिली और उलटे सोशल मीडिया में उनका मजाक बन गया। लोग पूछने लगे कि बिहार में नौकरी करने लायक आबादी 7.42 करोड़ है और बिहार में परिवार 2.78 करोड़ हैं तो क्या तेजस्वी हर तीन में से एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दे देंगे? वह नौकरी कैसी होगी, कितना वेतन होगा, जिनको नौकरी मिलेगी उनके काम करने या बैठने के लिए जगह कहां है, न्यूनतम वेतन भी देते हैं तो वह बिहार के सालाना बजट से ज्यादा होगा, ऐसे सवाल पूछे गए। इससे पहले 2019 में सिक्किम के मुख्यमंत्री रहे पवन कुमार चामलिंग ने हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा किया था। उन्होंने तो नियुक्ति पत्र भी प्रिंट करा दिए थे। इसके बावजूद चुनाव हार गए। चुनाव नतीजा तो पता नहीं क्या होगा लेकिन उससे पहले ही तेजस्वी का इतना बड़ा वादा लोगों को यकीन नहीं दिला सका।